पाकिस्तान के सपोर्ट में कूद कर आगे आए थे एर्दोगन, ईरान पर US ने हमला किया तो बोलती बंद क्यों हो गई?

ईरान पर जब इजरायल ने हमला किया था तब तुर्की खुलकर उसकी आलोचना कर रहा था. तुर्की ने ईरान पर हमलों को लेकर इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को तानाशाह भी बता दिया था लेकिन अब जब अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया है तो तुर्की चुप हो गया है.

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ईरान पर अमेरिका हमले को लेकर तुर्की ने चुप्पी साध ली है (Photo- Reuters) ईरान पर अमेरिका हमले को लेकर तुर्की ने चुप्पी साध ली है (Photo- Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:14 PM IST

पाकिस्तान स्पॉन्सर आतंकियों ने जब भारत के पहलगाम में हमला किया था और भारत को आतंकियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की थी तब तुर्की पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर आ गया था. भारत के ऑपरेशन सिंदूर के तहत मारे गए आतंकियों को तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने श्रद्धांजलि दी थी और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति जताई थी. लेकिन अब जब तुर्की के एक और पड़ोसी ईरान पर अमेरिका बमबारी कर रहा है तो तुर्की ने चुप्पी साध ली है. इजरायली और अमेरिकी हमले में मारे जा रहे निर्दोषों को लेकर एर्दोगन के मुंह से अमेरिका की आलोचना का एक शब्द तक नहीं निकल रहा.

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शनिवार को अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जानकारी दी कि अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों को टार्गेट किया है. ईरान पर हमले की जानकारी देते हुए ट्रंप ने कहा, 'या तो शांति होगी या फिर ईरान के लिए त्रासदी होगी जो पिछले आठ दिनों में हमने नहीं देखी है.'

इराक, मिस्र, सऊदी अरब, कतर जैसे ईरान के क्षेत्रीय सहयोगियों ने ईरान पर अमेरिकी हमले की जबरदस्त आलोचना की है लेकिन तुर्की ने घंटों बाद एक बयान जारी किया जिसमें अमेरिका की आलोचना नहीं थी.

तुर्की के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि ताजा हमले क्षेत्र के सुरक्षा वातावरण को और अधिक तनावपूर्ण बनाने का काम करेंगे.

बयान में तुर्की ने बेहद ही सधे लहजे में कहा, 'तुर्की ईरान के परमाणु संयंत्रों पर अमेरिकी हमले के संभावित परिणामों को लेकर बेहद चिंतित है. वर्तमान घटनाक्रम क्षेत्रीय संघर्ष को वैश्विक स्तर तक बढ़ा सकता है. हम नहीं चाहते कि यह वास्तविकता बन जाए.'

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इजरायल ने किया हमला तो भड़क गए थे एर्दोगन लेकिन ट्रंप के सामने बंद हो गई बोलती

10 दिन पहले जब इजरायल ने ईरान के परमाणु और मिसाइल ठिकानों को निशाना बनाकर हमला किया था तब तुर्की ने इजरायल की कड़ी निंदा की थी. तुर्की का कहना था कि इजरायल पूरे क्षेत्र को एक बड़े युद्ध में धकेलना चाहता है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने इस संबंध में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान से बात की थी. एर्दोगन ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आलोचना करते हुए कहा था कि उनका प्रशासन वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता के लिए एक समस्या है.

इसके बाद संसद में बोलते हुए एर्दोगन ने नेतन्याहू को जर्मन तानाशाह हिटलर से भी दो कदम आगे बताया था. उन्होंने कहा था, 'द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे भयावह तस्वीरें और वीडियो भी गाजा से आ रही तस्वीरों-वीडियो की भयावहता के आगे फीकी हैं. नरसंहार के मामले में नेतन्याहू हिटलर से बहुत पहले आगे निकल चुके हैं.' 

लेकिन जब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया तो तुर्की के सुर बदल गए और उसने बेहद ही संतुलित टिप्पणी की.

एर्दोगन की दूर की सोच

तुर्की खुद भी नहीं चाहता कि ईरान परमाणु बम बनाए लेकिन ईरान के परमाणु संयंत्रों पर इजरायली हमलों की उसने आलोचना की है. खासकर तब जब ऐसी रिपोर्टें सामने आने लगी कि न तो अमेरिकी खुफिया एजेंसी और न ही अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है.

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इसी वजह से तुर्की के अधिकारियों ने ईरान पर इजरायली हमले की निंदा करने में जल्दबाजी दिखाई क्योंकि वो क्षेत्र में एक और युद्ध नहीं चाहते थे. पहले से ही गाजा, लेबनान और सीरिया में इजरायल के हमले जारी है.

इजरायल की आलोचना के साथ ही एर्दोगन ने ईरानी राष्ट्रपति पेजेश्कियान और ट्रंप समेत कई नेताओं से फोन पर बात की. इस बातचीत के जरिए एर्दोगन ने खुद को एक संभावित मध्यस्थ के रूप में स्थापित कर लिया और कहा कि अमेरिका और ईरान तुर्की में वार्ता कर सकते हैं.

लेकिन जब अमेरिका ने हमला किया तो एर्दोगन ने ट्रंप की आलोचना करन के बजाए उनके साथ अपने अच्छे संबंधों को बनाए रखने को तरजीह दी. ट्रंप के साथ अच्छे संबंधों की वजह से ही तुर्की ने उन्हें सीरिया से प्रतिबंध हटाने के लिए राजी किया था.

मिडिल ईस्ट आई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एर्दोगन अकसर उग्र बयानबाजी करते हैं जैसा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान के पक्ष में किया था. लेकिन जब क्षेत्रीय संघर्षों की बात आती है तो वो एक बेहद ही बारीक रेखा पर चलते हैं और तुर्की के फायदे के लिए किसी का भी पक्ष लेने से बचते हैं.

तुर्की अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी रक्षा संगठन नेटो का सदस्य भी है और अमेरिका के साथ उसके मजबूत संबंध हैं. ऐसे में वो ट्रंप की आलोचना से बच रहा है. 

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