गुजरात के देवभूमि द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है (Dwarkadhish Temple Dwarka). यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिन्हें यहां द्वारकाधीश यानी द्वारका के राजा के रूप में पूजा जाता है. यह मंदिर हिंदुओं के चार प्रमुख चार धामों में शामिल है और साथ ही सप्त पुरी में भी इसका विशेष स्थान है.
माना जाता है कि द्वारका नगरी की स्थापना स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी, जब वे मथुरा छोड़कर पश्चिम की ओर आए. वर्तमान मंदिर का निर्माण लगभग 7वीं-8वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है, हालांकि इसके पुनर्निर्माण और विस्तार का कार्य बाद के वर्षों में कई बार किया गया. मंदिर की वास्तुकला चालुक्य शैली की झलक देती है और इसकी ऊंचाई लगभग 78 मीटर है. मंदिर पर फहराने वाला ध्वज दिन में कई बार बदला जाता है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.
द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में भगवान कृष्ण की चतुर्भुज प्रतिमा विराजमान है. मंदिर का मुख्य द्वार मोक्ष द्वार और नदी की ओर खुलने वाला द्वार स्वर्ग द्वार कहलाता है. पास ही बहने वाली गोमती नदी में स्नान कर श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश करते हैं, जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है.
यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. जन्माष्टमी, होली और दीपावली जैसे पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं. विशेष रूप से जन्माष्टमी पर मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है और हजारों भक्त दर्शन के लिए एकत्र होते हैं.
द्वारकाधीश मंदिर श्रद्धा, भक्ति और भारतीय सनातन संस्कृति की जीवंत मिसाल है. यहां आकर भक्त आध्यात्मिक शांति और ईश्वर से जुड़ाव का अनुभव करते हैं.