बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है. सत्तारूढ़ एनडीए ने इस बार 160 पार का एक बड़ा टारगेट तय किया है. ये 243 सीटों वाली विधानसभा में लगभग दो-तिहाई बहुमत के बराबर है. लेकिन राजनीतिक समीकरण, जातीय गणित और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के उभरने से ये लक्ष्य उतना आसान नहीं जितना दिखता है. कुछ वैसा ही हाल है जैसा लोकसभा चुनाव में बीजेपी के '400 पार' नारे का हुआ था जो आखिर में 293 सीटों पर ही थम गया.
NDA की उम्मीदें और चुनौती
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंडिया टुडे से कहा कि स्थिति बहुत अच्छी है. हम बिहार में 160 से ज्यादा सीटें जीतेंगे.लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और इशारा करती है. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA ने महागठबंधन को मामूली अंतर 125 बनाम 110 सीटें से हराया था. अबकी बार जनता के बीच बेरोजगारी, पलायन और विकास ठहरने की बातों से नाराजगी झलक रही है.
जन सुराज: नया समीकरण
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इस बार का सबसे दिलचस्प फैक्टर है प्रशांत किशोर (PK) की जन सुराज पार्टी. इस बार PK सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतार चुके हैं और दावा कर रहे हैं कि 150 सीटों पर वे सीधी लड़ाई में हैं.
उनका फोकस बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और क्लीन पॉलिटिक्स पर है और यही बात NDA और महागठबंधन, दोनों के वोट शेयर को काट सकती है. पटना और बेगूसराय में जन सुराज की रैलियों में दिखी भीड़ ने ये साफ कर दिया है कि राज्य में 'एंटी-इंकम्बेंसी' यानी सत्ता-विरोधी लहर जरूर है.
जातीय समीकरण और महिला वोटर का फैक्टर
बिहार की राजनीति अब भी जाति आधारित है. NDA ने ज़्यादातर उम्मीदवार राजपूत और पिछड़ी जातियों से दिए हैं जबकि RJD अपने पुराने यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर भरोसा कर रही है.
महिला वोटर्स ने साल 2020 में NDA को जीत दिलाई थी, इस बार भी महिलाएं निर्णायक भूमिका में हैं. NDA ने इस बार 35 महिला उम्मीदवार उतारी हैं जबकि तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए 30,000 रुपये की मदद का वादा किया है.
NDA की अंदरूनी खींचतान
NDA के अंदर भी सब कुछ सहज नहीं है. BJP और JDU को 101-101 सीटें दी गई हैं लेकिन चिराग पासवान की पार्टी LJP (RV) को 29 सीटें मिलना JDU को अखर रहा है. इसके अलावा BJP को 2024 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की गई 68 विधानसभा क्षेत्रों को दोबारा अपने पक्ष में रखना बड़ी चुनौती है.
2010 की वापसी आसान नहीं
बिहार में किसी भी गठबंधन ने 200 सीट का आंकड़ा आखिरी बार 2010 में पार किया था, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA ने 206 सीटें जीती थीं. 2015 में नीतीश ने RJD के साथ मिलकर 178 सीटें हासिल की थीं. यानि 160 पार का सपना 15 साल पुराना रिकॉर्ड दोहराने जैसा है.
बेरोजगारी और युवाओं की नाराजगी
राज्य में बेरोजगारी अब भी सबसे बड़ा मुद्दा है. NDA ने एक करोड़ नौकरियों का वादा किया है लेकिन जनता के मन में भरोसा कम है. सोशल मीडिया पर चल रहे मीम्स और रील्स दिखाते हैं कि युवा अब वादों से ज्यादा ठोस काम देखना चाहते हैं.
नतीजा क्या कहेगा?
पहले चरण की 121 सीटों के लिए मतदान हो रहा है, जबकि दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा. नतीजे 14 नवंबर को आएंगे. अगर NDA 122 से ऊपर जाता है तो नीतीश कुमार पांचवीं बार सत्ता में लौट सकते हैं. लेकिन अगर वोटों का थोड़ा भी झुकाव हुआ तो 160 पार भी 400 पार की तरह एक सपना बन सकता है.