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केरल में निकाय चुनाव को क्यों कहा जा रहा 2026 का लिटमस टेस्ट, त्रिकोणीय बन गई लड़ाई

केरल में अगले साल होने वाले 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले शहरी निकाय चुनाव हो रहे हैं, जिसे 2026 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. लेफ्ट के सामने अपने दुर्ग को बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस अपनी वापसी के बेताब है और बीजेपी अपनी जड़े जमाने की जद्दोजहद में जुटी है.

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केरल का निकाय चुनाव कैसे बन गया त्रिकोणीय (Photo-ITG)
केरल का निकाय चुनाव कैसे बन गया त्रिकोणीय (Photo-ITG)

केरल में स्थानीय निकाय चुनाव दो चरण में हो रहे हैं, जिसे 2026 के चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रही है. निकाय चुनाव के बाद सीधे राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में निकाय चुनाव के नतीजों का सीधे असर आगमी 2026 के चुनाव पर पर पड़ेगा. ऐसे में तीनों प्रमुख गठबंधनों के लिए निकाय चुनाव किसी अग्रिपरीक्षा से कम नहीं है. 

सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ, कांग्रेस के अगुवाई वाले यूडीएफ और बीजेपी वाले एनडीए के लिए निकाय चुनाव सियासी इम्तिहान की लड़ाई है.वामपंथियों के लिए अपने प्रभुत्व का बचाए रखने की लड़ाई है तो कांग्रेस के लिए अपनी खोई जमीन को वापस पाने का मौका है और बीजेपी के लिए खुद को साबित करने का मौका है कि शहरी क्षेत्रों में उसकी बढ़त महज एक क्षणिक उछाल से कहीं अधिक थी. 

केरल में दो चरणों में निकाय चुनाव
केरल में स्थानीय निकाय चुनाव दो चरण में 9 और 11 दिसंबर को होने हैं. पहले फेज में कोल्लम, तिरुवनंतपुरम, पथानामथिट्टा, अलाप्पुझा, इडुक्की, कोट्टायम और एर्नाकुलम जिलों में वोटिंग होगी. वहीं, दूसरे चरण 11 दिसंबर को  त्रिशूर, पलक्कड़, मलप्पुरम, कोझिकोड, कन्नूर, कासरगोड और वायनाड जिले में चुनाव होंगे. 

केरल के 1200 स्थानीय निकायों में से 1,199 में चुनाव हो रहे. मट्टनूर नगरपालिका का कार्यकाल  2027 कर होने की वजह से चुनाव नहीं हो रहे. केरल के 12 स्थानीय निकाय के 23,576 वार्डों में चुनाव है. 

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राज्य निर्वाचन आयुक्त के मुताबिक 941 ग्राम पंचायतों में 17,337 वार्ड, 152 ब्लॉक पंचायतों में 2,267 वार्ड, 14 जिला पंचायतों में 346 वार्ड, 86 नगरपालिकाओं में 3,205 वार्ड और छह निगमों में 421 वार्ड के लिए चुनाव हैं. 

निकाय चुनाव 2026 का लिटमस टेस्ट
केरल की स्थानीय निकाय चुनाव को 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है. वामपंथी मोर्चा 2016 से केरल की सत्ता पर काबिज है, देश में सिर्फ केरल ही लेफ्ट का दुर्ग  बचा है, जिसे बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे में लेफ्ट 2026 से पहले निकाय चुनाव जीतकर अपने कार्यकर्ताओं के ऊर्जा को नई धार देना चाहती है.

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन खुद मोर्चा संभाल रखी है.  मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की सरकार ने हाल ही में नई कल्याण और गरीबी कम करने की पहल के माध्यम से राजनीतिक स्वर सेट करने की कोशिश की है. इस तरह निकाय चुनाव में लेफ्ट अपना किला बचाए रखने की हरसंभव कोशिश में है.

वहीं, कांग्रेस निकाय चुनाव जीतकर 2026 में अपनी वापसी की मजबूत आधारशिला रखना चाहती है. यूडीएफ अपने खोए हुए मतदाता आधार के एक हिस्से को भी दोबारा प्राप्त कर सफल हो जाता है, तो तत्काल नुकसान बीजेपी की सीटों की संख्या में हो सकता है.कांग्रेस का अपना वोट खिसका है और वो बीजेपी की तरफ गए हैं. ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि निकाय चुनाव के जरिए अपने सियासी आधार को मजबूत कर सत्ता में वापसी की रूपरेखा तय कर लेना चाहती है.  

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बीजेपी के लिए कितना अहम केरल

बीजेपी शहर इलाके के जरिए केरल में अपनी सियासी जड़े जमाना चाहती है. शहर में वाम दलों ने लगभग चार दशकों तक सत्ता पर कब्जा किया है, जबकि बीजेपी मुख्य चुनौती के रूप में उभरी है, जिसने शहर के मध्यम वर्ग और उच्च जाति समुदायों के बीच अपना आधार मजबूत किया. 

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर के प्रभाव पर निर्भर है, जो व्यक्तिगत रूप से अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. पार्टी को उम्मीद है कि सबरीमाला और सोने की तस्करी के विवाद, जिसने एलडीएफ को डिफेंसिव मोड में डाल दिया है. यह उसे केरल में एक नई उम्मीद दिखाई है. देखना है कि निकाय चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहता है? 

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