उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित काल भैरव मंदिर हिन्दू धर्म के अत्यंत प्राचीन और रहस्यमय मंदिरों में से एक है. यह मंदिर भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव को समर्पित है, जिन्हें काशी का कोतवाल यानी रक्षक माना जाता है. मान्यता है कि उनकी अनुमति के बिना काशी में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता और न ही यहां स्थायी रूप से रह सकता है (Kaal Bhairav Temple, Varanasi).
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान शिव ने भैरव रूप धारण किया, तब काल भैरव का अवतार हुआ. इसके बाद शिव ने उन्हें काशी का संरक्षक नियुक्त किया. यही कारण है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले काल भैरव के दर्शन करना आवश्यक माना जाता है.
मंदिर परिसर में स्थापित काल भैरव की प्रतिमा काले पत्थर से बनी हुई है. उनकी आंखें उग्र हैं और गले में मुंडमाला सुशोभित है. भक्त यहां विशेष रूप से सरसों के तेल, फूल, माला और काले तिल अर्पित करते हैं. माना जाता है कि काल भैरव को सरसों का तेल अर्पित करने से भय, रोग और बाधाएं दूर होती हैं.
यह मंदिर तांत्रिक साधना के लिए भी प्रसिद्ध है. खासकर अष्टमी, कालाष्टमी और भैरव जयंती के अवसर पर यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इन दिनों मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं.
काल भैरव मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि न्याय का प्रतीक भी माना जाता है. श्रद्धालु मानते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नत अवश्य पूरी होती है और अन्याय करने वालों को दंड मिलता है.
आज भी देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु काशी यात्रा की शुरुआत काल भैरव के दर्शन से करते हैं. यह मंदिर काशी की आध्यात्मिक पहचान और सुरक्षा की भावना का जीवंत प्रतीक है.