Goa Club Arson Case: गोवा के 'बर्च बाय रोमियो लेन' नाइटक्लब में 6 दिसंबर 2025 की रात आग लगने से 25 लोगों की जान चली गई. इस हादसे के मुख्य आरोपी और क्लब के मालिक सौरभ लूथरा और गौरव लूथरा ने घटना के महज कुछ घंटों बाद मुंबई से फुकेट (थाईलैंड) के लिए फ्लाइट ली थी और फरार हो गए थे. गोवा पुलिस ने उनके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी किया, इंटरपोल ने ब्लू कॉर्नर नोटिस. और फिर मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स (MEA) ने उनके पासपोर्ट सस्पेंड कर दिए. अब वे दोनों थाईलैंड के फुकेट में डिटेन हो चुके हैं. चलिए जान लेते हैं कि आने वाले दिनों में लूथरा बंधुओं के खिलाफ कैसी कार्रवाई होने वाली है.
कैसे वापस लाया जाएगा?
ब्लू कॉर्नर नोटिस: इंटरपोल के इस नोटिस का मकसद आरोपियों का पता लगाना और सदस्य-देशों की पुलिस व इमिग्रेशन को सूचना देना होता है. ब्लू कॉर्नर नोटिस खुद में गिरफ्तारी वॉरंट नहीं है. यह पहचान, ठिकाने और गतिविधियों की जानकारी जुटाने के लिए होता है. इसलिए ब्लू कॉर्नर नोटिस के साथ भी देश जहाँ वे हैं उसकी अपनाई गई कानूनी प्रक्रिया पर निर्भर करेगा कि उन्हें रोका जाए या कस्टडी में दिया जाए.
पासपोर्ट पर रोक
भारतीय विदेश मंत्रालय और पासपोर्ट निदेशालय ने लूथरा भाइयों के पासपोर्ट निलंबित कर दिए हैं. इस काम के लिए गोवा पुलिस ने अनुरोध किया था. सपोर्ट रोकने से उनकी अंतरराष्ट्रीय आवाजाही रोकी जा सकती है और थाईलैंड में इमिग्रेशन के ज़रिए उनकी सीमा पार करने या रहने की वैधता चुनौतीपूर्ण हो जाती है. इसके तहत भारत पासपोर्ट एक्ट और नियम लागू कर सकता है.
थाईलैंड में गिरफ्तारी, प्रत्यर्पण की तैयारी?
रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों भाइयों को थाईलैंड में हिरासत में लिया गया या थाई अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया है. भारत-थाईलैंड के बीच मौजूद समझौते, प्रक्रिया या सीधे ड्रॉप-ऑफ (deportation) के रास्ते से भारत लाने की कवायद चल रही है. कुछ रिपोर्टस् में बताया गया कि थाईलैंड में डिटेंशन और फिर भारत को सुपुर्दगी की औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं. भारत-थाईलैंड के द्विपक्षीय समझौते और इंटरपोल के समन्वय से यह काम हो रहा है.
तकनीकी स्तर पर विकल्प
ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी होने के बाद ही थाई पुलिस से लूथरा बंधुओं की गिरफ्तारी की है. थाई अधिकारियों ने इमिग्रेशन नियमों के तहत अवैध प्रवास और पासपोर्ट निलंबन को कारण बनाया है, तो डिपोर्टेशन दोनों देशों के नियमों के तहत किस मार्ग से होगा, यह थाईलैंड की कार्रवाई और दोनों देशों के कानूनी और कूटनीतिक फैसलों पर निर्भर करेगा.
पुलिस-टीम और कानूनी नोटिस
गोवा पुलिस और केंद्रीय एजेंसियां थाईलैंड में मौजूद अधिकारियों के संपर्क में हैं और एक पुलिस टीम भी वहां भेजी गई या भेजी जा रही है. इसी पर उनकी कस्टडी-हाथ आना संभव हो रहा है. अभी जो रास्ता सबसे तेज़ दिखता है, वो पासपोर्ट निलंबन के बाद थाई अधिकारियों द्वारा प्रोविज़नल कस्टडी या डिपोर्टेशन के जरिये उन दोनों आरोपियों को भारत भेजना है. भारत का विदेश मंत्रालय, गोवा पुलिस और थाईलैंड की इमिग्रेशन या कानूनी मशीनरी तय करेगी कि किस कानून के तहत उन दोनों को लौटाया जाएगा.
आरोपियों के खिलाफ़ किन धाराओं में दर्ज है केस?
मीडिया रिपोर्टस् और पुलिस से मिली सूचनाओं के मुताबिक इस मामले से संबंधित एफआईआर में कई धाराएं दर्ज हैं. जिनको हम BNS/IPC दोनों संदर्भों में बता रहे हैं. क्योंकि हाल के वर्षों में IPC के कई प्रावधान BNS से मैप किए गए हैं.
बीएनएस की धारा 105
यह मामला हत्या की श्रेणी में न आने वाला गैर इरादतन हत्या का है. इसलिए आईपीसी की धारा 304 के समकक्ष बीएनएस की धारा 105 एफआईआर में शामिल है. यानी हत्या का वह आरोप जो 'मर्डर' (मंशा-पूर्ण हत्या) जितना कड़ा नहीं लेकिन जानलेवा कार्रवाई के दायरे में आता है.
बीएनएस की धारा 106
लापरवाही या जल्दबाजी और लापरवाही भरे काम से मौत का कारण बनना. यानी आईपीसी की धारा 304A के समकक्ष बीएनएस की धारा 106 भी इस मामले में लगाई गई है. यह धारा उन मामलों के लिए लागू होती है, जहां लापरवाही/रैशनेस से लोगों की मृत्यु हुई हो.
बीएनएस की धारा 287
आग या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही भरा आचरण. आईपीसी की धारा 285/287 के समकक्ष बीएनएस 287 की धारा भी एफआईआर में मौजूद है. जिसके मुताबिक, आग या ज्वलनशील-उपकरणों या फायर-शो के ज़िम्मेदाराना प्रबंध न करने के आरोप लगना है. खबरों में साफ तौर पर कहा गया है कि उस क्लब में फायर-सेफ्टी, अग्नि-उपकरण, निकासी मार्ग आदि नहीं थे.
जान को खतरा पहुंचाने वाले काम / सार्वजनिक सुरक्षा / सामान्य इरादा / आपराधिक साज़िश / उकसाना. मीडिया रिपोर्टों में मालिकों, प्रबंधक और आयोजनकर्ता आदि के खिलाफ साझा इरादा (common intention) और अन्य सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ी धाराएं भी जोड़ी गई हैं. जिनमें BNS की धारा-3, 34 जैसी तमाम बीएनएस की संबंधित धाराएं शामिल हैं.
संभावित सज़ा और जुर्माना
बीएनएस की धारा 105 के तहत अगर मौत किसी ऐसे कृत्य से हुई हो जो जान-बूझकर मौत पैदा करने का इरादा रखता है तो सज़ा आजीवन कारावास या 5 से 10 वर्ष (स्थिति के आधार पर) हो सकती है और जुर्माना भी हो सकता है. अगर ज्ञान के साथ परन्तु स्पष्ट मंशा न हो तो 10 साल तक सजा और जुर्माने का प्रावधान है. सारांश रूप में यह दीर्घकालीन सज़ा वाला अपराध है.
बीएनएस की धारा 106 के तहत दंड पहले से कड़ा किया गया है. BNS के मुताबिक अब दंड के प्रावधानों में वृद्धि हुई है. सामान्य मामलों में 5–7 साल तक की कैद और जुर्माना (कुछ उपखंडों में 10 साल तक अगर दुर्घटना के बाद भागने/रिपोर्ट न करने जैसे कंडक्ट हों).
बीएनएस की धारा 287 के तहत साधारणत 6 महीने तक की सज़ा, या जुर्माना (₹2,000 जैसा कुछ बेंचमार्क), या दोनों हो सकते हैं. यह अपेक्षाकृत हल्की परन्तु जिम्मेदार लोगों पर अतिरिक्त गंभीर धाराएं लग सकती हैं, जिससे कुल दंड बहुत बड़ा बन सकता है.
यदि कोर्ट यह पाता है कि कई व्यक्तियों ने मिलकर जानलेवा कार्रवाई की, तो उन धाराओं के साथ जुड़ी सज़ाएं भी जोड़ दी जाएंगी. और कुछ मामलों में कुल मिलाकर लम्बी सज़ा/आजीवन तक का खतरा बन सकता है. यह अदालत के आकलन और आरोप मंज़ूरी पर निर्भर करता है.
अगर FIR में बीएनएस की धारा 105 और 106/287 जैसी धाराएं साथ लगती हैं, तो किसी भी व्यक्ति पर मुक़दमे और बाद में सज़ा का अनुमान बहु-वर्ष (कई साल से लेकर जीवन भर तक) और जुर्मानों का संयोजन हो सकता है. निर्भर करेगा कि आरोप प्रमाणों से किस स्तर तक साबित होते हैं.
अभी क्या हो सकता है?
अगर थाईलैंड पुलिस ने लूथरा बंधुओं को गिरफ़्तार कर लिया है तो दोनों देशों की फार्मल कानूनी औपचारिकताओं के बाद भारत या इंटरपोल के माध्यम से अनंतिम गिरफ्तारी या सीधे निर्वासन या प्रत्यर्पण होगा. अगर थाई लोकल कोर्ट में चुनौती दी गई तो कानूनी लड़ाई शिफ्ट हो सकती है.
स्थानीय पुलिस, सीबीआई या प्रॉसिक्यूशन सबूत एकठ्ठा कर रहे हैं. FIR में जो धाराएं हैं वे आगे की चार्ज-शीट में सख्त हो सकती हैं और दोषी हत्या जैसी धाराएं मुक़दमे की दिशा तय करेंगी.
जैसा ऊपर बताया गया है कि छोटे-अपराध (जैसे बीएनएस की धारा 287) के लिए छह महीनों तक सजा होगी. लेकिन अगर अदालत ने आरोपियों को दोषी पाया तो प्रमुख आरोप साबित होने पर यानी बीएनएस की धारा 105 के तहत कई साल से लेकर उम्रकैद की सज़ा संभावित है.