
एक जनवरी, 1818 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव गांव में मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज के बीच एक युद्ध हुआ था. इस युद्ध में कई भारतीय सैनिक ब्रिटिश फौज की ओर से लड़े थे. अब सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसके साथ कुछ लोग ऐसा कह रहे हैं कि वो इस युद्ध में शामिल रही ‘महार’ जाति का एक सैनिक है.
इस तस्वीर में एक हट्टा-कट्टा युवक हाथ में एक छड़ी जैसी वस्तु लिए कुर्सी पर बैठा हुआ है. इसके साथ लिखा है कि ये दुर्लभ तस्वीर उस वक्त के ईस्ट इंडिया कंपनी के सलाहकार डेव्ही जोंस की डायरी से प्राप्त हुई है. इसे शेयर करते हुए एक फेसबुक यूजर ने लिखा, “भीमा कोरेगांव के 500 शूरवीर म्हारों में से एक महार सैनिक की दुर्लभ तस्वीर मूलनिवासी योद्धा.”

इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने पाया कि वायरल तस्वीर किसी भारतीय की नहीं बल्कि साउथ अफ्रीका के जुलू समुदाय के राजकुमार Ndabuko kaMpande की है. ये 19वीं सदी में हुए ब्रिटिश-जुलू युद्ध के वक्त जुलू किंगडम के राजा Cetshwayo kaMpande के छोटे भाई थे.
कैसे पता लगाई सच्चाई?
हमने वायरल तस्वीर को रिवर्स सर्च किया तो ये हमें फोटोग्राफी की वेबसाइट ‘Alamy’ पर मिली. इसके साथ दी गई जानकारी की मुताबिक ये तस्वीर जुलू किंगडम के राजकुमार Ndabuko kaMpande की है.

दरअसल 19वीं सदी में ब्रिटिश फौज साउथ अफ्रीका पर कब्जे के की कोशिश कर रही थी. इसी सिलसिले में स्थानीय जुलू समुदाय के साथ अंग्रेजों का युद्ध हुआ था जो 1873 से 1879 तक चला था. इस युद्ध में आखिरकार जुलू सेना की हार हुई थी.
साफ है, जुलू युद्ध के वक्त की जुलू राज्य के राजकुमार Ndabuko kaMpande की तस्वीर को भीमा कोरेगांव युद्ध में लड़ने वाले सैनिक की तस्वीर बताकर वायरल किया जा रहा है.
क्या है भीमा कोरेगांव विवाद ?
मराठा पेशवा और अंग्रेजों के बीच साम्राज्य विस्तार के लिए हुए इस युद्ध को भारत के दलित समाज में गर्व के साथ याद किया जाता है. इस युद्ध में उस वक्त ‘अछूत’ मानी जाने वाली ‘महार’ जाति के सैनिकों ने अंग्रेजों की ओर से ‘ब्राह्मण’ पेशवा की सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा था जिसमें ब्रिटिश सेना ने संख्या में कहीं ज्यादा बड़ी मराठा आर्मी को कड़ी टक्कर दी थी. इस युद्ध की याद में अंग्रेजों ने भीमा कोरेगांव में एक विजय स्तंभ भी बनवाया था, जिसे दलितों के बीच गर्व के तौर पर देखा जाता है.
इस युद्ध की बरसी मनाने के लिए हर साल एक जनवरी को दलित वर्ग के लोग भीमा कोरेगांव में इकट्ठे होते हैं. साल 2018 में इस युद्ध के 200 साल पूरे होने के मौके पर हुए आयोजन के दौरान भीमा कोरेगांव में हिंसा भी हुई थी. इस हिंसा में एक व्यक्ति की जान चली गई. इसके बाद कई लोगों को हिंसा भड़काने के आरोप मे गिरफ्तार किया गया था.