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चुनाव आयोग का काम लोगों की नागर‍िकता टेस्ट करना नहीं... सुप्रीम कोर्ट में SIR सुनवाई पर बोले सिंघवी

सुप्रीम कोर्ट में बिहार SIR केस की सुनवाई में सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग की शक्तियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ECI को RP एक्ट के तहत सीमित रहना चाहिए और नियमों के खिलाफ कदम नहीं उठाना चाहिए. कोर्ट ने भी इस मामले में सवाल किए और कहा कि SIR का पावर चुनाव आयोग को नहीं मिलना चाहिए. अगली सुनवाई में ECI का जवाब सुना जाएगा

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सिंहवी का आरोप: 'ECI हर युवा को टेम्पररी रेजिडेंट बता रहा है'
सिंहवी का आरोप: 'ECI हर युवा को टेम्पररी रेजिडेंट बता रहा है'

सुप्रीम कोर्ट में बिहार SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) केस की सुनवाई तेज हो गई है. सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने पिछले हफ्ते से आगे अपनी दलीलें जारी रखीं. उन्होंने चुनाव आयोग (ECI) पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि आर्टिकल 324 के तहत ECI की ताकत RP एक्ट (रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट) से बंधी हुई है. आयोग को नॉन-एग्जीक्यूटिव पावर का इस्तेमाल तब नहीं करना चाहिए जब कानून और नियम पहले से मौजूद हों.

सिंघवी ने कोर्ट को बताया, 'ECI नियमों के खिलाफ नहीं चल सकता. किसी भी कानून में जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों पर विचार करने की इजाजत नहीं है. जून 2025 तक तो सिर्फ फॉर्म 7 था, फिर अचानक ये 11 दस्तावेजों का सिस्टम ला दिया. अगर ECI को अब नियम बदलने की छूट मिल गई तो कल को नए नियम लाने से कौन रोकेगा?'

ECI की ताकत पर सवालों की बौछार

सिंघवी ने आगे कहा कि ECI की पावर फॉर्म 7 के तहत ही है. वो 1987 से 2005 के बीच पैदा हुए हर शख्स को 'टेम्पररी रेजिडेंट' घोषित कर रहे हैं. ये RP एक्ट को बायपास करने वाला व्यापक और अभूतपूर्व कदम है. पूरे राज्य स्तर पर ये एक्सरसाइज कर रहे हैं, जो आर्टिकल 327 की सख्ती को नजरअंदाज कर रहा है.

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उन्होंने जोर देकर कहा कि ECI नागरिकता के मुद्दे उठा रहा है, जो RP एक्ट के तहत इंडिविजुअल क्वासी-ज्यूडिशियल प्रोसेस से बिल्कुल उलट है. ECI को एन मास रिवीजन करने का हक नहीं. RP एक्ट कहता है कि रिवीजन सिर्फ एक कांस्टीट्यूएंसी या उसके हिस्से तक सीमित हो सकता है.

कोर्ट ने बीच में सवाल किया कि क्या ECI को अपने नियमों के मुताबिक स्पेशल रिवीजन कराने की ताकत है या RP एक्ट के मुताबिक ही चलना पड़ेगा? सिंघवी ने सीधा जवाब दिया कि नहीं, माय लॉर्ड. उन्हें कांस्टीट्यूएंसी वाइज ही चलना होगा. इतिहास में सिर्फ एक SIR हुआ था- ठाकुरद्वारा में. बाकी सब इंटेंसिव रिवीजन थे.

बूथ लेवल पर सख्ती का पुराना तरीका

सिंघवी ने ठाकुरद्वारा वाले SIR का जिक्र किया, 'वहां डोर-टू-डोर मल्टीपल विजिट्स हुए थे. आर्टिकल 14 का बेसिक सिद्धांत एंटी-डिस्क्रिमिनेशन, इक्वालिटी, रीजनेबल क्लासिफिकेशन और एंटी-एरबिट्रैरिनेस है. ECI को नागरिकता टेस्ट करने का पावर नहीं. BLO/ERO को संदिग्ध गैर-नागरिकों की रिपोर्टिंग करने को कहकर वो आर्टिकल 324 का उल्लंघन कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हर शख्स को टेम्पररी सिटिजन की लिस्ट में डाल दिया- अब मुझे साबित करना पड़ेगा कि मैं नागरिक हूं, जबकि ऑब्जेक्टर को साबित करना चाहिए कि मैं नहीं हूं. ये बर्डन ऑफ प्रूफ को रिवर्स कर रहा है.

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कोर्ट की टिप्पणी: 'ट्रस्ट डेफिसिट' का मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ये प्रोसेस वोटर-फ्रेंडली लगता है लेकिन सिंघवी ने असहमति जताई, 'दस्तावेजों में बड़े गैप हैं. बिहार में कवरेज कम है, ये एक्सक्लूजनरी है.' CJI सूर्या कांत ने कहा, 'ECI को कभी SIR का पावर नहीं मिलेगा... प्रोसेस को जस्टिफाई करना पड़ेगा.'

ये सुनवाई बिहार के अलावा तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पुदुच्चेरी के SIR पर भी असर डाल रही है. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि ECI चुनावों से पहले वोटर लिस्ट से नाम काटने की साजिश रच रहा है. अगली सुनवाई में ECI का जवाब सुना जाएगा. 

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