पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना के बीच चल रही लड़ाई के बीच खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से कई बड़े नेताओं ने किनारा कर लिया है. इमरान खान के डूबते राजनीतिक करियर के बीच पाकिस्तान में यह चर्चा जोरों पर है कि सेना के जनरलों से अपनी करीबी के कारण विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी एक मजबूत प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं.
9 मई को इमरान खान की गिरफ्तारी के लिए इस्लामाबाद कोर्ट के बाहर भारी हंगामा देखने को मिला. खान की गिरफ्तारी के बाद देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए और सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया गया. इसके बाद पाकिस्तान की सरकार ने पीटीआई समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई शुरू की. पाकिस्तानी सेना के दबाव में पीटीआई के दर्जनों बड़े नेताओं शिरीन मजारी, फवाद चौधरी, आमिर महमूद कियानी, अली जैदी, मलिका बोखारी आदि ने पार्टी छोड़ दी है.
कहा जा रहा है कि पीटीआई छोड़ रहे सभी नेता बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) से जुड़ सकते हैं. विश्लेषकों का कहना है कि जिन नेताओं ने पीटीआई छोड़ी है, अपने निर्वाचन क्षेत्र के वोट बैंक पर उनकी पकड़ है. इन नेताओं की मदद से पीपीपी अपने गढ़ सिंध प्रांत से निकलकर पंजाब में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है. 262 नेशनल एसेंबली सीटों वाला पंजाब पाकिस्तान की राजनीति में बेहद अहम स्थान रखता है.
इसके जरिए सिंध और बलुचिस्तान में पीपीपी और उसके सहयोगी एक ब्लॉक बनाने की कोशिश कर रहे है जिससे अक्टूबर में होने वाले नेशनल एसेंबली के चुनावों में उन्हें फायदा मिले.
'चुनाव के बाद बिलावल सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं'
इस्लामाबाद स्थित राजनीतिक विश्लेषक और सरकारी ब्रॉडकास्टर रेडियो पाकिस्तान के पूर्व महानिदेशक मुर्तजा सोलंगी ने कहा कि पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी गठंबधन सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, 'मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि अगले चुनावों के बाद कमजोर गठबंधन सरकार का नेतृत्व बिलावल भुट्टो करेंगे.'
साथ ही वो कहते हैं कि इस बात की संभावना कम है क्योंकि इसके लिए पीटीआई से दलबदलुओं को लाने की जरूरत होगी, फिर यह भी देखना होगा कि चुनाव के नतीजे क्या रहे हैं और फिर बिलावल को गठबंधन बनाकर उसे अपने पक्ष में करना होगा.
बिलावल की पार्टी पर सेना का हाथ
बिलावल भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने की अटकलें इसलिए भी तेज हैं क्योंकि अप्रैल 2022 में विदेश मंत्री बनने के बाद से ही वो सेना के करीब रहे हैं.
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया संस्थान के निदेशक माइकल कुगेलमैन का कहना है कि बिलावल पहले किसी उच्च सरकारी पद पर नहीं थे और अचानक 2018 में नेशनल असेंबली के लिए चुन लिए गए.
वो कहते हैं, 'बिलावल बिना सेना के आशीर्वाद के विदेश मंत्री जैसै बहुत वरिष्ठ पद तक नहीं पहुंच पाते. यह एक तथ्य है कि वो एक ऐसी पार्टी से आते हैं जिसकी सेना में अच्छी पकड़ है.'
कुगेलमैन का कहना है कि हाल ही में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों द्वारा रिकॉर्ड की गई कॉल रिकॉर्डिंग लीक हुई जिससे कई वरिष्ठ नेताओं को निशाना बनाया गया है. सिर्फ विपक्ष ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का पार्टी के नेताओं पर भी गाज गिरी लेकिन यह बात गौर करने वाली है कि बिलावल भुट्टो की पार्टी से किसी नेता को टारगेट नहीं किया गया.
मुर्तजी सोलंगी कहते हैं कि बिलावल भुट्टो ने विदेश मंत्री बनने के बाद से पाकिस्तान के साथ-साथ विदेशों में भी खुद को साबित किया है. वो कहते हैं, 'इससे बिलावल भुट्टो को राजनीति के दांवपेच जल्दी सीखने में आसानी हुई है और यह उनके लिए बहुत फायदेमंद है.'
पाकिस्तान में चर्चा में रहते हैं बिलावल
34 वर्षीय पाकिस्तान के विदेश मंत्री पिछले एक साल से सुर्खियों में हैं. दिसंबर में उन्होंने पिछली गर्मियों में आए विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित लोगों के लिए दुनिया से आर्थिक मदद की मांग की थी.
4-5 मई के बीच भारत में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में बिलावल शामिल हुए थे. यहां आकर उन्होंने कश्मीर में आयोजित जी-20 की मीटिंग को लेकर भारत की आलोचना की थी. उन्होंने भारत को धमकी के स्वर में कहा था कि समय आने पर ऐसा जवाब देंगे कि याद रहेगा.
उनके इस बयान को पाकिस्तान में खूब पसंद किया गया. सोशल मीडिया पर कई पाकिस्तानी यूजर्स ने बिलावल को भविष्य का पीएम कहा.
कश्मीर में जब 22-24 मई के बीच जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक चल रही थी तब बिलावल ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में कहा था कि बैठक में सऊदी, तुर्की, चीन जैसे देश नहीं आए और भारत अपने मकसद में नाकामयाब रहा है. उन्होंने कहा था कि वो कश्मीर के लोगों के साथ खड़े हैं. इसके बाद भी बिलावल की खूब तारीफ हुई थी.
लेकिन माइकल कुलेगमन का कहना है कि बिलावल ने विदेशों में पाकिस्तान का अच्छे से प्रतिनिधित्व किया लेकिन जब वो वापस पाकिस्तान आए तब अपने आलोचकों का मुंह बंद कराने में नाकामयाब रहे.
सेना भी चाहती है चुनाव के बाद पीएम बनें बिलावल
बिलावल दो बार की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेटे और 1970 के दशक के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के पोते हैं. कुगेलमैन कहते हैं कि उनका पारिवारिक इतिहास ऐसा है कि वो वंशवाद और भ्रष्ट राजनीति के पर्याय बन गए हैं. यही बात बहुत से पाकिस्तानियों के बिलावल को लेकर नाराजगी का कारण है. पाकिस्तान में अभी जो स्थिति है, उसे देखते हुए यह स्वाभाविक है कि भुट्टो को एक साथ प्रशंसा और नाराजगी दोनों झेलनी होगी.
कुगेलमैन का कहना है कि भले ही बिलावल भुट्टो ने अपने काम से अधिकतर पाकिस्तानी जनता का दिल न जीता हो लेकिन राजनीति में वो बहुत मजबूत स्थिति में हैं.
वो कहते हैं, 'बिलावल युवा और अनुभवहीन हैं और पाकिस्तान की बहुत बड़ी आबादी उनकी आलोचक है. लेकिन यह बात स्पष्ट है कि सत्ताधारी गठंबधन में उनकी स्थिति बहुत अच्छी है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि शीर्ष सैन्य नेतृत्व के लोगों के भीतर उनकी अच्छी स्थिति हैं. पाकिस्तान के इतिहास में कभी कोई युवा प्रधानमंत्री नहीं रहा, इस सच्चाई के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई लोगों की राय है कि सेना बिलावल भुट्टो को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखती है.'
सेना को पसंद है बिलावल का भारत विरोधी रुख
पाकिस्तान की आर्मी यूं तो शरीफ और जरदारी, दोनों ही परिवारों को नापसंद करती है और भ्रष्टाचार को लेकर दोनों ही राजनीतिक परिवारों के खिलाफ बातें की हैं लेकिन बिलावल भुट्टो सेना की पसंद बन गए हैं.
बिलावल भुट्टो खुद को एक ऐसे पाकिस्तानी देशभक्त के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं जो भारत विरोधी है और पाकिस्तान की सेना को एक ऐसे ही नेता की जरूरत है. बिलावल कश्मीर के मुद्दे पर अक्सर भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाते हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है और वो हमेशा उनके समर्थन में खड़ा रहेगा.
पीएम मोदी पर भी वो हमलावर रहते हैं. पिछले साल बिलावल ने पीएम मोदी को 'बुचर ऑफ गुजरात' कह दिया था जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया था. बिलावल के इस भारत विरोधी रुख को पाकिस्तान की सेना काफी पसंद करती है.
शहबाज शरीफ को क्यों हटाना चाहती है पाकिस्तानी सेना
शहबाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग नवाज को पाकिस्तान में एक ऐसी पार्टी के रूप में जाना जाता है जिसने भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश की. शहबाज शरीफ के भाई नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री रहने के दौरान पीएम मोदी से करीबी संबंधों के लिए जाना जाता है.
पीएम मोदी दिसंबर 2015 में नवाज से अपनी करीबी के कारण ही अचानक पाकिस्तान पहुंच गए थे. इस दौरान पीएम मोदी ने नवाज शरीफ को तोहफे में एक गुलाबी पगड़ी भेंट की थी.
शहबाज शरीफ भी भारत के साथ संबंधों को सुधारने की वकालत करते रहे हैं. इसी साल की शुरुआत में शहबाज शरीफ ने संयुक्त अरब अमीरात के न्यूज चैनल अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में कहा था कि पीएम मोदी को मेरा संदेश यही है कि आइए बातचीत की टेबल पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर और ईमानदार बातचीत करें.
हालांकि, उनके इस बयान के कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान इससे पलट गया. पाकिस्तानी पीएम ऑफिस की तरफ से शहबाज शरीफ के बयान पर सफाई जारी की गई जिसमें कहा गया कि भारत से बातचीत तभी हो सकती है जब भारत कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करेगा. माना गया कि आर्मी के दबाव में शहबाज शरीफ के बयान पर सफाई जारी की गई थी.
पाकिस्तान में घटती शहबाज शरीफ की लोकप्रियता
पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की लोकप्रियता भी घटती जा रही है. पाकिस्तान के लोग भारी महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हैं. शहबाज शरीफ की सरकार महंगाई को कम करने में नाकामयाब रही है. विदेशी मुद्रा की कमी के कारण पाकिस्तान डिफॉल्ट होने के कगार पर आ गया है लेकिन बेलआउट पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से किसी तरह की सहमति नहीं बन पा रही है.
शहबाज शरीफ की सरकार लंबे समय से करीब 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए IMF से बात कर रही है लेकिन दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता नहीं हो पा रहा. पाकिस्तान की चौरतरफा बदहाली से वहां के लोग परेशान हैं और इसका जिम्मेदार वो पाकिस्तान की सरकार को मानते हैं.
सेना के लिए शहबाज शरीफ का विकल्प हैं बिलावल
भारत के प्रति नरम रुख रखने और देश को संभाल पाने में नाकाम शहबाज शरीफ को सत्ता से हटाना पाकिस्तान की सेना के लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. नवाज शरीफ को उनकी सुरक्षा नीतियों और भारत के साथ संबंधों को लेकर सेना ने पद से हटा दिया था. पूर्व सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ को कैद करने के नवाज की कोशिशों को भी पाकिस्तान की सेना भूली नहीं है.
इसका मतलब है कि देश का नेतृत्व करने के लिए सेना को एक नए चेहरे की जरूरत होगी. सेना के करीबी बिलावल शहबाज शरीफ का बेहतरीन विकल्प हैं जिन्हें सेना पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री बनाना चाहेगी.
राधा कुमारी