'डॉलर को इग्नोर करने का खेल नहीं चलेगा...', भारत और चीन समेत BRICS देशों को ट्रंप की खुली धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका चाहता है कि ब्रिक्स देश यह समझ लें कि वे अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस नहीं कर सकते. अगर ऐसा होता है कि ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा. 

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप BRICS देशों से खफा हैं. पिछले कुछ समय से ऐसी खबरें सामने आ रही थीं कि ब्रिक्स देशों अपनी करेंसी शुरू कर सकते हैं. लेकिन अब ट्रंप ने इसे लेकर ब्रिक्स देशों को खुली धमकी दे दी है.

ट्रंप ने कहा कि अमेरिका चाहता है कि ब्रिक्स देश यह समझ लें कि वे अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस नहीं कर सकते. अगर ऐसा होता है कि ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा. 

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ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर पोस्ट कर कहा कि ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं और हम सिर्फ तमाशबीन बने हुए हैं लेकिन अब ये नहीं चलेगा. हम चाहते हैं कि ये हॉस्टाइल देश अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए ना तो नई ब्रिक्स करेंसी बनाएं और ना ही किसी अन्य करेंसी को सपोर्ट करें. अगर ऐसा नहीं किया गया तो ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा. 

ट्रंप ने कहा कि ऐसा नहीं होने पर इन देशों के लिए अमेरिकी बाजार के दरवाजे बंद हो जाएंगे. उन्हें कोई और बाजार ढूंढना होगा. इसकी कोई संभावना ही नहीं है कि ब्रिक्स देश इंटरनेशनल बाजार में अमेरिकी डॉलर की जगह किसी अन्य करेंसी को तवज्जो दें.

बता दें कि ट्रंप ने शपथ लेने के बाद सबसे पहले ओवल ऑफिस पहुंचकर कई कार्यकारी आदेशों पर साइन किए थे. इस दौरान उन्होंने ब्रिक्स देशों को धमकाते हुए कहा था कि अगर ब्रिक्स अमेरिका विरोधी नीतियां लाता है तो उन्हें इसका अंजाम भुगतना होगा. 

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ट्रंप ने कहा था कि इन देशों ने अमेरिका के हितों के विपरित कई चीजें करने की कोशिश की, अगर ये देश आगे भी ऐसा करते रहते हैं तो फिर उनके साथ जो होगा उसके बाद वे देश खुश नहीं रह पाएंगे.

ब्रिक्स देश नई करेंसी क्यों चाहते हैं?

नई करेंसी की चाहत के कई कारण हैं. हाल के समय की वैश्विक वित्तीय चुनौतियों और अमेरिका की आक्रामक विदेश नीतियों की वजह से ब्रिक्स देशों को एक साझा नई करेंसी की जरूरत पड़ी. ब्रिक्स देश चाहते हैं कि वे अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता कम कर आर्थिक हितों के लिए एक नई साझा करेंसी शुरू करें. 

सबसे पहले 2022 में 14वें ब्रिक्स समिट के दौरान इस नई करेंसी की जरूरत पर पहली बार बात हुई थी. उस समय रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि ब्रिक्स देश नई वैश्विक रिजर्व करेंसी शुरू करने की योजना बना रहे हैं. इसके बाद अप्रैल 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने ब्रिक्स करेंसी के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा था कि ब्रिक्स बैंक जैसे संस्थान के पास ब्राजील और चीन या फिर ब्राजील या अन्य ब्रिक्स देशों के बीच ट्रेड करने के लिए नई करेंसी क्यों नहीं हो सकती? 

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दक्षिण अफ्रीका के ब्रिक्स एंबेसेडर अनिल शुकलाल ने कहा कि 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई थी. 2023 में ब्रिक्स समिट में छह देशों अर्जेंटीना, मिस्र, इथीयोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स सदस्य के तौर पर शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. ये देश जनवरी 2024 में ब्रिक्स संगठन में शामिल हो गए.

ब्रिक्स करेंसी का अमेरिकी डॉलर पर कैसे पड़ेगा असर?

दशकों तक अमेरिकी डॉलर का विश्व पर एकतरफा वर्चस्व रहा है. यूएस फेडरल रिजर्व के मुताबिक, 1999 से 2019 के बीच अमेरिका में 96 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार डॉलर में,  एशिया प्रशांत क्षेत्र में 74 फीसदी कारोबार डॉलर में और बाकी दुनिया में 79 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ.

हालांकि, हाल के कुछ सालों में डॉलर का रिजर्व करेंसी शेयर घटा है क्योंकि यूरो और येन की लोकप्रियता भी बढ़ी है. लेकिन डॉलर अभी भी वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है. 

लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर कारोबार के लिए ब्रिक्स देश डॉलर के बजाए नई ब्रिक्स करेंसी का इस्तेमाल करने लगेंगे तो इससे प्रतिबंध लगाने की अमेरिका की ताकत पर असर पड़ सकता है. इससे डॉलर का मूल्य यकीनन घटेगा. हो सकता है कि इससे अमेरिका में घरेलू स्तर पर भी प्रभाव देखने को मिले. 

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ब्रिक्स में भारत भी शामिल है. ट्रंप ने पिछले साल दिसंबर में भी ब्रिक्स देशों को धमकी देते हुए कहा था कि अगर ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने का प्रयास किया तो वे उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगा देंगे. उनकी यह धमकी ब्रिक्स गंठबंधन में शामिल देशों के लिए हैं, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं.

इसके साथ ही तुर्की, अजरबैजान और मलेशिया ने ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है. इसके अलावा कई अन्य देशों ने भी इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है. हालांकि अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार में अब तक सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है और अतीत में आई चुनौतियों के बावजूद अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने में सफल रही है.

ब्रिक्स में शामिल सदस्यों और अन्य विकासशील देशों का कहना है कि वे वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के प्रभुत्व से तंग आ चुके हैं. ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता को कम करते हुए अपने आर्थिक हितों को बेहतर तरीके से साधना चाहते हैं.

रूस ने की थी डॉलर के खिलाफ पैरवी 

पिछले साल अक्टूबर में हुए BRICS देशों के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका पर डॉलर को हथियार बनाने का आरोप लगाते हुए इसे बड़ी गलती बताया था. उस समय पुतिन ने कहा था कि यह हम नहीं हैं जो डॉलर का उपयोग करने से इनकार कर रहे हैं. लेकिन अगर वे हमें काम नहीं करने दे रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? हमें विकल्प खोजने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

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