इसे चीन की आर्थिक विकास में भारी गिरावट समझें या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन का घटता महत्व कि उसे अब भारत की तारीफ करने में भी संकोच नहीं है. ग्लोबल टाइम्स भारत के खिलाफ चीनी विद्वानों के जहर उगलने का अड्डा रहा है. चाहे G20 का शिखर सम्मेलन रहा हो या चंद्रयान की लांचिंग, भारत की किसी भी फील्ड में हुई तरक्की पड़ोसी चीन की पचती नहीं रही है. यहां तक की अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन का भारत आने का प्लान कैंसल होता है तो इस पर चीन खुश होता रहा है. पर अब यही चीनी सरकार का प्रवक्ता अखबार भारत और भारत के प्रधानमंत्री की भूरी-भूरी तारीफ कर रहा है. चीनी सरकार के इस भोंपू में अचानक हुए इस परिवर्तन के पीछे कहानी क्या है? क्या चीन नए सिरे से भारत के साथ अपने संबंधों को ठीक करना चाहता है. क्या चीन को ऐसा लग रहा है कि भारत में होने वाले लोकसभा चुनावों के बाद एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बनने वाले हैं तो जयगान अभी से शुरू कर दिया जाए?
कैसे बदल गया नजरिया, अब क्या लिखा है जो भारत के लिए मायने रखता है
भारत की हर तरक्की पर जहर उगलने वाला अखबार लिखता है कि भारत आज दुनिया की तेजी से बढ़ती शक्ति है. ग्लोबल टाइम्स ने शंघाई की फुडन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक झांग जियाडोंग लिखते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में आर्थिक, विदेश नीति के क्षेत्र में भारत लगातार प्रगति् कर रहा है. झांग पिछले 4 साल की उपलब्धियों का विशेष तौर पर जिक्र करते हुए मजबूत आर्थिक वृद्धि, शहरी शासन में सुधार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हुई उल्लेखनीय प्रगति की प्रशंसा करते हैं.
झांग कहते हैं कि चीन और भारत के बीच व्यापार असंतुलन पर चर्चा करते समय भारतीय प्रतिनिधि पहले मुख्य रूप से व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए चीनी उपायों पर ध्यान केंद्रित करते थे, लेकिन अब वे भारत की निर्यात क्षमता पर अधिक जोर दे रहे हैं.
तेजी से बढ़ते आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ भारत रणनीतिक रूप से अधिक आश्वस्त हो गया है. अब भारत 'भारत नैरेटिव' बनाने और इसे डेवलप करने में ज्यादा एक्टिव हो गया है. यह भारत की ऐतिहासिक औपनिवेशिक छवि से बचने के साथ ही राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से 'विश्व गुरु' के रूप में कार्य करने की अपनी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.
चीनी अखबार के लेख में पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति की सराहना की गई है. जिसमें अमेरिका, जापान और रूस जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर डाला गया है. ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि विदेश नीति में भारत की रणनीतिक सोच में एक और बदलाव आया है और वह स्पष्ट रूप से एक महान शक्ति रणनीति की ओर बढ़ रहा है. हालांकि भारत को बहु-संतुलन से मल्टी एलाइनमेंट में शिफ्ट हुए 10 साल से भी कम समय हुआ है और अब यह बहुध्रुवीय दुनिया में एक ध्रुव बनने की रणनीति की ओर तेजी से बढ़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इतिहास में इस तरह के बदलाव की गति कम ही देखने को मिलती है.
क्या मोदी के आने के आहट से बदले सुर
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिर से पीएम बनने की संभावना के चलते ये बदलाव हुआ है. क्या चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने रिश्ते पीएम मोदी के साथ फिर से सुधारने चाहते हैं. क्योंकि इस ऑर्टिकल में लेखक घूम फिरकर पिछले 4 साल की उपलब्धियों पर फोकस करता है. या पिछले 10 सालों में आए बदलावों की बात करता है. मतलब भारत की सारी प्रगति को वो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल से जोड़कर देखता है. ऑर्टिकल पढ़ते हुए यह लगता है कि व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी की तारीफ करने के लिए चीनी सरकारी मीडिया से यह लिखवाया गया हो. ऐस संभव भी हो सकता है. हर देश में स्थित दूतावास अपनी सरकारों को उस देश के भविष्य के बारे में बताते रहते हैं. जिसके आधार पर कोई भी देश दूसरे देश के साथ अपने संबंधों को रिडिफाइन करते रहे हैं. 2014 के पहले अमेरिकी राजदूत नरेंद्र मोदी से मिलने गुजरात पहुंच गए थे. क्योंकि अमेरिका को ये लगने लगा था कि अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनने वाले हैं.
पहले क्या रहा है ग्लोबल टाइम्स का भारत के लिए नजरिया
अभी दो दिन पहले ही चीनी कंपनियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच को लेकर ग्लोबल टाइम्स भड़का हुआ था. वहां लिखा गया था कि भारत जानबूझकर चीनी स्वामित्व वाली कंपनियों को निशाना बना रहा है. दरअसल भारत में ईडी ने चीनी कंपनियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में 19 जगहों पर छापेमारी की थी. ये चीनी कंपनियां भारत में व्यापार से कमाए हुए धन पर न सिर्फ टैक्स चोरी कर रही हैं, बल्कि उन पैसों को गलत तरीकों से देश के बाहर भी भेज रही थीं.
अखबार लिखता है कि ऐसी जांच भारत को विदेशी कंपनियों के लिए कब्रिस्तान के रूप में बदल रही है. अपने तथाकथित विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कहता है कि चीनी कंपनियों के खिलाफ भारत की जांच पूरी तरह से राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हैं. ग्लोबल टाइम्स ने G20 के आयोजन के समय भी वैश्विक सुर्खियों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए एक लंबा-चौड़ा एंटी इंडिया आर्टिकिल छापा था.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल नहीं होने पर इस अखबार ने लिखा 'क्या भारत-अमेरिका का हनीमून खत्म होने वाला है?' बाइडेन की यात्रा न होना ग्लोबल टाइम्स ने भारत के लिए एक बड़ी डिप्लोमैटिक हार के तौर पर देखा. इतना ही नहीं भारत को नसीहत भी दी कि अमेरिका से संबंध न रखने के तीन फायदे हैं. सबसे पहला फायदा कि अमेरिका को भारत से स्मार्ट इंजीनियर मिल जाते हैं. दूसरा, भारत एक बड़ी मार्केट है, जो अमेरिका की ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया वेबसाइटों को फायदा देता है. तीसरा, नैरेटिव कंट्रोल क्योंकि सीएनएन के जरिए वह भारत के थिंकटैंक को कंट्रोल करता है. अखबार ने लिखा कि अमेरिका भारत को चीन का विकल्प बनाना चाहता है, पर भारत की मैन्युफैक्चरिंग चीन से 20 साल पीछे है.
चीन की खराब आर्थिक हालत
चीन के रूख में बदलाव का एक और भी कारण है. वह है दिन प्रतिदिन खराब होती चीन की अर्थव्यवस्था.चीन की इकॉनमी अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. चीन की स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज ( SAOFE) ने पिछले दिनों चीन की बीमार अर्थव्यवस्था की पोल खोलकर रख दी थी. चीन में विदेशी निवेश लगातार घटता जा रहा है. विदेशी कंपनियां चीन से मुंह मोड़कर बाहर निकल रही है. पिछले साल 2023 में चीन में विदेशी निवेश माइनस में पहुंच गया था.विदेशी कंपनियां अपनी बोरिया बिस्तर समेट रही हैं.बीते कुछ दिनों में बड़ी कंपनियां जैसे ऐपल, टेस्ला, माइक्रॉन, फॉक्सकॉन जैसी बड़ी कंपनियां भारत में अपने कारोबार को बढ़ा रही है 1998 के बाद से चीन का एफडीआई गेज पहली बार निगेटिव में पहुंच गया. चीन का बैंकिंग सेक्टर, रियल एस्टेट सेक्टर सबकी हालत खराब है. महंगाई कम होने बावजूद लोग खरीदारी नहीं कर रहे हैं. चीन में सितंबर 2023 में 21.3 फीसदी युवा बेरोगजार थे.
आंतरिक विरोध और ग्लोबल कूटनीति में पिछड़ता चीन
भारत के प्रति नरम रुख दिखाने का एक और कारण यह है कि चीन में शी जिनपिंग के प्रति विरोध बढ़ता जा रहा है. चीनी नागरिकों को भी यह लगता है कि उनकी सरकार भारत से बेवजह पंगा ले रही है. क्योंकि भारत ने कभी भी चीन के साथ साम्राज्यवादी रवैया नहीं अपनाया है. चीन की मीडिया अपने देशवासियों को यह दिखानी चाहती है कि हम तो भारत की तारीफ करते ही हैं, भारत ही हमसे बैर भाव रखता है. भारत लगातार चीन से अपने निर्यात कम करता जा रहा है. पहले भारत के बाजार जिस तरह चीनी सामानों से पट गए थे उसमें कमी आ रही है. इसके कारण चीनी उत्पादकों पर बहुत बुरी मार पड़ी है. भारत ही नहीं यूरोप, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में भी चीनी इम्पोर्ट घटा है. इसके साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी चीन की महत्ता घटी है.