
Kedarnath Yatra 2025: हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. केदारनाथ जाने के लिए श्रद्धालुओं को लंबी चढ़ाई करनी पड़ती है. यह चढ़ाई गौरीकुंड से शुरू होती है जो केदारनाथ जाकर खत्म होती है. गौरीकुंड में ही श्रद्धालुओं को कंडी (एक प्रकार की पालकी) में बैठाकर पीठ पर लादे कुछ लोग भी नजर आते हैं. कंडी के सहारे पीठ पर लादकर लोगों को केदारनाथ तक पहुंचाने वाले इन लोगों को आम भाषा में पिट्ठू कहा जाता है.
श्रद्धालुओं को पीठ पर लादकर बाबा केदारनाथ की चौखट तक पहुंचाने वाले पिट्ठू की हिम्मत किसी को भी हैरान कर देगी. कठिन रास्ता और पीठ पर भारी-भरकम लोगों का बोझ भी इनकी हिम्मत नहीं टूटने देता. ये एक पिट्ठू के लिए रोज का काम है. क्या आपने कभी सोचा है कि केदारनाथ में पिट्ठू का काम करने वाले लोगों किस हद तक दर्द से गुजरना पड़ता है और किस मजबूरी के कारण उन्हें ये काम करना पड़ता है.
केदारनाथ पहुंची आजतक डिजिटल की टीम को एक पिट्ठू ने बताया कि जिस कंडी में बैठाकर श्रद्धालु को ले जाया जाता है, उसे बनाने में करीब 5 हजार तक खर्चा हो जाता है. पिट्ठू जिस सवारी को गौरीकुंड से लेकर जाता है, वही उस सवारी को केदारनाथ से वापस भी लेकर आता है. आमतौर पर एक पिट्ठू को सवारी को केदारनाथ धाम तक पहुंचाने में 10 घंटे का समय लग जाता है. वहीं वापस गौरीकुंड आने में उन्हें करीब 8 घंटे तक लग जाते हैं.

पिट्ठू ने आजतक डिजिटल की टीम को बताया कि केदारनाथ की चढ़ाई के दौरान कई बार तो उन्हें ठीक से खाना भी नसीब नहीं हो पाता है. कई बार दयालु सवारियां अपने साथ जो खाने का सामान लाती हैं, उन्हीं में से कुछ दे देती हैं. नहीं तो कई बार पिट्ठू को भूखे ही इतने भारी वजन के साथ पूरी यात्रा करनी पड़ती है.
मेहनत ज्यादा और पैसा कम
केदारनाथ में श्रद्धालुओं का बोझ ढोने वाला पिट्ठू आदमी के वजन के हिसाब से लेता है. उदाहरण के तौर पर अगर आदमी का वजन 70 से 80 किलो है तो उसका आने-जाने का किराया 10 से 12 हजार हो सकता है. आदमी का वजन कम है तो उसका किराया कम भी हो जाता है. इसी तरह अगर किसी व्यक्ति का वजन ज्यादा है तो उसका किराया भी ज्यादा हो जाता है. किराया अलग-अलग पिट्ठू से बातचीत पर तय होता है.
पिट्ठू ने बताया कि यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं है. चढ़ाई के दौरान लंबे समय तक इतना भारी वजन उठाने की वजह से कई तरह की परेशानियों को सहना पड़ता है. कई बार इनके पैरों में बुरी तरह सूजन आ जाती है. शरीर ढीला पड़ जाता है. पूरे बदन में दर्द रहता है. फिर भी सेहत की चिंता किए बगैर ये पिट्ठू लगातार श्रद्धालुओं का बोझ ढोना जारी रखते हैं.
पिट्ठू ने बताया कि कई बार जब सवारी साथ हो और तबियत खराब हो जाए तो सवारी को दूसरी कंडी में शिफ्ट कर दिया जाता है. ऐसे में जहां तक पहले व्यक्ति ने सवारी को पहुंचाया, वहां तक का कोई पैसा उन्हें नहीं मिलता है. यानी आदमी बीमार तो पड़ता ही है, उसका मेहनताना भी मर जाता है.
नेपाल से आए एक पिट्ठू कमल बहादुर ने बताया कि गरीबी से परेशान होकर उसने यह पेशा चुना है. पिट्ठू ने बताया कि जरूरी नहीं उन्हें हर रोज कोई सवारी मिल ही जाए. कई बार हर रोज सवारी भी नहीं मिल पाती है. उसने कहा कि वह गरीबी से परेशान होकर केदारनाथ आया है. यहां से वह जितना पैसा कमाता है, सब घर भेज देता है.

कमल बहादुर ने आगे बताया कि गौरीकुंड से करीब 22 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है, जो आसान नहीं है. इसके बावजूद पैसों की जरूरत उन्हें ये काम करने के लिए मजबूर कर देती है. एक बार सवारी जब लेकर जाते हैं तो करीब एक सप्ताह तक शरीर में दर्द रहता है. लेकिन पैसे की जरूरत ऐसी है कि वह इस दर्द में भी ठहर नहीं सकता है. अपने परिवार का पेट पालने के लिए वो हर रोज इस दर्द का घूंट पीता है.