दिल्ली हर साल की तरह इस साल भी प्रदूषण की संकट से जुझ रही है. इस बीच दिसंबर के महीने में दिल्लीवालों के लिए एक और नई सौग़ात आ गई है - अब उन्हें जहरीली हवा के साथ कोहरे का भी पैकेज डील मिल रहा है.
हालात बद से बदतर हो गए हैं. राजधानी और एनसीआर के ज्यादातर इलाकों में हवा की क्वालिटी बेहद गंभीर श्रेणी में है. ऐसे बहुत ही कम इलाके हैं जहां एक्यूआई स्तर 300 के नीचे हो.
मौसम विभाग के भविष्यवाणी और डराने वाली है. वेंटिलेशन इंडेक्स (हवा के फैलने की मापने की क्षमता) की बात करें तो दिल्ली में यह 800 m²/s तक गिर गया है, जबकि अगर यह स्तर 6000 m²/s से कम होता है तो बेहद ख़तरनाक माना जाता है.
दिल्ली में हवा की रफ्तार 5 किमी प्रति घंटे से भी कम हो रही है, यानि हवा दिल्ली में भी रहने से डर गई है. मौसम विभाग की मानें तो शनिवार तक दिल्ली-एनसीआर में सुबह के समय उथला कोहरा और आंशिक रूप से बादल छाए रहेंगे, और हवा की क्वालिटी 'बहुत ख़राब' श्रेणी में रहेगी.
दमघोंटू हवा: कई इलाकों में AQI गंभीर स्तर पार
सुबह 8 बजे के आंकड़ों के मुताबिक, कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) खतरनाक स्तर से भी ऊपर पहुंच गया. सबसे खराब हवा दीप विहार में दर्ज हुई जहां AQI 850 तक पहुंच गया. यह स्तर स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है. भलस्वा लैंडफिल क्षेत्र में AQI 550, रोहिणी सेक्टर में 631, आईटीआई जहांगपुरी में 690, और अशोक विहार में 754 दर्ज किया गया.

नई दिल्ली इलाके में भी हवा की स्थिति चिंताजनक रही और AQI 431 रिकॉर्ड किया गया, जो ‘सीवियर’ कैटेगरी में आता है.
लगातार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता अब लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रही है और विशेषज्ञों ने बुजुर्गों, बच्चों और सांस की बीमारी से जूझ रहे लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी है.
स्वास्थ्य पर संकट: डॉक्टरों की चेतावनी
डॉक्टरों ने बढ़ते प्रदूषणको सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए संकट बताया है. इस संकट की मार सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं, बच्चों और उम्रदराज व्यक्तियों पर पड़ता है.
गर्भवती महिलाओं पर प्रदूषण का असर बहुत तेज से पड़ रहा है. PM2.5 बढ़ने से समय से पहले प्रसव का खतरा 70 प्रतिशत और कम वजन वाले बच्चों के जन्म का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. हर 10 माइक्रोग्राम PM2.5 की बढ़ोतरी से समय से पहले जन्म का जोखिम 12 प्रतिशत बढ़ जाता है. बच्चों में अस्थमा, एलर्जी और विकास संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं. डॉक्टरों का कहना है कि यह स्थिति अब दिल्ली का नया नॉर्मल बनती जा रही है, जो बेहद चिंताजनक है.
आर्थिक और सामाजिक तबाही
प्रदूषण ने दिल्ली की अर्थव्यवस्था को भी झटका दिया है. व्यापारिक इलाकों में 20 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है. साउथ एक्स, सदर बाजार, कमला नगर और पीतमपुरा जैसे इलाकों में दुकानों पर ग्राहक कम आ रहे हैं.

पर्यटन, ऑटो बिक्री और निर्माण जैसे सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. मेडिकल खर्च बढ़ रहा है और कामकाजी लोगों की उत्पादकता कम हो रही है.
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सरकार के 'अदम्य प्रयास'
सरकारी स्तर पर GRAP लागू किया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इसका इंप्लीमेंटेशन पूरी तरह असफल रहा है. दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों का प्रवेश रोकने में भी बड़ी चूक सामने आई है. CAQM ने यह कहकर स्टेज 3 हटाया कि AQI 327 तक सुधरा है, जबकि 300 प्लस स्तर को भी खतरनाक माना जाता है. यही वजह है कि लोग सरकारी तर्कों पर सवाल उठा रहे हैं.
ठंड के साथ कोहरा और प्रदूषण की दोहरी मार
दिल्ली-NCR की सर्दी इस बार सिर्फ ठंड नहीं, बल्कि प्रदूषण और कोहरे की दोहरी परेशानी लेकर आ रही है. पॉल्यूशन का स्तर पहले ही खतरनाक बना हुआ है और अब घना कोहरा शुरू होने से हालात और बिगड़ने वाले हैं.
हवा में मौजूद ज़हरीले कण कोहरे के साथ नीचे ही फंस जाते हैं, जिससे सुबह-शाम स्मॉग की मोटी परत दिखाई देने लगी है. इस जहरीली हवा में सांस लेना बेहद मुश्किल होगा, खासकर उन लोगों के लिए जिनके फेफड़े पहले से कमजोर हैं. ऐसे लोगों में खांसी, सांस फूलना, अस्थमा का अटैक और सीने में जकड़न जैसी समस्याएं और बढ़ सकती हैं.

इस मौसम का सबसे बड़ा असर लोगों की सेहत और रोजमर्रा की ज़िंदगी पर पड़ेगा. कोहरे और स्मॉग की वजह से विजिबिलिटी कम होने पर सड़क हादसों का खतरा बढ़ जाता है. ट्रैफिक जाम आम हो सकते हैं और स्कूल या दफ्तर पहुंचना पहले से ज्यादा मुश्किल हो जाएगा.
विशेषज्ञों की सलाह है कि बाहर निकलने वाले लोग खासकर बुजुर्ग, बच्चे और गर्भवती महिलाएं मास्क का इस्तेमाल जरूर करें. लंबे समय तक इस तरह की जहरीली हवा में रहने से गंभीर बीमारियां बढ़ सकती हैं. कुल मिलाकर, सर्दी का यह मौसम सिर्फ रजाई और चाय के लिए नहीं, बल्कि मास्क, इनहेलर और एयर प्यूरीफायर के लिए भी तैयार रहने का समय बन गया है.
दिल्ली के आस-पास के इलाकों का भी बुरा हाल
दिल्ली के आस-पास वाले राज्यों का भी प्रदूषण से बुरा हाल है. पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी प्रदूषण का लेवल हाई है. इस वजह से इन इलाकों में सुबह-शाम धुंध और स्मॉग की चादर छाई रहती है, जिसके चलते विजिबिलिटी घटने के साथ-साथ लोगों को सांस लेने में दिक्कत, खांसी, आंखों में जलन और सीने में जकड़न जैसी दिक्कतें बढ़ गई हैं.
भारत आधी क्षमता से प्रदूषण से लड़ रहा है!
भारत में प्रदूषण नियंत्रण निगरानी एजेंसियां गंभीर स्टाफ की कमी से जूझ रही हैं. संसद के आंकड़ों (8 दिसंबर, 2025) के अनुसार, देशभर में कुल 3,161 पद रिक्त हैं जबकि 6,932 स्वीकृत पद हैं.

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) में 393 स्वीकृत पदों में से 64 रिक्त हैं. हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) के समक्ष है, जहां 6,137 स्वीकृत पदों में से 2,921 पद खाली पड़े हैं. प्रदूषण नियंत्रण समितियों (PCCs) में भी 402 स्वीकृत पदों में 176 रिक्तियां हैं.
यह कमी पर्यावरण निगरानी और प्रदूषण नियंत्रण तंत्र की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है. स्टाफ की कमी के चलते प्रदूषण जांच, पर्यावरणीय मानकों का पालन और उल्लंघनों पर कार्रवाई प्रभावित हो रही है.
कोहरा और पॉल्यूशन का कॉम्बो: कब बाहर निकलना सुरक्षित और कब बिल्कुल नहीं?
दिल्ली-NCR में बढ़ते स्मॉग और गिरते तापमान की वजह से वीकेंड पर बाहर घूमने-फिरने की प्लानिंग पहले जैसी सुरक्षित नहीं रही. खासकर सुबह और रात के समय हवा सबसे ज्यादा जहरीली हो जाती है. कोहरा घना होने लगता है और तापमान गिरते ही प्रदूषक कण हवा की निचली परतों में जम जाते हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक, सुबह 6 से 10 बजे और रात 8 बजे के बाद AQI सबसे खराब रहता है. इसकी वजह है कि इन घंटों में हवा की गति बेहद धीमी होती है, जिससे ज़हरीले कण ऊपर उठ नहीं पाते और हवा में धुंधलापन बढ़ जाता है. इसी समय विजिबिलिटी भी घट जाती है, जिससे सड़क हादसों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
अगर बाहर निकलना जरूरी हो, तो N95 या N99 मास्क पहनकर ही निकलें. बुजुर्ग, बच्चे और जिन लोगों को अस्थमा, एलर्जी या सांस की बीमारी है, उन्हें इन घंटों में घर से बाहर न निकलने की सख्त सलाह दी जाती है.