पंजाब में बीजेपी इस बार के लोकसभा चुनावों में पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही है. इस पर विवाद हो सकता है कि शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन तोड़ना पार्टी की रणनीति थी या अकालियों के साथ समझौता ही नहीं हो सका. पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि पार्टी अब इस राज्य में बिना किसी सहारे के अकेले खड़ा होना चाहती है. जिस तरह दूसरे दलों के मजबूत लोगों को पार्टी में शामिल करके चुनाव लड़ाया जा रहा है यह उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. पर सवाल यह है कि क्या इस तरह बीजेपी पंजाब में फतह हासिल कर लेगी. जैसी परिस्थितियां बन रही हैं उससे यह नहीं लगता कि बीजेपी कोई बहुत बड़ा कमाल करने जा रही है. राज्य भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ खुद कहते हैं कि यह चुनाव 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. उनका दावा है कि पार्टी इस बार अपने वोट शेयर में काफी सुधार करेगी और 2027 के चुनावों में जीत हासिल करेगी.
आइये कुछ कारणों की चर्चा करते हैं जिसके चलते ऐसा लग रहा है कि राज्य में बीजेपी भले सबसे बड़ी पार्टी न बन पाए पर अपना रिकॉर्ड तो जरूर सुधारेगी ही. पंजाब में बीजेपी का अधिकतम स्कोर 3 संसदीय सीटों का रहा है.देखना अब यही है कि क्या पंजाब पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर अपना नजरिया बदल पा रहा है. भाजपा हमेशा पंजाब में तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही है - होशियारपुर, जहां उसने पिछले दो चुनावों में जीत हासिल की है; गुरदासपुर, जिसे उसने 1998 से पांच बार हासिल किया है; और अमृतसर, जहां वह पिछले तीन चुनावों में हार चुकी है. पर इस बार बीजेपी पंजाब की 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
1-मालवा में क्यों दिख रही बीजेपी को उम्मीद
इंडिनय एक्सप्रेस अपनी एक रिपोर्ट में लिखता है कि पंजाब बीजेपी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ को मालवा इलाके से बहुत आशा है. पूरे मालवा क्षेत्र खासकर लुधियाना, बठिंडा, संगरूर और पटियाला जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में में व्यापारी समुदाय के चलते बीजेपी मजबूत हो रही है. बठिंडा जैसे बाजार का उदाहरण देते हुए अखबार लिखता है कि एक स्टॉल पर चाय पी रहे पुरुषों का एक समूह भाजपा के प्रति अपने समर्थन के बारे में बिना हिचक बात करता है. एक व्यापारी भरत जिंदल कहते हैं मोदी साहब ने देश के लिए चमत्कार किया है, दुनिया हमारा सम्मान करती है. एक शख्स कहते हैं शहर में डर का माहौल बन रहा है. वो कहते हैं कि हरजिंदर सिंह मेला की पिछले साल अक्टूबर में अपनी कुलचे की दुकान के बाहर बैठे हुए दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी, लेकिन हत्यारे अभी भी पकड़ से बाहर हैं. हम जबरन वसूली कॉल के बारे में अकसर सुन रहे हैं. ऐसे उद्योग हैं जो चुपचाप हरियाणा के बहादुरगढ़ में स्थानांतरित हो रहे हैं. स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोकने के लिए हमें मोदी की जरूरत है. व्यापारी अमृतपाल सिंह के उत्थान से भी डरे हुए हैं. सुनील बंसल, जो एक टायर डीलरशिप चलाते हैं, का दावा है कि शहर के 85% मतदाता मोदी जी के साथ हैं.
2-आप और कांग्रेस का अलग-अलग लड़ना
पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली की तरह एक साथ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. आम तौर पर ऐसा लगता है कि जब समान विचार वाले दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो इसका लाभ दूसरे दल उठाते हैं पर पंजाब में ऐसा होता नहीं दिख रहा है.पंजाब में दोनों ही पार्टियों को समाज के सभी वर्गों से वोट मिलते हैं, जबकि शिरोमणि अकाली दल ग्रामीण सिख वोटों पर और बीजेपी शहरी हिंदू वोटों पर बहुत अधिक निर्भर है. चूंकि अकाली दल और बीजेपी अब गठबंधन में नहीं हैं, किसी खास सीट को जीतने के लिए सभी पार्टियां चाहेंगी कि उनके प्रतिद्वंद्वियों का वोट बंट जाए. चूंकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का वोटर एक ही है, इसलिए एक पार्टी द्वारा दूसरे के वोट में सेंध लगाने की गुंजाइश काफी अधिक है. लेकिन पंजाब में जिस तरह से दोनों पार्टियां काम कर रही हैं उससे तो यही लगता है कि टॉप लेवल पर दोनों दलों में कुछ सहमति बनी हुई है. विशेषकर उम्मीदवारों के चयन को देखकर ऐसा लगता है कि दोनों ही दलों ने ऐसे प्रत्याशी खड़े किए हैं एक दूसरे के वोटिंग बेस में सेध लगाया जा सके.
फरीदकोट से कांग्रेस ने मौजूदा सांसद मोहम्मद सादिक को हटाकर अमरजीत कौर साहोके को मैदान में उतारा है. मोहम्मद सादिक एक लोकप्रिय लोक गायक और पंजाब में एक जाने-माने चेहरे हैं. वो भदौर से विधायक और फरीदकोट से सांसद रहे हैं. उन्हें टिकट न दिए जाने के पीछे उनकी उम्र को वजह बताया जा रहा है. लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनकी जगह जिसको लाया गया है राजनीतिक परिदृश्य में बहुत हल्का है क्योंकि इस सीट पर आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी मजबूत है. पार्टी ने कॉमिक एक्टर करमजीत अनमोल को मैदान में उतारा है, जो सीएम भगवंत मान के दोस्त हैं. सीएम इस सीट को लेकर काफी व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं.
यही कारण बै कि यबां और शिरोमणि अकाली दल के राजविंदर सिंह के बीच हो गया है. बीजेपी ने गायक हंस राज हंस को मैदान में उतारा है, जो उत्तर पश्चिमी दिल्ली से पार्टी के सांसद हुआ करते थे. लेकिन मुख्य रूप से ग्रामीण सीट पर उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
इसी तरह होशियारपुर,आनंदपुर साहिब, बठिंडा, लुधियाना और जालंधर में अपनाया गया है. जिस जगह पर कांग्रेस का कैंडिडेट मजबूद है वहां आप का कैंडिडेट मजबूत नहीं है. और जहां आप का कैंडिडेट मजबूत है वहां कांग्रेस का का उम्मीदवार मजबूत नहीं है. यह केवल अनुमान है कि दोनों ही दलों के बीच कोई अंदरूनी सहमति बनी हो.पर इसका ये मतलब भी निकलता है कि दोनों ही पार्टियां समझ रही हैं कि उनकों नुकसान हो सकता है. और वास्तव में अगर नुकसान होता है तो इसका फायदा बीजेपी को ही मिलने वाला है.
3-अयोध्या में मंदिर बनने का भी फायदा
इस बार पंजाब शिरोमणि अकाली दल के साथ नहीं होने से बीजेपी के लिए एक उम्मीद यह भी है कि अब तक जो हिंदू वोट कांग्रेस को मिलता रहा है वो बीजेपी को ओर जा सकता है. 39 परसेंट हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण अगर बीजेपी की ओर होता है तो भी काफी फायदे में आ सकती है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार लिखता है कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से भी पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी है.बरनाला-सिरसा रोड पर जेसीबी के स्पेयर पार्ट्स के डीलर मानव गोयल कहते हैं, मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्होंने कभी बीजेपी को वोट नहीं दिया था, वे केवल मंदिर के कारण उसे वोट देने की योजना बना रहे हैं. भाजपा उम्मीदवारों को उम्मीद है कि मंदिर मुद्दा प्रवासी वोटों को भी उनके पक्ष में करेगा. 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की आबादी में हिंदू 38.15% हैं, और विभिन्न प्रमुख राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासियों के पंजाब आने से यह संख्या बढ़ने का अनुमान है.अभी तक ये वोट कांग्रेस की ओर जाते रहे हैं.
4-पूरे राज्य में चतुष्कोणीय मुकाबला , कई जगहों पर पंचकोणीय भी
पंजाब में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी तो हर सीट पर फाइट कर रहे हैं. इसलिए राज्य की कुछ 13 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला तो है ही, पर पांच ऐसी सीटें हैं जहां पंचकोणीय मुकाबला भी हो रहा है. इसका कारण इन सीटों पर मजबूत निर्दलीयों और बीएसपी के कैडिडेट हैं. इन सीटों में सीएम भगवंत मान का इलाका संगरूर, जालंधर, पंथक माने जाने वाली खडूर साहिब की सीट के अलावा आनंदपुर साहिब व बठिंडा जैसी हॉट सीटें प्रमुख रूप से शामिल हैं. यहां पर कई दिग्गज मैदान में हैं, जिनमें पूर्व सीएम चरनजीत सिंह चन्नी, पूर्व केंद्रीय मंत्री व पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल, पंजाब के तीन कैबिनेट मंत्रियों गुरमीत सिंह मीत हेयर, लालजीत सिंह भुल्लर व गुरमीत सिंह खुडि़्डयां के अलावा पूर्व मंत्री विजयइंदर सिंगला, बसपा के पंजाब इकाई के प्रमुख जसवीर सिंह गढ़ी, पूर्व विधायक जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू व पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा फंसे हुए हैं. उम्मीद की जा रही है कि इसका फायदा कुछ सीटों पर बीजेपी को मिल सकता है.