शिव कुमार बटालवी, कवि
शिव कुमार बटालवी (Shiv Kumar Batalvi) पंजाबी भाषा के एक भारतीय कवि, लेखक और नाटककार थे (Poet, Writer and Playwright of Punjabi language). वह अपनी रोमांटिक कविता के लिए बेहद मशहूर होने के साथ अपने जुनून, करुणा, अलगाव और प्रेमी की पीड़ा के लिए जाने जाते थे. वह 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के साहित्यकार बने (Youngest Recipient of the Sahitya Akademi Award). उन्हें यह सम्मान 1965 में रचित पुरण भगत के प्राचीन कथा पर आधारित महाकाव्य नाटिका लूना (Loona) के लिए मिला. इसे अब आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है.
शिव कुमार बटालवी का जन्म 23 जुलाई 1936 को (Shiv Kumar Batalvi Date of Birth) सियालकोट जिले के शकरगढ़ तहसील में स्थित बड़ा पिंड लोहतियन गांव (अब पंजाब, पाकिस्तान) में (Shiv Kumar Batalvi Birthplace) एक ब्राह्मण परिवार में पंडित कृष्ण गोपाल के घर हुआ था. उनके पिता राजस्व विभाग में ग्राम तहसीलदार, और माता शांति देवी, एक गृहिणी थीं (Shiv Kumar Batalvi Parents)
1947 में, उनका परिवार भारत के विभाजन के बाद बटाला, गुरदासपुर जिले में आकर बस गया. शिव ने 1953 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद, बैरिंग यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज, बटाला में दाखिला लिया, लेकिन डिग्री पूरी करने से पहले उन्होंने कादियां के एस.एन. कॉलेज के कला विभाग में प्रवेश लिया पर इसे पूरा करने से पहले उन्होंने हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में सिविल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया, उन्होंने इसे भी बीच में ही छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने नाभा के रिपुदमन कॉलेज में अध्ययन किया (Shiv Kumar Batalvi Education). 5 फरवरी 1967 को उन्होंने अरुणा से शादी की (Shiv Kumar Batalvi Wife), जिनसे उनके दो बच्चे, मेहरबान और पूजा हुए (Shiv Kumar Batalvi Children).
बटालवी की कविताओं को गाने वाले नामों में जगजीत सिंह, नुसरत फतेह अली खान रब्बी शेरगिल और हंस राज हंस खास हैं. उनकी कई कविताओं को बाद में बॉलीवुड फिल्मों (Bollywood Films) में भी गाने में ढाला गया, जिसमें 2009 में आई फिल्म लव आज कल में “आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा” (Ajj Din Chhadeya Tere Rang Varga) और 2016 में उड़ता पंजाब फिल्म का “इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है” (Ikk Kudi Jihda Naam Mohabbat Ghum Hai) गाने काफी लोकप्रिय हैं.
बटालवी की खास रचनाओं में “मैं इक शिकार यार बनाया”, (Main ik shikra yaar banaya) “मैंनू तेरा शबाब लै बैठा”, “माए नी माए” (Maye Ni Maye) शामिल हैं. उनकी कविताओं के कई संकलन प्रकाशित हुए, जिनमें पीड़ां दा परागा (1960) (Piran da Paraga), मैनूं विदा करो (1963), लाजवंती (1961) (Lajwanti), आटे दियां चिड़ियां (1962), लूना (1965), अलविदा (1974) और बिरहा दा सुल्तान (Birha Da Sultan) उल्लेखनीय है.
1972 में अपने इंग्लैंड दौरे से लौटने के बाद, शिव कुमार बटालवी लीवर सिरोसिस (Liver Cirrhosis) से प्रभावित हो गए. उस वक्त उनके इलाज तक के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थी (Shiv Batalvi Financial Crisis). शायद यही कारण था कि शिव कुमार बटालवी आखिरी वक्त में अपनी पत्नी अरुणा बटालवी के मायके चले गए, जहां उन्होंने 6 मई 1973 को अंतिम सांस ली (Shiv Kumar Batalvi Death).
उनका संकलन, अलविदा उनके मरणोपरांत गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर द्वारा प्रकाशित किया गया था. सर्वश्रेष्ठ लेखक के लिए 'शिव कुमार बटालवी पुरस्कार' प्रत्येक वर्ष दिया जाता है.