चुनाव से ठीक पहले हादी की हत्या क्यों? PAK के इशारों पर चल रही इस्लामिक पार्टी पर उठे सवाल

बांग्लादेश में उस्मान हादी की हत्या को लेकर जमात-ए-इस्लामी की संभावित भूमिका पर विवाद तेज हो गया है. बीएनपी नेता निलोफर चौधरी मोनी ने आरोप लगाया कि जमात के नेता मोहम्मद शिशिर मुनिर ने आरोपी फैसल करीम को हमले से पहले दो बार जमानत दिलवाई थी.

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उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं (Photo: AFP) उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं (Photo: AFP)

सुशीम मुकुल

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST

दिनदहाड़े गोलीबारी में भारत-विरोधी कट्टरपंथी नेता और ढाका-8 से उम्मीदवार शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में माहौल अब भी बेहद तनावपूर्ण बना हुआ है. हालांकि बांग्लादेशी पुलिस की जांच जारी है, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है. फरवरी में होने वाले चुनावों से पहले हो रही हिंसा को लेकर एक बड़ा सवाल बार-बार उठ रहा है और वो कि- उस्मान हादी की हत्या से आखिर किसे फायदा हुआ?

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विशेषज्ञों का मानना है कि न तो आवामी लीग (शेख हसीना की पार्टी, जिसपर फिलहाल बैन है) और न ही चुनावी दौड़ में आगे मानी जा रही बीएनपी, इन दोनों में से किसी को भी इस हत्या से कोई ठोस राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा. इसके बजाय, माना जा रहा है कि फायदा उन ताकतों को हो सकता है जो अराजकता, सांप्रदायिक डर और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने की वजह से वे फलती-फूलती हैं, न कि निष्पक्ष चुनाव में.

इसी बीच बीएनपी नेता और पूर्व सांसद निलोफर चौधरी मोनी ने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी के एक वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील मोहम्मद शिशिर मुनिर ने हादी के कथित शूटर फैसल करीम को पिछले दो सालों में दो बार जमानत दिलवाई थी. शिशिर मुनिर इस्लामी छात्र शिबिर (जमात की छात्र शाखा) के पूर्व केंद्रीय सचिव रह चुके हैं और फरवरी चुनाव में सुनेमगंज-2 सीट से जमात के टिकट पर मैदान में हैं.

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भारत-विरोधी नैरेटिव को हवा

कट्टर इस्लामिक उस्मान हादी, भारत-विरोधी मंच इंकलाब मंच का प्रवक्ता भी था. 12 दिसंबर को नकाबपोश, बाइक सवार हमलावरों ने उसे गोली मारी. घटना के बाद कट्टरपंथी समूहों और भारत-विरोधी आवाजों ने दावा किया कि शूटर फैसल करीम भारत भाग गया है. हालांकि, ढाका पुलिस ने कम से कम दो बार कहा कि उसके भारत भागने के कोई सबूत नहीं हैं और शूटर की लोकेशन की जानकारी उनके पास नहीं है.

इसके बावजूद, कुछ समूहों ने फैसल करीम को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग से जोड़ने की कोशिश की और इसी बहाने भारत-विरोधी भावनाएं भड़काईं. औपचारिक रूप से तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार,  मोहम्मद यूनुस प्रशासन ने भारत से सहयोग की अपील की, मगर जमीनी स्तर पर भारत-विरोधी नैरेटिव चलता रहा.

हादी की मौत की खबर फैलते ही भारत-विरोधी नारे तेज हो गए और ढाका में भारतीय राजनयिक मिशन को भी निशाना बनाया गया. बाद में बांग्लादेश की स्पेशल ब्रांच और डिटेक्टिव ब्रांच ने स्वीकार किया कि शूटर के ठिकाने को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं है.

इस बीच, उस्मान हादी के शूटरों को सजा दिलाने की मांग कर रहे इंकलाब मंच ने सोमवार को मोहम्मद यूनुस सरकार को चेतावनी दी. संगठन ने वॉर्निंग दी है कि अगर 24 घंटे के भीतर दोषियों को पकड़कर सजा नहीं दी जाती तो पूरे देश में आंदोलन होगा और यूनुस की सरकार गिरा दी जाएगी.

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हादी की हत्या किसने की?

इंकलाब मंच यूनुस प्रशासन पर लगातार दबाव बना रहा है और आरोप लगा रहा है कि सरकार न्याय दिलाने में नाकाम रही है. वहीं, पुलिस का कहना है कि कथित शूटर के ठिकाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि उस्मान हादी की हत्या से न तो आवामी लीग को कोई खास फायदा होता है और न ही बीएनपी को.

पेरिस में रहने वाले बांग्लादेशी मूल के भू-राजनीति विशेषज्ञ नाहिद हेलाल का कहना है कि इस हत्या से वास्तव में जमात और उससे जुड़े कट्टरपंथी गुटों को फायदा होगा.

हेलाल ने एक्स पर लिखा कि इस हत्या ने इन समूहों को वो सब कुछ दे दिया जिसकी उन्हें जरूरत थी- अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का बहाना, मीडिया संस्थानों पर हमले और उन्हें डराने का मौका, आवामी लीग के और कार्यकर्ताओं की हत्या की गुंजाइश और सबसे अहम, चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने या पटरी से उतारने का जरिया.

हादी की हत्या पर अपने यूट्यूब वीडियो में हेलाल ने कहा कि न तो बीएनपी और न ही आवामी लीग को इससे कोई फायदा होता है. उन्होंने बताया कि बीएनपी के वरिष्ठ नेता मिर्जा अब्बास ढाका-8 सीट से चुनाव लड़ रहे थे, जबकि हादी निर्दलीय उम्मीदवार थे.

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हेलाल के मुताबिक, राजनीतिक रूप से हादी और मिर्जा अब्बास के बीच कोई मुकाबला नहीं था. मिर्जा अब्बास कहीं अधिक लोकप्रिय और वरिष्ठ नेता हैं, जबकि हादी का राजनीतिक महत्व बहुत सीमित था. हालांकि, ढाका-8 सीट पर इस्लामी छात्र शिबिर के केंद्रीय नेता अबू शादिक कायेम की भी नजर थी. ऐसे में रणनीतिक तौर पर हादी का हटना जमात-शिबिर के लिए एक अवसर बन गया, जिससे उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है.

उन्होंने कहा कि संक्षेप में, इस हत्या के असली लाभार्थी एनसीपी और जमात शिबिर जैसे कट्टरपंथी हैं, जो यूनुस के सहयोगियों के साथ हैं और अस्थिरता से फायदा उठाते हैं. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि ध्यान से देखा जाए तो वास्तव में फायदा इन्हीं को हो रहा है.

हेलाल ने कहा कि बांग्लादेश में कुछ भारत-विरोधी तत्व जिस तरह नई दिल्ली पर आरोप लगा रहे हैं, वो वास्तव में बेबुनियाद हैं. उन्होंने यह भी कहा कि हमले के बाद कथित शूटर की गतिविधियों से जुड़े जो संकेत मिले हैं, उनसे लगता है कि इस पूरी घटना में इस्लामी कट्टरपंथी गुटों के बीच आपसी तालमेल था.

हेलाल ने यह भी कहा कि बांग्लादेश में कुछ भारत-विरोधी तत्वों नई दिल्ली को दोषी ठहरा रहे हैं लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं है. उनके अनुसार, हमले के बाद शूटर की गतिविधियों से जुड़े संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस्लामी कट्टरपंथी गुटों के बीच आपसी समन्वय था.

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हादी की मौत से इस्लामिक कट्टरपंथियों को हुआ फायदा

इसी तरह, भू-राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर काम करने वाले शोधकर्ता राजा मुनीब ने भी कहा कि हादी की हत्या से सबसे अधिक फायदा पारंपरिक राजनीतिक दलों को नहीं, बल्कि एनसीपी और जमात को हुआ है. उन्होंने एक्स पर लिखा कि ऐसे में यह सवाल बना रहता है कि आखिर ये दूसरे दर्जे के नेताओं को कौन खत्म कर रहा है. उनका आकलन इस धारणा को मजबूत करता है कि चरमपंथी समूह चुनावी राजनीति में भाग लेने के बजाय अराजकता में फलते-फूलते हैं.

अमेरिका स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट के एक सर्वे में 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो बीएनपी को वोट दे सकते हैं जबकि 29 प्रतिशत ने जमात के पक्ष में यही राय जताई. मंगलवार, 2 नवंबर को जारी सर्वे में यह भी सामने आया कि 53 प्रतिशत लोगों ने जमात को पसंद करने की बात कही, जबकि बीएनपी को पसंद करने वालों की संख्या 51 प्रतिशत रही. ऐसे में आवामी लीग पर प्रतिबंध और जातीय पार्टी के हाशिए पर जाने के बाद, जमात की स्थिति मजबूत होना हैरानी की बात नहीं मानी जा रही है.

बीएनपी ने भी उस्मान हादी की हत्या में जमात की संभावित भूमिका की ओर इशारा किया है. पार्टी नेता निलोफर चौधरी मोनी ने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी के नेता और वकील मोहम्मद शिशिर मुनिर ने हादी पर गोली चलाने के आरोपी फैसल करीम को हमले से कुछ महीने पहले दो बार जमानत दिलवाई थी.

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एक बांग्लादेशी टीवी चैनल पर बोलते हुए मोनी ने कहा, 'जिस आदमी ने हादी पर गोली चलाई, उसका बैकग्राउंड देखना चाहिए. उसे दो बार जमानत किसने दिलाई? मोहम्मद शिशिर मुनिर ने. मैं पूरी जिम्मेदारी से यह बात कह रही हूं. अगर मैं ज्यादा बोलूंगी तो शायद सुरक्षित घर भी न लौट पाऊं. हमने शेख हसीना को हटाया था, लेकिन इसके लिए नहीं.'

उनके बयान से यह संकेत मिलता है कि जमात से जुड़ी कानूनी मदद ने अप्रत्यक्ष रूप से हादी की हत्या का रास्ता आसान किया हो सकता है.

बांग्लादेश का माहौल डर से भरा हुआ

ढाका स्थित आईटीसी इवेंट्स लिमिटेड की सीईओ मरूफा यासमीन ने ढाका के अखबार 'देश रूपांतर' में लिखे अपने लेख में बांग्लादेश में चुनाव से पहले बढ़ती हिंसा के रुझान पर चिंता जताई.

यासमीन ने लिखा कि बांग्लादेश का माहौल किसी अनजाने डर से भरा हुआ लगता है. उन्होंने सवाल उठाया कि लोकतंत्र के उत्सव के नाम पर आम लोगों की सुरक्षा पीछे क्यों छूट जाती है.

उन्होंने यह भी लिखा कि इस तनावपूर्ण माहौल के पीछे कोई अदृश्य ताकत काम कर रही है जिससे साफ है कि यह चाल बेहद जटिल है. बीते दशकों के राजनीतिक रुझानों का विश्लेषण करने पर साफ होता है कि जब भी दो मुख्य राजनीतिक ताकतों के बीच भरोसा पूरी तरह टूटता है, तब एक तीसरी, लोकतंत्र-विरोधी ताकत उभर आती है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वह तीसरी ताकत कौन है.

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'पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रही जमात-ए-इस्लामी'

पिछले हफ्ते भारत की पूर्व बांग्लादेश राजदूत वीणा सीकरी ने आरोप लगाया था कि जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रही है और पाकिस्तान बांग्लादेशी सेना पर असर डालने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने बढ़ते भारत-विरोधी भावना के बीच मोहम्मद यूनुस की चुप्पी की भी आलोचना की और मौजूदा अशांति को बाहरी समर्थन से चल रही बड़ी साजिश का हिस्सा बताया.

अगर विशेषज्ञों की इन सभी बातों को जोड़कर देखा जाए, तो साफ होता है कि उस्मान हादी की हत्या से आवामी लीग या बीएनपी जैसे मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को नहीं, बल्कि जमात शिबिर और एनसीपी जैसे कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को फायदा हुआ है, जिन्हें यूनुस का समर्थक बताया जाता है.

ये वही ताकतें हैं जो अराजकता का फायदा उठाकर अपना असर बढ़ाती हैं और चुनावी प्रक्रिया को कमजोर करती हैं. साथ ही, शूटर को पकड़ने में यूनुस सरकार की नाकामी को भी ये समूह भारत-विरोधी और आवामी लीग-विरोधी नैरेटिव फैलाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.

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