
25 साल पूरे हो चुके हैं जब ऋतिक रोशन की डेब्यू फिल्म 'कहो ना प्यार है' थिएटर्स में रिलीज हुई थी. हिंदी फिल्मों के इतिहास में कई स्टार-किड्स के शानदार डेब्यू की कहानियां दर्ज हैं, जिनकी पहली ही फिल्म ने जनता को दीवाना बना दिया था. मगर ऐसा उदाहरण सिर्फ ऋतिक का है, जो पहली ही फिल्म से सीधा सुपरस्टार बन गए. किसी भी दूसरे कलाकार के लिए जनता में पहली ही फिल्म से उस तरह का क्रेज नहीं दिखा जैसा एक ही फिल्म से ऋतिक के लिए बना.

'सुपरस्टार' वो टैग है जो एक लंबे समय तक खुद को प्रूव करने और हिट्स पर हिट्स देने के बाद एक्टर्स के हिस्से आया. चाहे वो राजेश खन्ना हों, अमिताभ बच्चन हों या उनसे अगली पीढ़ी में आई खान तिकड़ी- सलमान, शाहरुख और आमिर. लेकिन क्या ये सिर्फ 'कहो ना प्यार है' का कमाल था? शायद नहीं. इसमें जनता के मूड का बहुत बड़ा रोल था. उत्साह भरा मूड और सिनेमा में 'नयापन' देखने की इच्छा का बड़ा रोल था.
नई सदी की शुरुआत में दर्शकों का मूड
90s ने बॉलीवुड में स्टार-पावर का वो उभार देखा था जिसके भरोसे आज भी बॉलीवुड फंक्शन कर रहा है. लेकिन नई सदी का स्वागत करने के लिए तैयार बैठी जनता में एक उत्साह था. ग्लोबलाईजेशन के दरवाजे खुल चुके थे, केबल टीवी बहुत तेजी से फैल चुका था और जनता इंटरनेट खंगालना सीख रही थी. जीवन के हर पहलू में एक नयापन कदम रख रहा था, जिसे जनता सिनेमा में भी देखना चाहती थी. बाजारवाद ने इस मूड को कैश करना शुरू कर दिया था और ऐसे में 1999 का पूरा साल ही 2000 के स्वागत की तैयारी का साल था.
90s में आए सिनेमा के 'नए' स्टार ऑलमोस्ट एक दशक पूरा करने वाले थे और अब उन्हें ट्रांजिशन की जरूरत थी. जैसा कि हर बड़े बदलाव में होता है, इसके लिए उन्हें थोड़ा वक्त और दर्शकों का सब्र चाहिए था. लेकिन जनता को एक ऐसी फिल्म की जरूरत थी जिसके साथ नए साल, नए मिलेनियम का आना सेलिब्रेट किया जा सके. और एक ऐसे स्टार की जरूरत थी जो नई सदी की शुरुआत से उनके साथ उनकी चॉइस, उनके सपनों, महत्वाकांक्षाओं और टशन को सिनेमा में उतारता चले.
बुझने लगे थे 80s के स्टार्स
उस दौर में अमिताभ बच्चन, स्टारडम के समीकरण से बाहर थे और पिछले 30 सालों में बनी अपनी चमक को बरकरार रख पाने में स्ट्रगल कर रहे थे. 80s और शुरुआती 90s में पॉपुलर रहे सनी देओल, '99 तक आते-आते 'कहर', 'जोर', 'सलाखें', 'अर्जुन पंडित' और 'दिल्लगी' वाले फ्लॉप दौर में जा चुके थे. 2001 में 'गदर' वाले धमाके से पहले तक उनका ये दौर तगड़ा चला था.

उधर, 1999 से में आई 'हसीना मान जाएगी' गोविंदा के लिए वो आखिरी बड़ी हिट थी जिसने जनता को एंटरटेन किया. बीते सालों में उनकी कॉमेडी का पूरा खजाना जनता के सामने खुल चुका था. इसके बाद 2005 तक उनकी फिल्मों में से सिर्फ दो ही ठीकठाक बिजनेस कर पाईं- हद कर दी आपने और जोड़ी नंबर 1. अमिताभ, सनी या गोविंदा के पास साल 2000 की शुरुआत के लिए कोई नई फिल्म नहीं थी. ये भी ठीक ही हुआ, क्योंकि आगे जो होने वाला था, वो पुराने स्टार्स को शॉक करने वाला था.
80s में आए स्टार्स में से, न्यू ईयर 2000 का वेलकम सबसे पहले संजय दत्त ने किया. मिलेनियम की शुरुआत में सबसे पहली हिंदी फिल्म उन्हीं की रिलीज हुई. संजय 1999 में 'दाग- द फायर' और 'वास्तव' जैसी बड़ी हिट्स देकर आ रहे थे. लेकिन उनका खूंखार-एक्शन अवतार इतना रिपीट हुआ कि नई सदी के पहले दिन, 1 जनवरी 2000 को रिलीज हुई उनकी फिल्म 'जंग' फ्लॉप हो गई.

संजय के ही दौर में आए अनिल कपूर अपनी मीडियम बजट फैमिली ड्रामा फिल्मों से किसी तरह 90s भी निकाल लाए थे. 'बेटा', 'जुदाई', 'घरवाली-बाहरवाली' और 'हम आपके दिल में रहते हैं' जैसी फिल्में अपने दम पर हिट करा चुके अनिल का जलवा अभी भी सांसें ले रहा था. 7 जनवरी 2000 को एक बार फिर अनिल अपने 'पारिवारिक' फॉर्मुले के साथ 'बुलंदी' लेकर आए, मगर उनकी न्यू ईयर रिलीज फ्लॉप हो गई. इस फिल्म का एक बड़े स्टार की बड़ी फिल्म के साथ क्लैश हुआ था, लेकिन वो फिल्म भी बड़ी निराशाजनक निकली. क्या आपको याद है वो बड़ी फिल्म कौन सी थी? उसका किस्सा भी आगे है.
90s के मसाला स्टार्स के पास भी नहीं था कुछ नया
बीती सदी के आखिरी दशक में, खान्स के साथ ही डेब्यू करने वाले अजय देवगन और अक्षय कुमार भी नई सदी के मोड़ पर स्ट्रगल कर रहे थे. अक्षय ने 1996 से 1999 तक 16 फिल्में की थीं, जिनमें से केवल 5 बॉक्स ऑफिस पर डूबने से बचीं. इनमें से भी सिर्फ 'खिलाड़ियों का खिलाड़ी' ही ऐसी थी, जिसे प्रॉपर हिट कहा जा सकता है. ये अक्षय का वो दौर था जब वो कॉमेडी-किंग वाली इमेज में नहीं थे और उनका एक्शन भी अब जनता भरपूर देख चुकी थी. 'संघर्ष' और 'जानवर' जैसी फिल्मों से वो सीरियस एक्टिंग की तरफ मुड़ रहे थे लेकिन बाकी फिल्मों में बिना वजनदार कहानियों के वो भी कमाल नहीं कर पा रहे थे.

अजय की 1999 में 6 फिल्में रिलीज हुईं. उनकी शुरुआत सुपरहिट 'कच्चे धागे' से हुई जिसके बाद तीन और बैक टू बैक कामयाब फिल्में आईं- होगी प्यार की जीत, हम दिल दे चुके सनम और हिंदुस्तान की कसम. मगर बाकी आधे साल अजय ने भी 'दिल क्या करे', 'गैर' और 'तक्षक' जैसी फ्लॉप फिल्मों के साथ काटा. अक्षय और अजय दोनों के ही पास न्यू ईयर 2000 पर रिलीज होने वाली कोई फिल्म नहीं थी.
नई सदी के स्वागत में क्या कर रहे थे हमारे 'सुपरस्टार'?
1990-95 के बीच शाहरुख एक कामयाब स्टार थे, जिसे 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' (1995) की कामयाबी ने रोमांस का सुपरस्टार बना दिया था. नए मिलेनियम की तरफ बढ़ते हुए 1997-98 में आई 'दिल तो पागल है' और 'कुछ कुछ होता है' ने शाहरुख के 'राहुल' अवतार को ऐसा पक्का किया कि 1999 में उनकी कॉमेडी 'बादशाह' को जनता ने रिजेक्ट कर दिया. आज कल्ट स्टेटस पा चुकी ये फिल्म शॉकिंग तरीके से फ्लॉप हुई थी. नए साल पर उनकी कोई फिल्म नहीं आ रही थी और 'मोहब्बतें' की रिलीज में अभी लंबा वक्त था.

अब ऑडियंस के लिए आमिर खान की 'मेला' सबसे बड़ी उम्मीद थी. फिल्म का गाना 'देखो 2000 जमाना आ गया' पहले ही रिलीज होकर माहौल बनाने लगा था. गाने में तो नई सदी की शुरुआत वाली एक्साइटमेंट पूरी थी लेकिन 'मेला' की कहानी में डाकुओं वाला पुराना एंगल और 'सॉलिड एक्टर' आमिर का मसाला अवतार जनता को नहीं भाया. अनिल कपूर की 'बुलंदी' के साथ, 7 जनवरी 2000 को रिलीज हुई ये फिल्म भी बुरी तरह फ्लॉप हुई.
जमे-जमाए स्टार्स में से अगली बड़ी फिल्म अब सलमान के नाम थी. उनकी फिल्म 15 जनवरी 2000 को रिलीज होनी थी, ऋतिक की फिल्म के एक दिन बाद. 'मैंने प्यार किया', 'हम आपके हैं कौन', 'बंधन' और 'बीवी नंबर 1' जैसी फिल्मों से फैमिली ऑडियंस के दुलारे बन चुके सलमान ने 1999 में 'हम दिल दे चुके सनम' जैसी बड़ी फिल्म दी थी.

संजय लीला भंसाली की फिल्म ने सलमान को यंग ऑडियंस का भी फेवरेट बना दिया था. मगर उनकी न्यू ईयर रिलीज 'दुल्हन हम ले जाएंगे' फिर से फैमिली ऑडियंस को अपील करने वाली ही निकली. सलमान की फिल्म चली तो जरूर, मगर धमाकेदार तरीके से नहीं. उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले इसमें कुछ भी ऐसा एक्साइटिंग नहीं था, जो ऋतिक के मुकाबले उन्हें मजबूत बनाता. ऐसे में जनता की आस एक ही फिल्म पर लगी हुई थीं- 'कहो ना प्यार है.'
आए और छा गए ऋतिक
अब तक आपको पता चल चुका है कि बड़े धमाके के साथ मिलेनियम का स्वागत करने जा रही जनता को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री बोर सा करने लगी थी. ये एक नए स्टार के आने का परफेक्ट मौका था और और तब 14 जनवरी 2000 को 'कहो ना प्यार है' से सीन में एंट्री हुई ऋतिक रोशन की. ऋतिक अपने साथ जो पैकेज लेकर आए वो परफेक्ट तो किसी भी दौर में डेब्यू के लिए था. लेकिन तब शायद उनका जलवा वैसा नहीं होता, जैसा इस मौके पर एंट्री से बना.
दिसंबर 1999 में 'कहो ना प्यार है' का म्यूजिक एल्बम रिलीज हो चुका था और इस फिल्म का एक-एक गाना जबरदस्त पॉपुलर हो रहा था. 'इक पल का जीना' है तो जैसे ऋतिक का बिग-स्क्रीन इंट्रोडक्शन बन गया था. लुक्स के मामले में ऋतिक वैसे भी गिफ्टेड थे और उनकी नीली आंखों का जादू, उनके पहले स्क्रीन अपीयरेंस से ही चलने लगा था. हॉलीवुड स्टार्स के पोस्टर लगाने वाली इंडियन जनता भी ऋतिक को देखकर अवाक थी.
लोगों के सामने एक हीरो ऐसा डांस कर रहा था, जो अभी तक किसी हीरो ने किया ही नहीं था. उस दौर में ऋतिक का जलवा देख चुके लोग जानते हैं कि उस समय बहुत सारे यंगस्टर्स के लिए ऋतिक, हॉलीवुड को हमारा जवाब थे. ऋतिक के आउटफिट लेटेस्ट फैशन बनने लगे थे. और ये सब फिल्म आने से पहले होने लगा था. ऋतिक वो स्टार थे, जिसे लोग स्क्रीन पर देखना चाहते थे. फाइनली जब 'कहो ना प्यार है' थिएटर्स में पहुंची, तो लोगों ने देखा कि ऋतिक में सिर्फ चमक ही नहीं है, सॉलिड एक्टिंग का भी दम है.

ये बात 2000 में ही उनकी अगली दो फिल्मों 'फिजा' और 'मिशन कश्मीर' से भी साबित हुई. लेकिन 'कहो ना प्यार है' के ऋतिक जनता के लिए पहले क्रश की तरह आए थे. अगले ही साल, 2001 में 'कभी खुशी कभी गम' में ऋतिक के किरदार को देखकर करीना कपूर ने जो रिएक्शन दिए, वो असल में ऋतिक के लिए इंडिया की सारी लड़कियों के रिएक्शन थे. एक पूरी जेनरेशन के लिए ऋतिक, नए मिलेनियम का फेस बन गए और इसीलिए उनके खराब दौर में भी ये जनता उनके साथ बनी रही.
ऋतिक ने भी जनता के इस साथ को पूरी तरह निभाया और थिएटर्स में ब्लॉकबस्टर्स डिलीवर करने के साथ ही, अपनी दमदार एक्टिंग भी जारी रखी. 'कोई मिल गया' और 'कृष' फ्रैंचाइजी से उन्होंने साइंस-फिक्शन में हाथ आजमाया. उनकी 'धूम 2', 'बैंग बैंग' और 'वॉर 2' में लोगों को हॉलीवुड लेवल का स्टाइल और एक्शन मिला. 'अग्निपथ' ने दिखाया कि उनमें मास हीरो वाला भौकाल भी है, तो 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' में वो जिंदगी की खूबसूरती दिखाने वाली, विचारों को खाद-पानी देने वाली कहानी में दिखे.
जिस अलग-अलग वैरायटी की फिल्में ऋतिक ने की, वो असल में उनके साथ नए मिलेनियम में जवान हुई ऑडियंस की फिल्म चॉइस को भी दिखाता है, जो नए एक्सपीरियंस ट्राई करना चाहती है. और ये सरप्राइज की बात नहीं है कि वो सुपरस्टार होने के साथ-साथ एक दमदार परफॉर्मर भी हैं जिन्हें किसी जॉनर में बांध के नहीं देखा जा सकता.