'पाकिस्तान में रखा जाएगा ईरान का एटमी सामान...', तो ये थी ट्रंप की मुनीर को लंच पर बुलाने की वजह?

अब अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) के पूर्व अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ विश्लेषक माइकल रूबिन ने कई बड़े दावे किए हैं. उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन की नजर पाकिस्तान पर सिर्फ इसलिए है क्योंकि ईरान के खिलाफ संभावित सैन्य कार्रवाई के बाद उसके परमाणु कार्यक्रम से जुड़े सामान को पाकिस्तान में शिफ्ट किया जा सकता है.

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व्हाइट हाउस में ट्रंप और आसिम मुनीर ने मुलाकात की (फोटो: एआई) व्हाइट हाउस में ट्रंप और आसिम मुनीर ने मुलाकात की (फोटो: एआई)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2025,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध को लेकर सभी की निगाहें अमेरिका पर टिकी हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सीधे तौर पर ईरान को धमकी दे चुके हैं. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर की हालिया व्हाइट हाउस मीटिंग को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. मुनीर को बाकायदा लंच के लिए आंमत्रित किया गया था.

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इस बीच अब अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) के पूर्व अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ विश्लेषक माइकल रूबिन ने कई बड़े दावे किए हैं. उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन की नजर पाकिस्तान पर सिर्फ इसलिए है क्योंकि ईरान के खिलाफ संभावित सैन्य कार्रवाई के बाद उसके परमाणु कार्यक्रम से जुड़े सामान को पाकिस्तान में शिफ्ट किया जा सकता है.

माइकल रूबिन का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप और अमेरिकी सेनाओं की केंद्रीय कमान (CENTCOM) के अधिकारी पाकिस्तान के साथ मीठी-मीठी बातें सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें ईरान के खिलाफ रणनीतिक सहयोग चाहिए. रूबिन ने साफ कहा, “डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान को अमेरिका का मित्र इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें इस दोस्ती से कुछ हासिल करना है. वे चाहते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए. अगर ऐसा होता है, तो अमेरिका को उन परमाणु सामग्रियों को कहीं न कहीं ले जाना होगा, और हो सकता है कि इसके लिए पाकिस्तान चुना जाए.”

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क्या चीन के लिए संदेश ले जा रहे थे मुनीर?

माइकल रूबिन ने ये भी कहा कि पाकिस्तान अब स्वतंत्र देश नहीं रहा. वह चीन का 'प्रॉक्सी' बन गया है. ऐसे में यह भी संभव है कि जब जनरल मुनीर ट्रंप से मिले, तो उन्होंने चीन की ओर से भी कुछ गुप्त संदेश अमेरिका तक पहुंचाए हों. रूबिन ने कहा, “चीन की सबसे बड़ी चिंता तेल है, जो फारस की खाड़ी और होरमुज की खाड़ी से होकर आता है. अगर ईरान-इजरायल के बीच युद्ध लंबा चला, तो सबसे बड़ा नुकसान चीन को होगा, ना कि अमेरिका को.”

पाकिस्तान को मदद मिलेगी या दबाव डाला जाएगा?

अब यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान से कोई बड़ी भूमिका निभाने को कहे तो क्या पाकिस्तान मना कर पाएगा? ट्रंप ने पाकिस्तान को हाल ही में पसंदीदा मित्र देश कहा था, और यही बयान अब राजनयिक दबाव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

माइकल रूबिन का कहना है, “ट्रंप जनरल्स से प्रभावित रहते हैं. और सच तो यह है कि पाकिस्तान के पीएम से ज्यादा ताकत अब आर्मी चीफ मुनीर के पास है. हो सकता है कि ट्रंप ने उन्हें निजी तौर पर धमकी दी हो और सार्वजनिक रूप से दोस्ती का नाटक किया हो.

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रूबिन के अनुसार, ईरान और पाकिस्तान चाहे कभी-कभार सहयोग करते हों, लेकिन दोनों स्वाभाविक प्रतिस्पर्धी हैं. ईरान का परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक चुनौती है, इसलिए अगर ईरान झुकता है, तो पाकिस्तान को स्वाभाविक रूप से लाभ होगा. ऐसे में हमें पाकिस्तान को एक डॉलर भी नहीं देना चाहिए, क्योंकि वह अपने स्वार्थ में अमेरिका का साथ देगा.

ईरान के खिलाफ सैन्य अड्डों का उपयोग?

बता दें कि पाकिस्तान ईरान के साथ करीब 900 किलोमीटर का बॉर्डर साझा करता है, ऐसे में इस वॉर में पाकिस्तान काफी निर्णायक हो सकता है. सैन्य अड्डों का उपयोग अमेरिका को ईरान की पूर्वी सीमा पर निगरानी और संभावित जमीनी कार्रवाइयों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान कर सकता है. वैसे अफगानिस्तान युद्ध के वक्त भी पाकिस्तान ने अमेरिका को काफी आर्मी सपोर्ट किया था. 

पाकिस्तान का एयरस्पेस ईरान पर हमलों के लिए अहम साबित हो सकता है, ऐसे में अमेरिका की ओर से ईरान पर अटैक के लिए पाकिस्तान के एयर स्पेस की मांग की जा सकती है. पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियानों के लिए भी अपने एयर स्पेस को खोला था और अब एक बार इसका यूज ईरान के लिए किया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो अमेरिका को मिडिल ईस्ट में मजबूती मिल सकती है. 

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