भारतीय संसद का शीतकालीन सत्र 2025, जो 25 नवंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलने वाला है. पर लगता है कि एक बार फिर ससंद में होने वाली बहस अनावश्यक राजनीतिक नाटक में फंस कर रह जाएंगी. इस सत्र में सरकार 14 विधेयक पेश करने का ऐलान कर चुकी है. संसद का शीतकालीन सत्र में कुल 15 बैठकें होने वाली हैं. इस दौरान केंद्र सरकार असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने समेत 14 विधेयकों को पेश करेगी, जिसमें बीमा कानून, दिवालिया कानून, कॉरपोरेट कानून, सिक्योरिटीज मार्केट, राष्ट्रीय राजमार्ग, उच्च शिक्षा आयोग, एटॉमिक एनर्जी, जीएसटी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सेस बिल पेश करने वाली है.
विपक्ष ने सरकार को घेरने की जबरदस्त तैयारी की हुई थी. पर वंदेमातरम और संचार सारथी के मुद्दे ने विपक्ष पर ऐसा स्ट्राइक किया है कि वो शायद ही इससे बाहर निकल सके. जाहिर है कि ये विधेयक पेश तो हो जाएंगे पर जिस तरह की बहस होनी चाहिए थी वह नहीं हो सकेगी. सरकार के पास बहुमत है वह अपने सभी विधेयक पास भी करा लेगी और विपक्ष बहिष्कार की राजनीति में सिमट कर रह जाएगा.
वंदे मातरम विवाद: राष्ट्रगीत की 150 वीं जयंती या राजनीतिक हथियार?
'वंदे मातरम' का जन्म 1882 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'आनंदमठ' से हुआ, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना. 1950 में संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत घोषित किया, लेकिन राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के साथ समान दर्जा दिया. केंद्र सरकार ने शीतकालीन सत्र में इसके 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा का प्रस्ताव रखा, तो यह मुद्दा फिर से गरमा गया. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 28 नवंबर को घोषणा की कि चर्चा के लिए 10 घंटे का समय अलॉट किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के प्रमुख नेता राहुल गांधी भी हिस्सा ले सकते हैं.
सरकार का तर्क था कि यह 'राष्ट्रीय एकता' का प्रतीक है, जो स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को जीवंत करेगा. लेकिन विपक्ष ने इसे 'राजनीतिक डायवर्जन' करार दिया. कांग्रेस ने कहा कि जब देश महंगाई, बेरोजगारी (7.8% आधिकारिक दर) और प्रदूषण (दिल्ली AQI 450+) से जूझ रहा है, तब 'वंदे मातरम' पर बहस 'नाकामी छिपाने' का तरीका है.
वंदे मातरम का कुछ अंश विवादास्पद रहा है और 2006 में भी AIMPLB ने इसका विरोध किया था. TMC ने सर्वदलीय बैठक में ही असहमति जताई, कहा कि यह 'राष्ट्रीय गान' नहीं, 'राष्ट्रीय गीत' है और किसी भी तरह की चर्चा की जरूरत नहीं है.
वंदेमातरम पर हुए एक और विवाद ने राजनीति गरमा दी है. हाल ही में जारी हुए संसद बुलेटिन में नियमों का हवाला देते हुए याद दिलाया गया है कि, सदन की कार्यवाही की गरिमा और गंभीरता को देखते हुए ‘थैंक्स’, ‘थैंक यू’, ‘जय हिंद’, ‘वंदे मातरम्’ या किसी भी अन्य नारे नहीं लगाए जाने चाहिए.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर पूछा कि सरकार को वंदे मातरम् से क्या आपत्ति है. इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भी सरकार पर हमला बोला था. सरकार इस विवाद के जरिए शायद प्रतिबंधित नारों की सूची से वंदेमातरम को हटाने की संभावना ढूंढ रही है.
संचार साथी ऐप: साइबर सिक्योरिटी या प्राइवेसी का उल्लंघन?
संचार साथी विवाद ने सत्र को और जटिल बना दिया. यह MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय) का ऐप है, जो साइबर सिक्योरिटी के लिए डिजाइन किया गया है जो फिशिंग, मैलवेयर डिटेक्शन और नेटवर्क मॉनिटरिंग के लिए काम करता है. 1 दिसंबर को सरकार ने अधिसूचना जारी की कि सभी नए स्मार्टफोन्स (5G सहित) में इसे प्री-इंस्टॉल अनिवार्य, हटाने पर जुर्माना लग सकता है.सभी कंपनियों को डेडलाइन भी दे दिया गया है.
सरकार का दावा है कि यह नागरिकों की सुरक्षा के लिए है. जैसे UPI ने फाइनेंशियल सिक्योरिटी दी उसी तरह यह कई तरह की सुरक्षा दे सकता है.लेकिन विपक्ष ने इसे 'सरकारी जासूसी' कहा है. कहा जा रहा है कि यह ऐप डेटा को सर्वर पर भेजेगा, जो RTI के दायरे से बाहर है. Apple ने विरोध जताया कि iOS पर प्री-इंस्टॉल संभव नहीं, जो US-India ट्रेड को प्रभावित कर सकता.
2 दिसंबर को लोकसभा में बहस हुई, जहां TMC के डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा कि संचार साथी नहीं, 'सेंसर साथी' है. हंगामा इतना कि सदन 3 बार स्थगित करना पड़ा. यह मुद्दा वंदे मातरम से जुड़ गया. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार सांस्कृतिक विवाद से ध्यान भटका रही, जबकि असली समस्या डिजिटल सर्विलांस है.
सुप्रीम कोर्ट के Puttaswamy जजमेंट (2017) ने प्राइवेसी को मौलिक अधिकार कहा, लेकिन सरकार ने 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का हवाला दिया. सत्र में IT मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बचाव किया. उन्होंने कहा कि यह वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य हैं क्योंकि साइबर थ्रेट बढ़े हैं. 2025 में 1.5 करोड़ साइबर अटैक हुए हैं. दिल्ली में हुए ब्लास्ट के बाद जिस तरह पूरे देश में विस्फोटक घूम रहे हैं उससे सरकार आतंकियों पर नियंत्रण के लिए इस तरह के ऐप के पक्ष में मजबूत तर्क रख सकती है.
जाहिर है कि इन मुद्दों ने सत्र की दिशा बदल दी है.वंदे मातरम और संचार साथी ने शीतकालीन सत्र को 'राष्ट्रीय बहस' से 'राजनीतिक थिएटर' बना दिया है. जहां वंदे मातरम ने सांस्कृतिक घावों को कुरेदा, वहीं संचार साथी ने डिजिटल युग की चिंताओं को उजागर किया.
विपक्ष की प्लानिंग पर चल गई छूरी
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने कहा था कि संसद की कार्यवाही अच्छी तरह से चलनी चाहिए और वह गतिरोध की स्थिति को टालने के लिए विपक्षी दलों के साथ बातचीत जारी रखेगी. पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी, डीएमके समेत कई पार्टियां संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी में है. शीतकालीन सत्र की शुरुआत जोरदार हंगामे और टकराव के साथ शुरू भी हो चुकी है. पर जिस तरह का माहौल बन रहा है उससे यही लगता है कि एक बार फिर संसद में सार्थक बहस होने की उम्मीद कम ही है.
विपक्ष सबसे पहले देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर प्रक्रिया के विरोध में एकजुट होकर सरकार पर चर्चा करने के लिए जोर डालने वाला था. हालांकि, सरकार एसआईआर पर बहस कराने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है. विपक्षी पार्टियां केंद्र पर मतदाता सूची से लाखों मतदाताओं के नाम काटने और वोट चोरी के आरोप लगा रही हैं. उनका कहना है कि सरकार एसआईआर के नाम पर पिछड़े, दलित, वंचित और गरीब वोटरों को लिस्ट में हटाकर अपनी मन के मुताबिक वोटर लिस्ट तैयार कर रही है.
पर आश्चर्यजनक रूप से सत्र की दिशा दो अप्रत्याशित मुद्दों 'वंदे मातरम' और 'संचार साथी'ने बदल दी है. ये मुद्दे न सिर्फ संसदीय बहस को ध्रुवीकृत कर गए, बल्कि विपक्ष की एकजुटता टूटी है. इतना ही नहीं सरकार को भी बचाव की मुद्रा में खड़ा किया है. वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर प्रस्तावित 10 घंटे की चर्चा और संचार साथी ऐप की अनिवार्यता ने सत्र को 'राष्ट्रीय गौरव' vs 'अधिकारों का हनन' की जंग में बदल दिया. परिणामस्वरूप, कई महत्वपूर्ण बिलों का अटकना तय हो गया है.