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गुलजारी लाल नंदा

गुलजारी लाल नंदा

गुलजारी लाल नंदा

गुलजारी लाल नंदा (Gulzarilal Nanda) भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने सादगी, ईमानदारी और निष्ठा के साथ देश की सेवा की. वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने वाले नेता थे और स्वतंत्र भारत में दो बार अंतरिम प्रधानमंत्री बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ.

गुलजारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को अविभाजित भारत के सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उन्होंने अर्थशास्त्र और कानून की पढ़ाई की और प्रारंभिक जीवन में एक शिक्षक के रूप में कार्य किया. इसके बाद वे राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर सत्याग्रह आंदोलनों में भाग लिया.

नंदा जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए. वे कई बार जेल भी गए, लेकिन देश की सेवा के अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे. उनका झुकाव श्रमिकों और मजदूरों की समस्याओं की ओर था और वे श्रमिक अधिकारों के प्रबल समर्थक रहे.

स्वतंत्रता के बाद गुलजारी लाल नंदा ने भारत सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, श्रम मंत्री, गृह मंत्री जैसे पदों पर रहे. उन्होंने औद्योगिक संबंधों में सुधार के लिए कई नीतियां बनाईं और श्रमिकों के कल्याण के लिए कार्य किया.

गुलजारी लाल नंदा को दो बार भारत का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला. पहली बार 1964 में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ, और दूसरी बार 1966 में जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ. दोनों बार उन्होंने स्थिरता बनाए रखने और शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नंदा जी की पहचान एक सच्चे गांधीवादी नेता के रूप में थी. उन्होंने कभी सत्ता या धन की लालसा नहीं की और अपना जीवन सादगी से जिया. सार्वजनिक जीवन में उनकी ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

गुलजारी लाल नंदा को 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. उनका जीवन एक प्रेरणा है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो राजनीति को सेवा का माध्यम मानते हैं.

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