ईरान की न्यूक्लियर साइट पर हमले के बाद रेडिएशन लीक का कितना खतरा? एक्सपर्ट ने समझाया

ब्रिटेन के लीसेस्टर यूनिवर्सिटी में सिविल सेफ्टी और सिक्योरिटी यूनिट को लीड करने वाले साइमन बेनेट ने कहा कि अंडरग्राउंड फैसिलिटी पर हमले से पर्यावरण को होने वाला खतरा न्यूनतम होता है, क्योंकि आप न्यूक्लियर मैटेरियल को हजारों टन कंक्रीट, मिट्टी और चट्टान में दबा रहे होते हैं.

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ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर साइट ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर साइट

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2025,
  • अपडेटेड 4:52 PM IST

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के अहम परमाणु ठिकानों को सैन्य हमलों में तबाह करने का दावा किया है. अमेरिकी हवाई हमले में ईरान की अंडरग्राउंड न्यूक्लियर साइट फोर्डो को भी निशाना बनाया गया है. 13 जून को इजरायल की तरफ से ईरान पर शुरू किए गए हमलों में अब अमेरिका की भी एंट्री हो चुकी है. हालांकि अब भी ट्रंप को उम्मीद है कि ईरान किसी तरह की जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा और उन्होंने मिडिल ईस्ट में शांति कायम करने की अपील की है. 

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न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने कहा है कि ईरान के यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट पर सैन्य हमलों से रेडिएशन लीक का सीमित जोखिम है और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने रविवार को कहा कि अमेरिकी हमलों के बाद साइट के बाहर रेडिएशन लेवल में वृद्धि की कोई सूचना नहीं मिली है.

तीन परमाणु ठिकानों पर हमला

अमेरिकी सेना ने फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान में स्थित ठिकानों पर हमला किया गया है. ट्रंप ने कहा कि ईरान की प्रमुख न्यूक्लियर एनरिचमेंट फैसिलिटीज को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है. ये हमले नतांज़, इस्फ़हान, अराक और तेहरान में परमाणु ठिकानों पर पहले से घोषित इज़रायली हमलों के बाद हुए हैं.

इजरायल का कहना है कि उसका टारगेट ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना है और अमेरिका का कहना है कि तेहरान को ऐसे हथियार हासिल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी. ईरान ने हमेशा से परमाणु हथियार बनाने की बात से इनकार किया है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु निगरानी संस्था IAEA ने पहले ही नतांज स्थित यूरेनियम एनरिचमेंट प्लांट, इस्फ़हान स्थित परमाणु कैंपस, जिसमें यूरेनियम कन्वर्जन फैसिलिटी भी शामिल है, करज और तेहरान में सेंट्रीफ्यूज प्रोडक्शन फैसिलिटी को हुए नुकसान की रिपोर्ट दी है.

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इज़रायल ने अराक पर भी हमला किया है, जिसे खोंडब के नाम से भी जाना जाता है. IAEA ने कहा कि इज़रायली सैन्य हमलों ने खोंडब हैवी वाटर रिसर्च रिएक्टर को नुकसान पहुंचाया, जो निर्माणाधीन था और अभी चालू नहीं हुआ था. पास में स्थित हैवी वाटर प्लांट को भी नुकसान पहुंचा है. IAEA ने कहा कि यह चालू नहीं था और इसमें कोई न्यूक्लियर मैटेरियल नहीं था, इसलिए कोई रेडियोलॉजिकल असर नहीं हुआ. हैवी वाटर वाले रिएक्टरों का इस्तेमाल प्लूटोनियम बनाने के लिए किया जा सकता है, जिसका इस्तेमाल एनरिच यूरेनियम की तरह परमाणु बम बनाने के लिए किया जा सकता है.

इन हमलों से क्या खतरा पैदा होता है?

अमेरिकी हमलों से पहले रॉयटर्स से बात करते हुए विशेषज्ञों ने कहा था कि इजरायल के हमलों से अब तक रेडिएशन लीक का सीमित जोखिम पैदा हुआ है. लंदन थिंक टैंक RUSI की सीनियर रिसर्च फेलो डरिया डोलजीकोवा ने कहा कि न्यूक्लिर फ्यूल साइकिल के फ्रंट एंड- वह फेज जहां रिएक्टर में इस्तेमाल के लिए यूरेनियम तैयार किया जाता है, पर हमले से मुख्य रूप से रासायनिक खतरा पैदा होता है, न कि रेडियोलॉजिकल खतरा.

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यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड की चिंता

उन्होंने कहा कि जब यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड यानी UF6 हवा में मौजूद जल वाष्प के साथ संपर्क करता है, तो यह हानिकारक केमिकल पैदा करता है. कम हवा में, ज्यादा मैटेरियल ठिकाने के आस-पास जमने की उम्मीद की जा सकती है. तेज़ हवा में न्यूक्लियर मैटेरियल दूर तक जाएगा और ज्यादा मात्रा में फैलने की भी संभावना है. अंडरग्राउंड फैसिलिटी से हानिकारक केमिकल के फैलने का जोखिम कम है.

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ब्रिटेन के लीसेस्टर यूनिवर्सिटी में सिविल सेफ्टी और सिक्योरिटी यूनिट को लीड करने वाले साइमन बेनेट ने कहा कि अंडरग्राउंड फैसिलिटी पर हमले से पर्यावरण को होने वाला खतरा न्यूनतम होता है, क्योंकि आप न्यूक्लियर मैटेरियल को संभवतः हजारों टन कंक्रीट, मिट्टी और चट्टान में दबा रहे होते हैं.

कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में न्यूक्लियर पॉलिसी प्रोग्राम के को-डायरेक्टर जेम्स एक्टन ने कहा कि परमाणु रिएक्टर में जाने से पहले यूरेनियम मुश्किल से रेडियोएक्टिव होता है. उन्होंने कहा कि यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड रासायनिक रूप जहरीला होता है लेकिन यह वास्तव में लंबी दूरी तक नहीं जाता और यह मुश्किल से रेडियोएक्टिव होता है. उन्होंने इजरायल के ऑपरेशन का विरोध करते हुए कहा कि एनरिचमेंट फैसिलिटी पर हमलों से महत्वपूर्ण बाहरी नतीजे पैदा होने की संभावना नहीं है.

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लीक से होगी केमिकल प्रॉब्लम 

मुख्य चिंता खाड़ी तट पर बुशहर में ईरान के परमाणु रिएक्टर पर हमला होगी. 19 जून को जब इजरायली सेना ने कहा कि उसने बुशहर में एक ठिकाने पर हमला किया है, तो खाड़ी में तबाही की आशंका फैल गई, लेकिन बाद में उसने कहा कि यह ऐलान एक गलती थी. इजरायल का कहना है कि वह किसी भी परमाणु आपदा से बचना चाहता है.

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर रिचर्ड वेकफोर्ड ने कहा कि एनरिचमेंट फैसिलिटी पर हमलों से होने वाला लीक आसपास के क्षेत्रों के लिए मुख्य रूप से एक केमिकल प्रॉब्लम होगी, लेकिन बड़े पावर रिएक्टरों को नुकसान की कहानी अलग है. उन्होंने कहा कि रेडियोएक्टिव तत्व या तो वाष्पशील पदार्थों के जरिए या समुद्र में छोड़े जाएंगे. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के एक्टन ने कहा कि बुशहर पर हमला रेडियोलॉजिकल तबाही की वजह बन सकता है.

खाड़ी देश क्यों हैं परेशान?

खाड़ी देशों के लिए बुशहर पर किसी भी हमले का असर खाड़ी जल के संभावित प्रदूषण के कारण और भी खराब हो जाएगा, जिससे पेयजल का एक महत्वपूर्ण स्रोत खतरे में पड़ जाएगा. मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि हमलों के बाद किसी भी संभावित लीक की निगरानी के लिए खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) हाई अलर्ट पर है.

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उन्होंने बताया कि अभी तक रेडियोलॉजिकल लीक के कोई संकेत नहीं मिले हैं, साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि खाड़ी में पानी और खाद्य सुरक्षा को खतरा होने की स्थिति में जीसीसी के पास आपातकालीन योजनाएं हैं. अधिकारियों का कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात में मीठा पानी, पेयजल का 80% से अधिक है, जबकि बहरीन 2016 में पूरी तरह मीठे पानी पर निर्भर हो गया, और 100% भूजल को इमरजेंसी प्लानिंग के लिए रिजर्व कर दिया गया.

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सऊदी अरब, जो एक बहुत बड़ा देश है और जिसके पास प्राकृतिक भूजल का अधिक भंडार है, वहां 2023 तक लगभग 50% जल आपूर्ति मीठे पानी से होगी. जबकि सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे कुछ खाड़ी देशों के पास पानी खींचने के लिए एक से ज्यादा समुद्रों तक पहुंच है, कतर, बहरीन और कुवैत खाड़ी के तट पर बसे हुए हैं और उनके पास कोई अन्य समुद्र तट नहीं है.

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