
सर्दियों की सुबह है, सड़क पर दूधिया चादर बिछी है और सामने का कुछ भी साफ नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में गाड़ी चलाना वैसा ही है जैसे आंखों पर पट्टी बांधकर तीर चलाना. अब तीर लगे या न लगे, भरोसा किस्मत पर होता है. और किस्मत सड़क पर हर वक्त साथ ही दे यह जरूरी भी नहीं. उत्तर भारत कोहरे की सफेद चादर की चपेट में है. हाईवे से लेकर एक्सप्रेसवे तक हर तरफ फॉग और स्मॉग का एक ऐसी धुंधली जाल बिछा है, जिसके उस पार जैसे मौत खड़ी हो.
बीते दिनों देश के अलग-अलग एक्सप्रेसवे पर सड़क हादासों की कई दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. इसलिए कोहरे में ड्राइविंग कोई बहादुरी नहीं, समझदारी का इम्तिहान है. अव्वल तो सलाह यही है कि, आप कोहरे में अपने निजी वाहन से लंबी दूरी की यात्रा को टाल दें तो बेहतर है. लेकिन फिर भी यदि ड्राइविंग बेहद ही जरूरी है तो कुछ ख़ास बातों पर अमल करना नितांत आवश्यक है.
सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी 2023 की एक्सीडेंट रिपोर्ट के अनुसार, मौसम की स्थिति सड़क की सतह और चालकों की दृश्यता को प्रभावित करती है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है. भारी बारिश, घना कोहरा और ओलावृष्टि जैसे प्रतिकूल मौसम में होने वाले सड़क हादसों में करीब 15.6 प्रतिशत मामलों की बड़ी वजह कम विजिबिलिटी होती है. माना जाता है कि, उत्तर भारत के राज्यों में दिसंबर और जनवरी के दौरान हाईवे एक्सीडेंट अचानक बढ़ जाते हैं. इनमें से ज्यादातर हादसे सुबह 5 बजे से 9 बजे के बीच होते हैं, जब कोहरा सबसे ज्यादा घना होता है.
कोहरे में सबसे बड़ी समस्या होती है विजिबिलिटी यानी देखने की क्षमता. आम हाई बीम हेडलाइट तेज रोशनी जरूर देती है, लेकिन कोहरे में यही रोशनी दीवार की तरह दिखाई देती है. वैज्ञानिक रूप से समझें तो हाई बीम हेडलाइट्स का इस्तेमाल करने से कोहरे में मौजूद पानी की बूंदों से रोशनी टकराकर वापस आंखों पर लौटती है (जिसे बैकस्कैटर कहते हैं), जिससे एक सफेद दीवार जैसी आकृति बनती है और सामने देखना और भी मुश्किल हो जाता है.
ऐसे में फॉग लैंप या लो बीम हेडलाइट सबसे ज्यादा कारगर होती है. फॉग लैंप जमीन के नजदीक और चौड़े एंगल में रोशनी फेंकती है, जिससे सड़क की सतह, लेन मार्किंग और किनारे का अंदाजा बेहतर होता है. लो बीम हेडलाइट भी सामने की बजाय नीचे की ओर रोशनी देती है, जिससे कोहरे में रिफ्लेक्शन कम होता है. अगर आपकी कार में येलो फॉग लैंप है तो वह और बेहतर है, क्योंकि पीली रोशनी कोहरा कम काटती है और आंखों पर कम जोर डालती है.

कोहरे में येलो लाइट को व्हाइट लाइट से बेहतर इसलिए माना जाता है क्योंकि इसका वेवलेंथ ज्यादा होता है और यह कोहरे के महीन जलकणों से टकराकर कम रिफ्लेक्ट होती है. वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो व्हाइट या ब्लू टोन लाइट का वेवलेंथ छोटा होता है, जिस वजह से वह कोहरे में ज्यादा बिखरती है और ड्राइवर की आंखों पर चकाचौंध पैदा करती है. ऑटोमोबाइल सेफ्टी स्टडीज बताती हैं कि घने कोहरे में व्हाइट हाई बीम लाइट से विजिबिलिटी कई बार 30 से 40 प्रतिशत तक घट जाती है, जबकि येलो फॉग लाइट सड़क की सतह, लेन मार्किंग और किनारों को ज्यादा साफ दिखाने में मदद करती है.
साफ मौसम में ड्राइवर को औसतन 200 से 300 मीटर तक साफ दिखाई देता है. हल्के कोहरे में यह दूरी घटकर करीब 50 से 100 मीटर रह जाती है. वहीं घने कोहरे में विजिबिलिटी कई बार सिर्फ 10 से 20 मीटर तक सिमट जाती है. इसका मतलब यह है कि 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर चल रही गाड़ी को रुकने के लिए जितनी दूरी चाहिए, उतनी दूरी ड्राइवर को दिख ही नहीं पाती. यही वजह है कि कोहरे में स्पीड कंट्रोल सबसे बड़ा सुरक्षा नियम बन जाता है.
कोहरे में तेज रफ्तार सीधा खतरे को न्योता देना है. विजिबिलिटी कम होने की वजह से आपको सामने खड़ी गाड़ी, अचानक मुड़ा ट्रक या सड़क पर बैठा कोई जानवर देर से नजर आता है. ऐसे में ब्रेक लगाने का समय ही नहीं मिलता. इसलिए कोहरे में हमेशा सामान्य से कम स्पीड पर गाड़ी चलानी चाहिए. स्पीड इतनी रखें कि जरूरत पड़ने पर आप आराम से गाड़ी रोक सकें.
कई ड्राइवर आगे चल रही गाड़ी की टेललाइट देखकर उसके बहुत करीब चलने लगते हैं. उन्हें लगता है कि इससे रास्ता दिखता रहेगा और वो आसानी से उस वाहन के पीछे-पीछे निकलते जाएंगे. लेकिन अगर आगे वाली गाड़ी अचानक ब्रेक मार दे तो टक्कर तय है. कोहरे में सेफ डिस्टेंस सामान्य दिनों से कहीं ज्यादा रखना चाहिए. आगे वाली गाड़ी से इतना फासला रखें कि अचानक रुकने की स्थिति में भी आप सेफ ब्रेकिंग अप्लाई कर सकें.

कोहरे में कुछ लोग गाड़ी चलाते वक्त हैजार्ड लाइट ऑन कर लेते हैं. यह आदत बेहद खतरनाक है. हैजार्ड लाइट से पीछे आने वाले ड्राइवर को यह समझ नहीं आता कि आप लेन बदलने वाले हैं या सीधे जा रहे हैं. हैजार्ड लाइट सिर्फ तब इस्तेमाल करें जब गाड़ी खराब होकर खड़ी हो या आप इमरजेंसी में सड़क किनारे रुके हों. चलते समय हैजार्ड लाइट भ्रम पैदा करती है और हादसे का कारण बन सकती है.
कोहरे में अचानक ब्रेक मारना या तेज मोड़ लेना बहुत जोखिम भरा होता है. पीछे चल रही गाड़ी को समय नहीं मिल पाता और रियर एंड टक्कर हो जाती है. हमेशा स्मूद तरीके से ब्रेक लगाएं और मोड़ पर पहले से इंडिकेटर दें. गाड़ी को जितना स्थिर और अनुमानित तरीके से चलाया जाएगा, उतना सुरक्षित रहेगा.
जब सामने कुछ साफ न दिखे तो लेन मार्किंग, सड़क के किनारे लगे कैट आई रिफ्लेक्टर और डिवाइडर आपकी आंख बनते हैं. हमेशा नजर सड़क के बाईं या दाईं लेन लाइन पर रखें. इससे आपको अंदाजा बना रहता है कि गाड़ी सही दिशा में है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप सड़क के बीचोंबीच चलने लगें.
मान लीजिए आप 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चला रहे हैं. सामान्य हालात में आपकी कार को पूरी तरह रुकने में करीब 35 से 40 मीटर की दूरी लग सकती है. लेकिन अगर विजिबिलिटी ही 20 मीटर है, तो सामने दिखते ही ब्रेक मारने का मतलब सीधी टक्कर है. यही कारण है कि विशेषज्ञ कोहरे में स्पीड को 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे तक सीमित रखने की सलाह देते हैं, खासकर हाईवे पर.

ऑटो सेफ्टी स्टडीज के अनुसार फॉग लैंप सड़क की सतह को लगभग 2 से 3 गुना बेहतर तरीके से रोशनी करते हैं, बनिस्बत हाई बीम हेडलाइट के. इसका कारण यह है कि फॉग लैंप की रोशनी का एंगल नीचे की ओर होता है और यह कोहरे से कम रिफ्लेक्ट होती है. यही वजह है कि यूरोप और कई विकसित देशों में कोहरे वाले इलाकों में फॉग लैंप को अनिवार्य सेफ्टी फीचर माना जाता है.
फॉग लाइट्स/हेडलाइट कैसे और क्यों बेहतर काम करती है
• फॉग लाइट्स (लो बीम + नीचे/साइड की ओर रोशनी) कोहरे में प्रकाश को फैलने से रोकती हैं और बेहतर विजिबिलिटी देती हैं.
• येलो फॉग लाइट्स का कोहरे में कम बैक-स्कैटर और बेहतर विजिबिलिटी के लिए अधिक असरदार होता है.
सर्दियों में तापमान गिरने से टायर प्रेशर अपने आप 2 से 3 पीएसआई तक कम हो सकता है. कम टायर प्रेशर की वजह से ब्रेकिंग पर गाड़ी का बैलेंस बिगड़ सकता है. आंकड़े बताते हैं कि गलत टायर प्रेशर की वजह से एक्सीडेंट का खतरा करीब 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. इसलिए कोहरे में ड्राइव करने से पहले टायर प्रेशर और ट्रेड डेप्थ जरूर चेक करनी चाहिए.
नेशनल रोड सेफ्टी डेटा के मुताबिक सुबह के समय होने वाले हादसों में करीब 15 प्रतिशत मामलों में ड्राइवर की झपकी या थकान बड़ी वजह होती है. कोहरा इस खतरे को और बढ़ा देता है, क्योंकि लगातार एक जैसी सफेद धुंध देखने से आंखें जल्दी थकती हैं. इसलिए लंबी ड्राइव में ब्रेक लेना और खुद को अलर्ट रखना बेहद जरूरी है.
कोहरे में ड्राइविंग के दौरान सबसे जरूरी चीज है धैर्य. जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी अक्सर हादसे में बदल जाती है. अगर कोहरा बहुत घना हो और आपको सुरक्षित नहीं लग रहा, तो बेहतर है कि किसी सुरक्षित जगह पर रुक जाएं. याद रखिए, गाड़ी देर से पहुंचे तो चलेगा, लेकिन सुरक्षित पहुंचे, यही सबसे जरूरी है.