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Indigo का ईगो... और 20 साल का नाम 10 दिन में बदनाम! जानिए देश की सबसे बड़ी एयरलाइन का कैसे बिगड़ा खेल?

Indigo Crisis: भारत के संदर्भ में ये संकट और बड़ा हो गया है, क्योंकि यात्री सेमगमेंट में इंडिगो की पूरे मार्केट में करीब 65 फीसदी हिस्सेदारी है. यानी कंपनी का एकछत्र राज था, लेकिन इस संकट के बाद किला बचाना इंडिगो की पहली चुनौती होगी.

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इंडिगो पर कैसे संकट गहराया (PTI)
इंडिगो पर कैसे संकट गहराया (PTI)

देश की सबसे भरोसेमंद एयरलाइन इंडिगो पर 10 दिन में ही लोगों का भरोसा डगमगा गया है, यात्री परेशान हैं, और कंपनी को जवाब देते नहीं बन पा रहा है. 20 साल की साख दांव पर है. एक तरह से इंडिगो के लिए ये अबतक की सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे उसे निपटना है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या इंडिगो ने बदले हुए नियम को गंभीरता से नहीं लिया? या भारतीय एविएशन सेक्टर में 65 फीसदी मार्केट शेयर ने कंपनी का ईगो इतना हाई कर दिया, कि उसे लगने लगा... मैं नहीं तो कौन?

सस्ता किराया, समय पर उड़ान और कोई दिखावा नहीं, दो दशक तक इंडिगो की यही पहचान थी, आज उसी पहचान के उलट यात्रियों को विमान के लिए घंटों तक इंतजार करना पड़ रहा है, उड़ानें रद्द हो रही हैं, देशभर के एयरपोर्ट्स पर अफरा-तफरी का माहौल है, और ये सबकुछ पिछले एक हफ्ते से चल रहा है. क्योंकि संकट बड़ा है और कंपनी सवालों के घेरे में है.

दरअसल, वो कंपनी कटघरे में है, जिसने कभी भारतीय एविएशन का मानक तय किया था. एक हफ्ते में ही इंडिगो की पूरी साख दांव पर लग गई है. सैकड़ों उड़ानें रद्द, पायलटों की भारी कमी, नए FDTL नियमों का दबाव, ऑपरेशनल प्लानिंग की चूक और प्रबंधन के फैसलों पर उठते सवालों ने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती एयरलाइनों में शामिल इस कंपनी की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है.

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सोशल मीडिया के इस जमाने में यात्रियों का दर्द और गुस्सा दोनों दिख रहा है. DGCA भी सख्ती के मूड में है, पहली नजर में ये तस्वीर दिख रही है कि कैसे छोटी-सी रणनीतिक चूक, क्रू-प्लानिंग की लापरवाही और बदलते नियमों को हल्के में लेना पूरी एयरलाइन को संकट में धकेल सकता है. भारत के संदर्भ में ये संकट और बड़ा हो गया है, क्योंकि यात्री सेमगमेंट में इंडिगो की पूरे मार्केट में करीब 65 फीसदी हिस्सेदारी है. 

कहां चूक हुई? 
इंडिगो के लिए नवंबर से ही संकट की शुरुआत हो गई थी, पिछले महीने इंडिगो को करीब 1200 उड़ानें कैंसिल करनी पड़ी थीं, और फिर दिसंबर के पहले हफ्ते में ही संकट गहरा गया, दिल्ली में सिंगल डे 134 उड़ानें रद्द हुईं. बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों में यात्री काफी परेशान दिखे. एयरपोर्ट से हंगामे की तस्वीरें आने लगीं. 

बता दें, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एविएशन सेक्टर में एक नियम लागू किया है. जिसे फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) कहा जाता है, इस नियम का मकसद है कि पायलटों को आराम करने के लिए ज्यादा समय दिया जाना चाहिए. ताकि उनके ऊपर मानसिक और शरीरिक थकावट हावी न हो. इस नियम के तहत पायलटों को पहले के 36 घंटे के बजाय 48 घंटे लगातार आराम अनिवार्य कर दिया गया. यही नियम इंडिगो पर भारी पड़ गया है.  

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इसके अलावा सुरक्षित उड़ान को ध्यान में रखकर रात में कम लैंडिंग, ड्यूटी ऑवर की लिमिट और रात में सीमित ड्यूटी ने भी इंडिगो की मुसीबत बढ़ा दी है. समस्या यह रही कि नियमन की तैयारी के बिना यह बदलाव लागू हो गया, और इंडिगो की रोस्टर प्लानिंग इस दबाव का सामना करने में एक तरह से नाकाम रही.  

इंडिगो को ही क्यों हुई परेशानी?
इंडिगो का देश में सबसे बड़ा नेटवर्क है, कंपनी करीब 2,300 उड़ानें रोजाना ऑपरेट करती है. लेकिन बदले नियम के हिसाब से कंपनी के पास पर्याप्त 'रिजर्व पायलट और क्रू' नहीं थे. FDTL लागू होने से उस रिसोर्स-बफर की जरूरत थी, लेकिन इंडिगो ने हायरिंग फ्रीज जारी रखी, जिससे पायलट की कमी के चलते चाहकर भी हालत को कंपनी काबू में नहीं कर पाई. यानी, कम मैनपावर का बेहतर सदुपयोग रणनीति काम नहीं आई, और हालात आज सबके सामने है. 

कंपनी ने तकनीकी खामी (Technical Glitches) को इस संकट का सबसे बड़ा कारण बताया है. लेकिन इंडस्ट्रीज के जानकर कहते हैं कि केवल ये कारण इतना बड़ा संकट खड़ा नहीं कर सकता. इंडिगो की असली चूक थी, समय रहते अपनी रणनीति न बदलना. हालांकि कंपनी के लिए पहले से ही फ्यूल प्राइस में बढ़ोतरी, रख-रखाव, लीज पर विमान और एयरपोर्ट चार्ज बड़ी चुनौती थी, जिसे कंपनी कम मैनपावर के साथ निपटती आ रही थी. पायटल की भर्ती फ्रीज भी कॉस्ट कटिंग का हिस्सा था. 

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निवेशकों का भरोसा भी डगमगाया

यात्रियों के साथ-साथ इंडिगो पर निवेशकों का भरोसा भी हिला है. पिछले करीब एक हफ्ते से Indigo के शेयर गिर रहे हैं, इस संकट के बीच कंपनी का मार्केट कैप करीब 40 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा घट चुका है. यानी आर्थिक मोर्चे पर भी कंपनी को तगड़ा झटका लगा है. इंडिगो के इस संकट को देखते हुए Moody's जैसी रेटिंग एजेंसी भी चिंता जता रही है. अब सबकुछ कंपनी की रणनीति पर टिका है, अगर अगले कुछ दिन में स्थिति सामान्य हो भी जाती है, तो कंपनी की आर्थिक सेहत सुधरने में लंबा वक्त लग जाएगा.

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