भारत की प्राचीन धरोहरों में कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Surya Mandir) का विशेष स्थान है. ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित यह मंदिर भारतीय वास्तुकला और कला का अद्भुत उदाहरण है. यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) का दर्जा दिया है. यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से भी बेहद खास है.
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम (1238–1264 ई.) ने कराया था. यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है. उस समय इसे ऐसा बनाया गया था कि सुबह की पहली किरण सीधे सूर्य देव की प्रतिमा पर पड़े.
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 12 वर्षों तक चला और इसमें हजारों शिल्पकारों और कारीगरों ने काम किया. यह मंदिर 156 मीटर ऊंचा था, जो आज के समय में ध्वस्त होकर केवल 70% हिस्से तक ही शेष रह गया है.
कोणार्क मंदिर को कला-गौरव (Kalinga Architecture) शैली में बनाया गया है. मंदिर का आकार एक विशाल रथ जैसा है, जिसमें 24 खूबसूरत नक्काशीदार पहिए (चक्र) और 7 घोड़े जुड़े हुए हैं. हर पहिए का व्यास लगभग 10 फीट है और उन पर समय को दर्शाने वाली अद्भुत नक्काशी की गई है. मंदिर की दीवारों पर सूर्य देव के विभिन्न रूप, अप्सराएं, पशु-पक्षी, युद्ध दृश्य और जीवन की झलकियां उकेरी गई हैं.
मुख्य गर्भगृह (सैंक्टम) अब ध्वस्त हो चुका है, लेकिन जगमोहन (सभा मंडप) और नट मंडप आज भी अपनी भव्यता दिखाते हैं.
सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन का स्रोत माना जाता है. इस मंदिर में सूर्य की उपासना प्राचीन काल से होती रही है. यहां सूर्य देव के तीन रूपों- उदयाचल (सुबह का सूर्य), मध्याचल (दोपहर का सूर्य) और अस्ताचल (शाम का सूर्य) - की मूर्तियां स्थापित थीं. कोणार्क को कभी-कभी "ब्लैक पगोडा" (Black Pagoda) भी कहा जाता था, क्योंकि मंदिर का रंग काला दिखाई देता था और यह समुद्री यात्रियों के लिए दिशा सूचक स्थल के रूप में काम करता था.
कोणार्क सूर्य मंदिर भारतीय शिल्पकला का अनोखा उदाहरण है. मंदिर की नक्काशी में नृत्य, संगीत और प्रेम की झलक मिलती है, जिससे यह भारतीय संस्कृति का दर्पण बन जाता है.
यहां हर साल कोणार्क डांस फेस्टिवल आयोजित होता है, जिसमें ओडिशा और अन्य राज्यों की शास्त्रीय नृत्य शैलियों का प्रदर्शन किया जाता है.
आज मंदिर का बड़ा हिस्सा खंडहर में बदल चुका है, लेकिन इसकी शिल्पकला और स्थापत्य आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है.