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'वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा...', बोले शशि थरूर

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 'प्रोजेक्ट सिंडिकेट' पर पब्लिश हुए आर्टिकल में वंशवादी राजनीति को भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है. थरूर ने योग्यता आधारित राजनीति और पार्टी के अंदर चुनावी सुधारों की जरूरत बताई.

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शशि थरूर ने वंशवाद की राजनीति पर बात करते हुए पड़ोसी देशों का भी जिक्र किया. (File Photo: PTI)
शशि थरूर ने वंशवाद की राजनीति पर बात करते हुए पड़ोसी देशों का भी जिक्र किया. (File Photo: PTI)

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने वंशवादी राजनीति की आलोचना करते हुए एक आर्टिकल लिखा है. इसमें उन्होंने कहा, "वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है." यह आर्टिकल 'प्रोजेक्ट सिंडिकेट' पर 'इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फैमिली बिजनेस' शीर्षक के तहत प्रकाशित हुआ है. थरूर ने कहा है कि वंशवादी राजनीति ने इस विचार को मजबूत कर दिया है कि राजनीतिक नेतृत्व जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है.

थरूर ने कहा कि यह समय है कि भारत वंशवाद के बजाए योग्यता को अपनाए. इसके लिए कानूनी रूप से जनादेशित कार्यकाल सीमा और सार्थक आंतरिक पार्टी चुनावों जैसे मौलिक सुधारों की जरूरत है. 

उन्होंने कहा कि जब तक भारतीय राजनीति एक पारिवारिक उद्यम बनी रहेगी, तब तक सच्चा लोकतंत्र पूरी तरह से हासिल नहीं किया जा सकता.

जन्मसिद्ध अधिकार बन गया राजनीतिक नेतृत्व

थरूर ने लिखा कि यह विचार हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर भारतीय राजनीति में गहराई से समा गया है. यह विश्वास कि राजनीतिक राजवंशों के सदस्य नेतृत्व के लिए अद्वितीय रूप से उपयुक्त हैं, भारत के शासन के ढांचे में बुरी तरह से बुना गया है. जब निर्वाचित पद को पारिवारिक विरासत की तरह माना जाता है, तो शासन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. 

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हर पार्टी-राज्य में यही हाल

थरूर ने लेख में कहा कि कांग्रेस से जुड़े गांधी परिवार के अलावा, कई राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति है. उन्होंने तमिलनाडु में डीएमके, ओडिशा में बीजेडी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और महाराष्ट्र में शिव सेना का उदाहरण दिया. थरूर ने यह भी कहा कि ममता बनर्जी और कुमारी मायावती जैसी महिला राजनेताओं ने भी अपने भतीजों को अपना उत्तराधिकारी चुना है, जिनका कोई प्रत्यक्ष वारिस नहीं है.

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शशि थरूर ने कंहा कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है. जब राजनीतिक शक्ति योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी जुड़ाव के बजाय वंशावली से निर्धारित होती है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. केवल उपनाम के आधार पर कैंडिडेट्स के सेलेक्शन सही नहीं है. राजवंशों के सदस्य आम लोगों की चुनौतियों से असुरक्षित रहते हैं, इसलिए वे अक्सर अपने मतदाताओं की जरूरतों का प्रभावी ढंग से जवाब देने में असमर्थ होते हैं.

पड़ोसी देशों में भी वंशवाद

शशि थरूर ने आर्टिकल में कहा है कि इस तरह की वंशवादी राजनीति का अभ्यास पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है. पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ, बांग्लादेश में शेख और जिया परिवार और श्रीलंका में बंदरनायके और राजपक्षे. थरूर ने कहा कि भारतीय राजनीतिक दल मुख्य रूप से व्यक्तित्व पर आधारित होते हैं (कुछ अपवादों को छोड़कर). नेतृत्व-चयन प्रक्रियाएं अक्सर अपारदर्शी होती हैं, जिसमें फैसले एक छोटे से गुट या एकल नेता द्वारा लिए जाते हैं. परिणामस्वरूप, भाई-भतीजावाद आमतौर पर योग्यता पर हावी रहता है.

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