संसद के शीतकालीन सत्र के बीच नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जर्मनी दौरे पर चले गए. इसे लेकर मचे घमासान के बीच कांग्रेस ने कहा कि वे घूमने के लिए जर्मनी नहीं गए, बल्कि दुनियाभर की पार्टियों के एक संगठन के आमंत्रण पर वहां पहुंचे हैं. प्रोग्रेसिव एलायंस नाम से इस ग्लोबल नेटवर्क में मुख्यधारा दलों के अलावा थिंक टैंक और एनजीओ भी शामिल हैं.
यहां कई सवाल आते हैं
- क्या है यह नेटवर्क और किस विचारधारा पर काम करता है?
- इसका मकसद क्या है?
- भारत से इसमें कौन से दल शामिल हैं?
- क्या इसे लेकर कभी, कोई विवाद भी रहा?
प्रोग्रेसिव अलायंस की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं तो वहां संक्षिप्त जानकारी मिलती है. इसके मुताबिक, यह अलायंस अलग-अलग देशों के प्रगतिशील, समाजवादी और मजदूर दलों का इंटरनेशनल ग्रुप है. इसके साथ कई थिंक टैंक, फाउंडेशन और इंटरनेशनल एनजीओ भी जुड़े हुए हैं. जर्मनी के लाइपजिग शहर में इसका हेडक्वार्टर है.
यह मंच दुनिया भर के नेताओं और राजनीतिक संगठनों को जोड़ता है ताकि ग्लोबल समस्याओं पर मिलकर सोचा जा सके और काम किया जा सके. साथ ही जैसा कि वेबसाइट कहती है, अलायंस क्षेत्रीय नेटवर्किंग बनाने और इंटरनेशनल कैंपेन को आगे ले जाने पर फोकस करता है.
फ्रीडम, जस्टिस और सॉलिडेरिटी- ये तीन चीजें प्रोग्रेसिव अलायंस का मूल मंत्र हैं. साथ ही अंग्रेजी में लिखा है- वी आर प्रोग्रेसिव, जो एक तरह से अपनी सोच का डिक्लेरेशन है.
क्या किसी खास विचारधारा पर केंद्रित है दल
नाम से साफ है कि ये प्रोग्रेसिव सोच वाला दल है, या कम से कम यह अपने बारे में दावा यही करता है. इंटरनेट पर इसपर सीमित जानकारी है, लेकिन यह सेंटर-लेफ्ट राजनीति के इर्द-गिर्द काम करता है. यानी बदलाव और आगे बढ़ने के समर्थक दल. यह लगातार समानता, माइनोरिटी और ह्यूमन राइट्स पर बात करने हैं. यही वजह है कि दल में एनजीओ भी शामिल हैं.

भारत से कौन से दल शामिल
हमारे यहां से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इस अलायंस का हिस्सा हैं. उनके अलावा कोई और राजनीतिक दल अभी तक इस अलायंस का सदस्य नहीं. वैसे इसकी सदस्यता के लिए आवेदन करना होता है और अगर दल अलायंस की शर्तों पर खरे उतरे तो ही उन्हें स्वीकारा जाता है. दिलचस्प बात ये है कि इस संगठन में पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन जैसे देश शामिल नहीं. भारत के पड़ोसियों में केवल नेपाल की दो पार्टियां ही इसका हिस्सा हैं.
विवादों से रहा है नाता
साल 2013 में बने अलायंस को लेकर कई विवादास्पद कहानियां भी चलती रहीं. मसलन, कुछ का मानना है कि संगठन लेफ्ट एजेंडा चलाता है. लेकिन इसपर कई गंभीर आरोप भी रहे. जैसे यह दूसरे देशों की राजनीति पर बाहर से असर डालने की कोशिश करता रहा. एनजीओ और थिंक टैंकों के जरिए संगठन सरकारों पर दबाव बनाता है. डीप स्टेट से जोड़ते हुए यह भी आरोप लगा कि यह देशों पर ग्लोबल सोच थोपने का मंच बन चुका.
हालांकि अब तक इसपर कोई आधिकारिक जांच नहीं हुई, जिसमें ये आरोप सच साबित हों. कुल मिलाकर, यह विचारधारा पर टिका हुआ ग्लोबल नेटवर्क है, ठीक वैसे ही जैसे बाकी दलों के अपने मंच होते हैं जो समान सोच के साथ उठते-बैठते हैं.
अब लौटते हैं नेता प्रतिपक्ष की यात्रा से उपजे विवाद पर. सत्र के दौरान राहुल गांधी के दौरे को लेकर सफाई देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि जब इंटरनेशनल स्तर पर कोई बड़ी बैठक हो तो भारत में बैठे हुए उसकी तारीख या वक्त तय नहीं हो सकता. राहुल की यह यात्रा घूमने नहीं, बल्कि जरूरी मीटिंग के लिए है और इससे भारत को फायदा ही होगा.