लॉकडाउन के चलते अखबारों का वितरण नहीं हो पा रहा है, इसलिए ई-पेपर के जरिए लोगों तक सूचनाएं पहुंचाना एक आसान तरीका है. इस दौरान व्हाट्सएप पर ई-पेपर के पीडीएफ भी लोग शेयर कर रहे हैं.
हाल ही में “दैनिक भास्कर ” की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वॉट्सएप पर ई-पेपर के पीडीएफ शेयर करना गैरकानूनी है और इसका पालन ना करने की स्थिति में ग्रुप एडमिन के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
इसी बीच “Free Press Journal ” में एक रिपोर्ट छपी है जिसका शीर्षक है, “व्हाट्सएप, टेलीग्राम या अन्य सोशल मीडिया पर फ्री प्रेस जर्नल के ई-पेपर के पीडीएफ को साझा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.”
इन दोनों परस्पर विरोधी खबरों ने लोगों में भ्रम पैदा कर दिया कि वास्तव में ई-पेपर के पीडीएफ शेयर करना सही है या नहीं. इन विरोधाभासी खबरों की वजह से सोशल मीडिया पर लोगों ने बहसें भी कीं.

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि अगर कोई अखबार ई-पेपर का पीडाएफ मुफ्त में उपलब्ध कराता है तो उसे प्रसारित करना गैरकानूनी नहीं है, लेकिन अगर कोई अखबार ई-पेपर के पैसे लेता है तो उसका भी पीडीएफ बनाकर शेयर करना गैरकानूनी है.
इसके अलावा, किसी भी ई-पेपर को डाउनलोड करके या कॉपी करके पीडीएफ बनाना और उसे टेलीग्राम, व्हाट्सएप आदि पर प्रसारित करना गैरकानूनी है. हालांकि, सोशल मीडिया यूजर इस खबर को खूब शेयर कर रहे हैं कि व्हाट्सएप पर ई-पेपर पीडीएफ साझा करना गैरकानूनी है.

क्या कहती है इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी?
भारतीय प्रेस का केंद्रीय संगठन 'इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी' (आईएनएस) का कहना है कि सोशल मीडिया पर ई-पेपर के पीडीएफ को प्रसारित करना चिंता का विषय है.
आईएनएस के अध्यक्ष शैलेष गुप्ता का कहना है कि ई-पेपर से पीडीएफ कॉपी कर सोशल मीडिया पर प्रसारित करना चिंता की बात है. इससे बिजनेस पर असर पड़ता है, खासकर तब जब ई-पेपर की सुविधा फ्री ना हो.
पीडीएफ फ्री है तो ठीक
गुप्ता ने कहा, “अगर किसी अखबार का पीडीएफ फ्री है तो उसे शेयर करना ठीक है. लेकिन पेड ई-पेपर से पीडीएफ की कॉपी लेकर शेयर करना ठीक नहीं है. मूल रूप से, यह उन एग्रीगेटर्स के लिए किया जा रहा है जो अपने ट्रैफिक बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं; यह चोरी है.”
गुप्ता के मुताबिक, इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम ऐसा ही एग्रीगेटर है, जिस पर निगाह रखी जा रही है. कॉपीराइट कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है.
ब्रांड के रूप नुकसानदेह
डिजिटल पायरेसी और ई-पेपर डाउनलोडिंग भारत के कई बड़े मीडिया संस्थानों की चिंता का विषय है. आनंदबाजार पत्रिका ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ डीडी पुरकायस्थ ने AFWA को बताया, “कई वेबसाइट्स, खासकर बांग्लादेश में, हमारे ई-पेपर से कंटेंट कॉपी करती हैं और अपने यहां प्रकाशित कर देती हैं. एक ब्रांड के रूप में हमें इससे नुकसान होता है.”
खतरे और कानूनी विकल्प
ई-पेपर से पीडीएफ कॉपी कर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने के इस कदाचार से Covid-19 महामारी के समय में गलत सूचनाएं फैलने का भी खतरा है. शैलेष गुप्ता का कहना है, “पीडीएफ को एडिट किया जा सकता है और उसकी सूचनाओं में फेरबदल की जा सकती है. हम ऐसा नहीं होने दे सकते क्योंकि हम हमेशा पाठकों को ईमानदार खबरें देना चाहते हैं.” लेकिन इस चोरी को प्रोत्साहित करने वाले लोगों के खिलाफ INS क्या कार्रवाई करेगा?
उद्योग प्रभावित होंगे
आईएनएस के सक्रिय सदस्य और गुजराती दैनिक अखबार “गुजरात समाचार” के बाहुबली एस शाह कहते हैं, “लॉकडाउन के कारण लोगों तक अखबार पहुंचने में परेशानी आ रही है. यही कारण है कि हम कोई त्वरित कार्रवाई नहीं कर रहे हैं और लोगों को ज्यादा से ज्यादा ई-पेपर पढ़ने दे रहे हैं. लेकिन हम उद्योग को प्रभावित करने वाले इस तरह के कदाचार को रोकने के लिए कानूनी विकल्पों पर चर्चा करेंगे.”
ऐसे में गैरकानूनी नहीं
इस तरह यह स्पष्ट है कि ई-पेपर के पीडीएफ शेयर करना गैरकानूनी है कि नहीं. अगर कोई मीडिया संस्थान अपने ई-पेपर का पीडीएफ मुफ्त में उपलब्ध कराता है तो उसे शेयर करना गैरकानूनी नहीं है. लेकिन किसी ई-पेपर को या इसके एक हिस्से को कॉपी करके पीडीएफ बनाना और उसे टेलीग्राम और वॉट्सएप पर शेयर करना गैरकानूनी माना जाएगा.