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MP का PWD विभाग: कभी ब्रिज से चौंकाए, गलत आदेश से भ्रम फैलाए, न नक्शा सही, न फैसला साफ, बस ‘Engineering of Confusion’ का विस्तार

लोक निर्माण विभाग का काम सड़कें, पुल, इमारतें बनाना है, जिससे राज्य को गतिशील रखा जा सके. लेकिन हाल ही में PWD अपने अजीबोगरीब फ़ैसलों की वजह से सुर्खियों में है. इसका एक उदाहरण भोपाल का 90-डिग्री रेलवे ओवरब्रिज है.

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मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के अजीबोगरीब फैसले (Photo: ITG)
मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के अजीबोगरीब फैसले (Photo: ITG)

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में अगर कोई एक विभाग है, जो जनता से सबसे ज़्यादा सीधे तौर पर जुड़ा है, तो वह है लोक निर्माण विभाग, जो PWD के नाम से जाना जाता है. सड़कें, पुल, इमारतें, राज्य को गतिशील और जोड़े रखने वाली हर चीज़ इसका काम है लेकिन हाल ही में PWD अपने अजीबोगरीब फ़ैसलों की वजह से सुर्खियों में है. इसका एक उदाहरण भोपाल का 90-डिग्री रेलवे ओवरब्रिज है. इस पुल की टर्निंग ऐसी है कि राहगीरों को चोट भी आ सकती है.

यह पुल राष्ट्रीय मनोरंजन का मुद्दा बन गया. विभाग ने एक उदासीन चुप्पी साधे रखी, मानो गलती स्वीकार करने से जवाबदेही के बोझ तले पूरा पुल ही ढह जाएगा. आखिरकार, चर्चा इतनी बढ़ गई कि खुद मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा और विभाग को गंभीरता और सुशासन की याद दिलानी पड़ी. तभी पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने पलकें झपकाईं और पुल को फिर से डिज़ाइन करने की पेशकश की. 

PWD के अजीबोगरीब फैसले...

90 डिग्री वाला पुल तो बस एक ट्रेलर था, क्योंकि जब नौकरशाही की ब्लॉकबस्टर फिल्मों की बात आती है, तो मध्य प्रदेश का लोक निर्माण विभाग कभी निराश नहीं करता. विभाग ने हाल ही में रेलवे ओवरब्रिज, फ्लाईओवर और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण पर लंबी बैठकें की. क्या चर्चा हुई? कोई नहीं जानता, लेकिन क्या निकला? एक चौंकाने वाला और राज्य भर में चल रही सभी निर्माण परियोजनाओं को रोकने का आदेश. क्यों? क्योंकि हर एक परियोजना की सामान्य व्यवस्था ड्राइंग रद्द कर दी गई थी. आदेश में कहा गया कि मध्य प्रदेश भर के सामान्य प्रशासन विभागों में तकनीकी खामियां पाई गई हैं. इसने एक बड़ा सवाल उठाया: क्या पूरे राज्य का बुनियादी ढांचा दोषपूर्ण ब्लूप्रिंट पर चल रहा था?

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स्वाभाविक रूप से, इससे एक अहम सवाल उठा कि क्या राज्य की सभी परियोजनाओं के लिए जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग (GAD) गलत थे? इस आदेश से विभागों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और इंजीनियरिंग समुदाय में भी चिंताएं बढ़ गईं, लेकिन इससे पहले कि मामला और बिगड़ता, लोक निर्माण विभाग ने चुपचाप निर्देश वापस ले लिया. बाद में, विभाग के चीफ इंजीनियर ने माना कि एक बड़ी गलती हुई थी. सभी जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग्स रद्द करने का आदेश गलती से जारी किया गया था.

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आइए पूरी प्रक्रिया पर बात करते हैं, क्योंकि यह कोई एकाध गलती या देर रात की टाइपिंग की गलती नहीं थी. सभी सामान्य व्यवस्था आदेशों को रद्द करने का आदेश यूं ही अचानक नहीं आ गया. यह पूरी सरकारी निर्णय प्रक्रिया से गुज़रा: बैठकें हुईं, चर्चाएं हुईं, मसौदों की समीक्षा हुई, आदेश छपा, इंजीनियरों ने उसे पढ़ा और आगे बढ़ाया और आखिरकार चीफ इंजीनियर ने उस पर हस्ताक्षर करके उसे ऑफिशियल बना दिया. फिर भी, किसी तरह, इस पूरी आदेश-प्रक्रिया के दौरान, किसी ने भी यह सवाल नहीं पूछा कि क्या यह एक वैध आदेश है भी? किसी भी अधिकारी, किसी भी इंजीनियर ने इस निर्देश को समस्याजनक नहीं बताया. जनता की तीखी प्रतिक्रिया और व्यापक भ्रम के बाद ही विभाग ने एक कदम पीछे हटकर यह महसूस किया कि कुछ बहुत गलत हो गया है. आदेश चुपचाप वापस ले लिया गया.

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इसके बाद एक नया आदेश आया, जिस पर विडंबना यह है कि उसी चीफ इंजीनियर ने हस्ताक्षर किए थे, जिसने मूल आदेश को मंज़ूरी दी थी. इस बार, निर्देश में साफ किया गया कि कोई भी जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग रद्द नहीं किया गया है. बल्कि, यह एक कदम और आगे बढ़कर यह स्वीकार किया गया कि विभाग को अकेले तो कभी भी सभी को रद्द करने का अधिकार नहीं था.

एक ज़रूरी सवाल उठता है कि जब चीफ इंजीनियर ने मूल रद्दीकरण पर हस्ताक्षर किए, तो क्या वह क्षण भर के लिए उन्हीं नियमों को भूल गए थे जिनका पालन करने का दायित्व उन पर था? इसके बाद जनता में फैले भ्रम के जवाब में, मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने लगभग सीधे तौर पर हस्तक्षेप किया और सभी को आश्वस्त किया कि कुछ भी रोका, रद्द या स्थगित नहीं किया गया है. 

इंजीनियर्स को फिर से ट्रेन्ड किया जा रहा है, नए दिशानिर्देश प्रसारित किए जा रहे हैं, और साइट पर निगरानी कैमरे जैसे उच्च-तकनीकी समाधानों की खोज की जा रही है. यह लोक निर्माण विभाग के लिए एक नया अध्याय है, जहां अगर कुछ गलत होता है, तो कम से कम एक सुसंगठित समिति होगी, जो यह साफ तौर से बताएगी कि ऐसा क्यों नहीं किया जाना चाहिए था.

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भोपाल के बाद इंदौर भी सुर्खियों में...

मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग इंजीनियरिंग से जुड़ी अपनी जिज्ञासाओं की बढ़ती लिस्ट में लगातार इजाफा कर रहा है. भोपाल के बाद, अब ध्यान इंदौर की ओर गया है. यहां एक नया रेलवे ओवरब्रिज अपने असामान्य लेआउट के कारण लोगों को हैरान कर रहा है, जिसमें दो बेहद तंग मोड़ शामिल हैं. स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों ने गंभीर सुरक्षा चिंताओं को उठाया है, जिसके चलते सांसद शंकर लालवानी ने लोक निर्माण मंत्री को पत्र लिखकर बदलाव की गुजारिश की है. जवाब में, विभाग इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि सब कुछ तकनीकी मानदंडों के मुताबिक है, और इसके लिए मोड़ के कोण, गति सीमा और ज़मीन की उपलब्धता का हवाला दे रहा है.

लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह अपने अजीबोगरीब बयान 'जहां सड़कें हैं, वहां गड्ढे होंगे' के बाद विपक्ष के आरोपों में घिर गए थे. उन्होंने इंदौर के पुल डिजाइन पर उठते सवालों पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि डिज़ाइन सभी मानकों का अनुपालन करता है. उन्होंने दावा किया कि मोड़ उतना गड़बड़ नहीं है, जितना दिखता है. यानी कि मंत्री मान रहे हैं कि गड़बड़ थोड़ा दिखता है लेकिन असल में ऐसा नहीं है.

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विडंबना यह है कि भोपाल में अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पूरे देश में पुल के डिजाइन की किरकिरी होने और मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद ही की गई. अब, एक बार फिर PWD विभाग नई समितियां तैयार कर रहा है, लेकिन क्या वे निर्माण से पहले ही अजीबोगरीब डिज़ाइन्स को आकार लेने से रोकेंगी या फिर  पुल/फ्लाईओवर निर्माण के बाद ही पहुंचेंगी. इस बीच, ट्रैफिक बेहतर करने के लिए बनाए गए पुल जनता के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं, जबकि लोक निर्माण विभाग पहले निर्माण और बाद में स्पष्टीकरण देने का अपना तरीका अपना रहा है. आगे देखने वाली बात होगा कि ये सिस्टम आखिर कब तक ठीक हो पाएगा.

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