scorecardresearch
 

गांधी में 'महात्मा' और पटेल में 'लौहपुरुष' गढ़ने वाले शिल्पकार... नहीं रहे राम सुतार!

चंबल को माता का रूप देने वाले, महात्मा गांधी की स्मृति को प्रतिमा में ढालने वाले और ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ से भारत की पहचान ऊंची करने वाले शतायु शिल्पकार राम वी सुतार, जिन्होंने 100 वर्ष की उम्र तक पत्थर, मिट्टी और धातु से संवाद नहीं छोड़ा. अब उनकी यादें स्मारकों में जीवंत रहेंगी.

Advertisement
X
प्रसिद्ध और वरिष्ठ शिल्पकार राम वी. सुतार का 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया
प्रसिद्ध और वरिष्ठ शिल्पकार राम वी. सुतार का 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया

'मूर्तिकला चित्रकला जैसी नहीं होती. इसमें अक्सर बहुत ज्यादा कठोर और शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है. और मुझे लगता है कि मैं अभी लंबे समय तक काम करता रह सकता हूं.' शिल्पकला की जीवंत मूर्ति रहे राम वी सुतार ने यह बात एक विदेशी मीडिया को दिए इंटरव्यू में कही थीं. इस इंटरव्यू की तारीख खंगालें तो शायद वह 89 वर्ष के रहे होंगे.

यह जीवन और जिजिविषा का सबसे सार्थक उदाहरण हैं, क्योंकि 89 वर्ष की अवस्था आज के समाज में संपूर्ण से अधिक की मानी जाती है, लेकिन राम सुतार ने जब गुरुवार की सुबह चिरनिद्रा को अपनाया तो वह 100 वर्ष के हो चुके थे और आप आश्चर्य करें इससे पहले ही यह बता देना जरूरी है कि अभी लगभग 20 दिन पहले ही पीएम मोदी ने गोवा में श्रीराम की एक प्रतिमा का अनावरण किया था, जिसकी निर्माण और संकल्पना राम वी सुतार ने ही की थी. 

Goa Sriram Statue Ram Sutar
हाल ही में पीएम मोदी ने गोवा के गोकर्ण जीवोत्तम मठ में श्रीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था, जिसका निर्माण शिल्पकार राम वी. सुतार ने ही किया था


भित्तिचित्र से शिल्पकला तक
यानी वह निधन से ठीक पहले भी पूरी तरह न सिर्फ सक्रिय थे बल्कि अपनी शिल्प साधना भी जारी रखे हुए थे. अपने 100 वर्ष के जीवन में तकरीबन 400 से अधिक यादगार स्मारकों के तौर पर प्रमुख शिल्पों की रचना कर चुके राम सुतार का जन्म साल 1925 में उत्तरी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके पिता बढ़ई और लोहार थे. उनके शुरुआती कामों में घर की कच्ची दीवारों पर गोबर से बनाए गए भित्तिचित्र शामिल थे.

Advertisement

उन्होंने स्कूल की स्लेट पर एक हिंदू देवी की आकृति उकेरी, जिसने मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) की एक कला प्रतियोगिता में पुरस्कार दिलाया. बाद के दिनों में दोस्तों की आर्थिक मदद से उन्होंने देश के सबसे प्रतिष्ठित कला विद्यालयों में से एक जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई पूरी की और एलोरा व अजंता की गुफाओं में प्राचीन हिंदू मूर्तियों के संरक्षण का काम किया.

चंबल नदी को माता चंबल में ढाला
उनका बड़ा ब्रेक तब आया, जब उन्होंने उत्तरी भारत में एक बांध के पास 45 फीट ऊंची एक नदी देवी की प्रतिमा बनाने का काम महज 10,000 रुपये में स्वीकार कर लिया. बहुत कम लोगों को भरोसा था कि वह यह काम पूरा कर पाएंगे. वह अपनी पत्नी और छोटे बेटे के साथ उस दूरदराज इलाके में चले गए और 1960 के शुरुआती वर्षों में 18 महीने तक एक विशाल कंक्रीट के ढांचे को तराशते रहे.

माता चंबल की प्रतिमा ने दिलाई पहली पहचान
इस तरह उन्हें पहली बड़ी पहचान मध्य प्रदेश में गांधी सागर बांध पर बनी चंबल नदी की प्रतिमा से ही मिली. एक नदी को प्रतिमा के रूप में ढालना अपने आप में दुष्कर काम था. हालांकि भारत के पौराणिक आख्यानों में नदियां अक्सर देवी के तौर पर पूजी जाती हैं और प्राचीन ग्रंथों में उनका मानवीकरण किया गया है, लेकिन यह लिखित में है, स्पष्ट तौर पर किसी नदी को स्त्री वेश में देखा जाना तो सुलभ नहीं था. 

Advertisement

राम सुतार ने चंबल को माता के रूप में गढ़ने का बीड़ा उठाया. उन्होंने चंबल नदी को एक युवती के रूप में ढाला. नदी का रूप लिए यह युवती कटि वस्त्र (कमर से घुटने के ऊपक तक ढंकने वाला वस्त्र) पहने,  जनजातीय स्त्रियों जैसे गोल बूंदे वाले आभूषण, करधन, कंगन, बाजूबंद, ऊंचा मौरीय मुकुट और उठा हुआ जूड़ा बांधें लंबे कान वाली स्त्री के रूप में उकेरा. उनके हाथ में एक दिव्य घड़ा है जो साधारण डिजाइन में सजा हुआ है. इसमें प्रतीक रूप में जल है. दोनों ओर दो बालक हैं.

प्रतीक के तौर पर इन्हें मध्य प्रदेश और राजस्थान माना जाता है. माता चंबल अपने इन दोनों पुत्रों का अपने जल से पोषण करती हैं, ऐसी भावना के साथ राम वी सुतार ने इस प्रतिमा को गढ़ा था. यह 45 फीट ऊंची प्रतिमा एक ही चट्टान से तराशी गई थी. मध्य भारत के बीहड़ इलाकों से बहने वाली चंबल नदी इस तरह ‘माता चंबल’ बन जाती हैं, जिनके दो बच्चे मध्य प्रदेश और राजस्थान हैं. 

Ram v Sutar
मध्य प्रदेश में गांधी सागर बांध पर बनी चंबल नदी की प्रतिमा, जिन्हें माता चंबल कहा जाता है

साधारण नैन नक्श के बावजूद यह प्रतिमा अपने सांस्कृतिक महत्व और बारीक डीटेलिंग के कारण दैवीय हो जाती है और सहज ही अपनी ओर ध्यान खींचती है. इस प्रतिमा के अनावरण ने तब तत्कालीन पीएम रहे पं. नेहरू का भी ध्यान अपनी ओर खींचा, लिहाजा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जब यह चंबल प्रतिमा देखी, तो उन्होंने राम सुतार को कई और बड़े प्रोजेक्ट से जोड़ने का मन बना लिया.

Advertisement

इस प्रतिमा के पूरा होते ही उन्हें एक के बाद एक कई बड़े ऑर्डर मिलने लगे और देश के कई शीर्ष नेताओं से उनका परिचय हुआ, जिनमें जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी भी शामिल थे. उनका सबसे सफल काम महात्मा गांधी की एक ध्यानमग्न कांस्य प्रतिमा है, जिसकी प्रतियां भारत सरकार ने दुनिया भर के सैकड़ों शहरों को भेंट की हैं. उनकी अन्य प्रतिमाएं भारतीय संसद और देश के विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में भी स्थापित हैं.

प्रतिमा गढ़ने की जटिल प्रक्रिया
उनकी सभी मूर्तियां मिट्टी के मॉडल से शुरू होती हैं, जिन्हें बनाने में आमतौर पर उन्हें करीब दो महीने लगते हैं. इसके बाद प्लास्टर ऑफ पेरिस से सांचा बनाया जाता है, जिससे फाइबरग्लास की प्रतिकृति तैयार की जाती है. पहले इन मॉडलों को विशाल आकार में बदलने में महीनों लगते थे और बेहद जटिल गणनाएं करनी पड़ती थीं. अब कंप्यूटर-नियंत्रित विशाल ड्रिल मशीनें, जो प्लास्टिक फोम के बड़े-बड़े ब्लॉकों को तराशती हैं, इस प्रक्रिया को महीनों से घटाकर कुछ दिनों में पूरा कर देती हैं.

...जब स्वदेशी आंदोलन में जलाई गई थी टोपी
महात्मा गांधी को लेकर अपने काम की गहराई पर बात करते हुए एक और इंटरव्यू में राम सुतार कहते हैं कि 'आजादी के आंदोलन वाले माहौल में जन्म हुआ था, कभी गांधी जी व्यक्तिगत रूप से मिलना तो नहीं हुआ, लेकिन मैं जब पांच वर्ष का था तब से ही उनकी एक इमेज, एक छवि मन में थी. वह बहुत लोकप्रिय थे और लोग उनकी बात सुनते थे. वह 1930-31 के किसी दौर का जिक्र करते हुए कहते हैं कि तब स्वदेशी आंदोलन जोरों पर था. एक दिन उनके स्कूल के सामने भी सड़क विदेशी कपड़े जलाए जा रहे थे. मैं भी वहां खड़ा था. किसी आंदोलन से तो नहीं जुड़ा था, लेकिन मैंने तब एक टोपी पहन रखी थी. किसी ने कहा कि यह भी तो विदेशी है, फिर अगले ही पल टोपी आग के हवाले हो गई.'

Advertisement

फिर बड़ा होता गया. अखबारों-किताबों और तमाम चर्चाओं से गांधीजी का व्यक्तित्व जेहन में एक जगह बनाता गया और फिर वह उभर कर तब आया जब उनकी प्रतिमा गढ़ने का मौका मिला. बता दें कि राम सुतार ने जिन कई स्मारकों का निर्माण किया है, उनमें गांधी जी के स्मारकों और शिल्प की संख्या सैकड़ों में है. स्पष्ट संख्या की बात करें तो छोटी-बड़ी और रेप्लिकाओं को मिलाकर यह आंकड़ा 400 तक पहुंच जाता है.

Ram v Sutar
अमृतसर में महाराजा रणजीत सिंह की 21 फीट ऊंची प्रतिमा



सुतार हमें गांधी का एक ऐसा सशक्त चित्र भी देते हैं, जो महात्मा को उनकी अपनी दृष्टि से देखने का अवसर देता है. वे गांधी की ठोस उपस्थिति को एक प्रतीकात्मक आइकन के रूप में सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं. एक स्टेच्यू को गढ़ने में इतिहास, स्मृति और आंतरिक अनुभव के मेलजोल पर राम सुतार ने एक दफा बताया था कि, 'स्मृति मेरी रचनाओं का उतना ही अभिन्न हिस्सा है, जितना किसी व्यक्ति के इतिहास को गढ़ते हुए स्वाभाविक यथार्थवाद. गांधी का नाम लेते ही हमारे मन में सद्भावना, अहिंसा और सत्य का विचार आता है. इसके साथ ही हम उनके जीवन की घटनाओं को याद करते हैं.

स्मृति इसलिए जरूरी बन जाती है क्योंकि कुछ घटनाएं और प्रसंग उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं. इतिहास और स्मृति साथ-साथ चलते हैं, क्योंकि वे व्यक्ति की अभिव्यक्ति को पोषित करते हैं. लेकिन जब मैंने गांधी को गढ़ा, तो वह अनुभव से भी जन्मा था. इस तरह तीनों तत्व एक साथ काम कर रहे थे. यही कारण है कि मैं गांधी की अनेक अलग-अलग मूर्तियां बना सका, क्योंकि अनुभव की समृद्धि ने इतिहास और स्मृति दोनों को पोषण दिया.'

Advertisement

सरदार पटेल की पहली प्रतिमा 
राम सुतार की 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' ने देश की सबसे ऊंची प्रतिमा के रूप में सुर्खियां बटोरीं थीं. उन्होंने सरदार पटेल की पहली प्रतिमा 1998 में बनाई थी जो दिल्ली स्थित संसद में स्थापित हुई. भारतीय संसद परिसर में स्थापित सुतार द्वारा निर्मित महात्मा गांधी की एक विशाल, बैठी हुई आकृति है. इसमें महात्मा गांधी को गंभीर, मौन और भारपूर्ण मुद्रा में प्रस्तुत करने का उनका निर्णय, उन्हें एक साधारण वृद्ध के पारंपरिक रूप से अलग करता है. पारंपरिक प्रतीकों और सजावटी वस्तुओं की अनुपस्थिति में गांधी की पहचान और भी स्पष्ट, सौम्य और सौंदर्यपूर्ण रूप में उभरती है. इससे यह संभावना भी खुलती है कि महात्मा एक साथ यथार्थ भी हो सकते हैं और एक प्रतीकात्मक नेतृत्वकर्ता भी.

Ram v Sutar
पुरानी संसद भवन परिसर में स्थापित महात्मा गांधी की ध्यानमग्न प्रतिमा, राम सुतार द्वारा निर्मित यह प्रतिमा शांति का मूर्त स्वरूप है.

स्मारकों में जीवंत रहेंगे राम सुतार
वास्तव में, सुतार का महात्मा निर्माण हर स्तर पर महाकाव्यात्मक है, उसकी अभिव्यक्ति में भी और उसकी जड़ों में भी. सुतार के लिए यह एक ऐसी यात्रा रही, जिसमें अभिव्यक्ति और ईमानदारी साथ-साथ चलती हैं. एक दौर में राम सुतार ने यह भी कहा था 'जब मैं मूर्तियां बनाता हूं, तो मुझे अपनी अंतरात्मा और अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जन्मे यथार्थवादी रूप के प्रति सच्चा रहना होता है. इतिहास नहीं बदलता, लेकिन उसकी प्रासंगिकता बदलती रहती है. जब मेरी मूर्तियां दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित होती हैं, तो उनसे अनेक कहानियां जन्म लेती हैं—प्रेरणा देने वाली कहानियां. यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है.'

Advertisement

राम सुतार अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह अपने उन सभी स्मारकों के साथ जीवित और जीवंत है जो दुनियाभर के तमाम चौराहों से लेकर प्रख्यात परियोजनाओं के बीच स्थापित हैं और भारतीय शिल्प की संस्कृति की गाथा बयां कर रहे हैं. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement