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बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: सोशल मीडिया पोस्ट की हो रही जांच, जानिए जांच एजेंसी कैसा लगाती है पता?

एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनपर कई राउंड फायरिंग की गई. जिसमें उनके सीने और पेट में गोली लगीं. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया और फिर अस्पताल में उन्होंने आंखिरी सांस ली. इसके बाद बिश्नोई गैंग ने इस कत्ल की जिम्मेदारी ली. अब पुलिस उस पोस्ट की जांच कर रही है. आइए इसके बारे में डिटेल्स में जानते हैं.

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बाबा सिद्दीकी (फाइल फोटो)
बाबा सिद्दीकी (फाइल फोटो)

मुंबई में शनिवार देर रात एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनपर कई राउंड फायरिंग की गई. जिसमें उनके सीने और पेट में गोली लगीं. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया और फिर अस्पताल में उन्होंने आंखिरी सांस ली. 

पुलिस ने उस सोशल मीडिया पोस्ट की जांच शुरू कर दी, जिसमें बाबा सिद्दीकी की हत्या की जिम्मेदारी ली है. पोस्ट करने ने बताया कि वह बिश्नोई गैंग का सदस्य है. अब पुलिस जांच कर रही है कि यह पोस्ट कितना सच है.  

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जांच में आती हैं ये परेशानी

सोशल मीडिया पोस्ट की मदद से आरोपी को पड़कना या ट्रैक करना कई बार काफी मुश्किल हो जाता है. क्रिमिनल्स अक्सर ऐसे कामों में फेक आईडी या दूसरे का अकाउंट हैक करके उसका इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में आरोपी तक पहुंचने में काफी परेशानी आती है. 

फेसबुक पोस्ट से ली जिम्मेदारी 

बाबा सिद्दीकी की मौत के मामले में लॉरेंस बिश्नोई गैंग के सदस्य ने फेसबुक पोस्ट के जरिए जिम्मेदारी ली, जिसकी जांच पुलिस कर रही है. इसमें वह कई तरीकों का इस्तेमाल करती है. पुलिस और जांच एजेंसियां कई स्टेज पर इसकी जांच करती हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में. 

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सोशल मीडिया पोस्ट की कैसे होती है जांच   

पुलिस टीम या जांच एजेंसियां डिजिटल फुट प्रिंट्स को एनालाइज करके और पिछले मामलों के साथ इसे क्रॉस-रेफर करके इस दावे की रिएलिटी को चेक करती है. 

  • IP एड्रेस ट्रैस: जांच एजेंसियां ID एड्रेस की पहचान करके जांच शुरू करते हैं. इसकी मदद से डिवाइस की लोकेशन पता लगाई जाती है. हालांकि शातिर क्रिमिनल्स इसे हाइड करने के लिए VPN या Proxy का इस्तेमाल करते हैं. 
  • डिजिटल फोरेंसिक : एक्सपर्ट पोस्ट से जुड़े मेटा डेटा को एनालाइज करते हैं, जैसे समय, डिवाइस और ब्राउजर आदि की डिटेल्स हासिल करते हैं. 
  • सोशल प्लेटफॉर्म से मददः Facebook, X (पुराना नाम Twitter), और Instagram जैसे प्लेटफार्मों को पुलिस के साथ कानूनी अनुरोध पर सहयोग करना जरूरी होता है. पुलिस अकाउंट के रजिस्टर्ड ईमेल, फोन नंबर और एक्टिविटी लॉग जैसी डिटेल्स की मांग कर सकती है. 
  • लैंग्वेज और टाइपिंग स्टाइल: जांच एजेंसी टाइपिंग स्टाइल, लैंग्वेज और पोस्ट के समय को एनालाइज करती है. इसे पिछली पोस्ट से मिलान किया जाता है. जैसे बिश्नोई गैंग के मामलों में, उनकी जिम्मेदारी लेने के दावे की एक स्पेशल स्टाइल होता है. 

यह भी पढ़ें: बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: सोशल मीडिया पोस्ट की हो रही जांच, कैसे चलेगा पता?

तैयार करते हैं नया फेक अकाउंट 

जांच के दौरान कई तरह की चुनौतियां सामने आती हैं. पुलिस को असली अकाउंट्स तक पहुंचने में सबसे बड़ी समस्या फर्जी या हैक अकाउंट्स का होना है. इसमें क्रिमिनल्स एक नया अकाउंट क्रिएट करते हैं, या फिर किसी शख्स का अकाउंट हैक कर लेते हैं. इसके बाद उसका इस्तेमाल करके एक पोस्ट शेयर कर देते हैं. 

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चोरी किए गए डिवाइस का इस्तेमाल करना 

सोशल मीडिया के पोस्ट की जांच के दौरान, जब डिवाइस आदि का पता लगाया जाता है तो ऐसे मामलों में चोरी के डिवाइस आदि का इस्तेमाल होता है. इसके बाद असली आरोपी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.

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