योगी कैबिनेट में विभाग बंटेवारे का गणित क्या रहा?
योगी आदित्यनाथ की सरकार के सत्ता में आते ही इस बात पर चर्चा शुरू हो गई थी कि इस बार का मत्रिमंडल किसके मुताबिक चुना जाएगा. क्या उसमें केंद्र का दखल रहेगा या योगी अहम भूमिका में नज़र आएंगे. 25 मार्च को योगी के साथ उनके 52 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी. 18 कैबिनेट, 12 स्वतंत्र प्रभार और 20 राज्य मंत्री बने थे. इनमें आठ ऐसे मंत्री भी शामिल रहे जो पूरी तरह से प्रोफेशनल हैं. माने इसमें एक्स ब्यूरोक्रेट्स के अलावा डॉक्टर, इंजीनियर, एमबीए और वकील भी शामिल किए गए हैं. और अब कल इन मंत्रियों के विभाग का बंटवारा हो गया जिसके बाद कहा जा रहा है कि इसमें जातिगत समीकरणों के अलावा एजुकेशनल बैकग्राउंड और सब्जेक्ट एक्सपर्ट को भी तरजीह दी गई है और इसका उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले फास्ट डिलीवरी के जरिए जनता में पॉजिटिव मोमेंटम बनाना और यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर फतह हासिल करना भी शामिल है. तो मंत्रालय- विभाग किस हिसाब से बांटे गए? जितिन प्रसाद को PWD मंत्रालय मिला है. राजनीति के जानकार मानते हैं कि उनका कोई खास ग्राउंड अपील भी नहीं है तो फिर इतना बड़ा मंत्रालय देने के पीछे की वज़ह क्या रही?
नीतीश ने बीजेपी के दबाव में मुकेश सहनी को कैबिनेट से निकाला?
बिहार की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए जिसके बाद अब वीआईपी के पास कोई विधायक नहीं बचा. नतीजतन मुकेश सहनी को नीतीश सरकार के कैबिनेट से हटा दिया गया. मुकेश सहनी के मंत्रिमंडल से इस्तीफ़े के बाद ये बात भी कही जाने लगी कि नीतीश कुमार, मुकेश सहनी का इस्तीफा नहीं चाहते थे. बीजेपी की तरफ से ऐसा करने को कहा गया था. हालांकि जदयू के कई नेताओं ने तो यहां तक कहा था कि सहनी मंत्रिमंडल में बने रहेंगे, लेकिन इस सबके बावजूद आखिरकार बीजेपी के दवाब की वजह से मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बाहर करना पड़ा. इसके पहले ये चर्चा थी ही कि बिहार चुनाव के बाद जब से बीजेपी गठबंधन की बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तब से ही वो सत्ता में बेहद अक्रामक है. तो अब सवाल ये है कि क्या इस समय नीतीश कुमार पर बीजेपी की तरफ से कोई अतिरिक्त दबाव है, और ये किस आधार पर ये कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पहली बार प्रेशर पॉलिटिक्स के शिकार होते दिख रहे हैं? मुकेश सहनी अब कैसे आगे बढ़ेंगे?
क्या अपनी सत्ता बचा पाएंगे इमरान ख़ान?
पाकिस्तान की सियासी सूरत तेजी से बदल रही है. कल इमरान खान सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ. इस पर 31 मार्च को बहस और फिर वोटिंग होगी. लेकिन उससे पहले ही विपक्षी गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक फ्रंट ने नई सरकार के लिए शहबाज़ शरीफ का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर चुना है. विपक्ष के इस कांफिडेंस और सरकार में बने रहने के गणित से वाक़िफ इमरान, सरकार बचाने की कोशिश भी ख़ूब कर रहे हैं. जैसे कल इमरान ने देश के सबसे बड़े सूबे में अपनी पार्टी के CM को हटा दिया और गठबंधन छोड़कर जा रहे सहयोगी पीएमएल-क्यू नेता चौधरी परवेज इलाही को कुर्सी सौंप दी. इसकी कई वजहें हैं. पहली तो ये कि गठबंधन और इमरान की खुद की पार्टी के करीब 39 सांसद ऐलानिया तौर पर साथ छोड़ चुके हैं. और दूसरा अब तक साथ देती आई फौज भी इमरान से पल्ला छुड़ा चुकी है. फिलहाल इमरान सरकार बचाने के लिए जो जतन कर रहे हैं वो जतन क्या-क्या हैं?
रूसी विदेश मंत्री के साथ बैठक पर क्या होगा अमेरिका का रिएक्शन?
चीन के बाद अब जल्द ही रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी भारत दौरे पर आएंगे. तारीख़ का ऐलान अभी नहीं हुआ है मगर भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर के श्रीलंका और मालदीव दौरे से लौटने के बाद यात्रा की तारीख़ का ऐलान भी कर दिया जाएगा. रूसी विदेश मंत्री और भारतीय विदेश मंत्री की मुलाकात इसलिए भी जरूरी बताई जा रही है क्योंकि यूक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है. ऐसे में कई सैंक्श्न लग चुके हैं रूस पर. चीन उसके मदद के लिए तैयार है वहीं भारत से भी वो सहायता की अपेक्षा कर रहा है. हाल ही में उसने भारत को सस्ता तेल खरीदने का ऑफर भी दिया था, जिसको लेकर भारत ने कहा था कि वो इस डील पर विचार कर रहा है. लेकिन अमेरिका ने इसपर आपत्ती जाहिर की थी. इसके साथ ही अमेरिका ने जी-20 देशों में से भी रूस को निकालने की बात कही है. तो रूस के विदेश मंत्री के भारत दौरे को किस तरह देखा जाए. किन-किन बिंदुओं पर बात हो सकती है?
इन ख़बरों पर विस्तार से चर्चा के अलावा ताज़ा हेडलाइंस, देश-विदेश के अख़बारों से सुर्खियां, आज के दिन की इतिहास में अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ.
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