ईरान की बिखरी हुई विपक्षी ताकतें... कौन हैं सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वाले?

देश के भीतर दमन का डर, और बाहर निर्वासन की स्थिति ने विरोधी गुटों को एकजुट होने नहीं दिया है. ईरान में विरोध के स्वर जरूर सुनाई देते हैं, लेकिन ये स्वर बिखरे हुए हैं. कुछ आंदोलन विदेशों से चलाए जा रहे हैं, कुछ क्षेत्रीय असंतोष के रूप में सीमित हैं, और कुछ केवल सोशल मीडिया या जन आंदोलनों के रूप में उभरकर समय के साथ दबा दिए जाते हैं.

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ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई (फाइल फोटो) ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:08 PM IST

इजरायली हमलों और आंतरिक विरोध के बीच ईरान की इस्लामिक शासन व्यवस्था पर दबाव बढ़ता जा रहा है. हाल के वर्षों में ईरान में सरकार के खिलाफ कई बार बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. महिलाओं के अधिकारों से लेकर चुनावी धांधलियों और अल्पसंख्यकों की नाराज़गी तक, इन आंदोलनों ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है. लेकिन इसके बावजूद, देश की सत्ताधारी इस्लामी सरकार के सामने आज भी कोई एकजुट, मज़बूत और संगठित विपक्ष नहीं उभर सका है.

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देश के भीतर दमन का डर, और बाहर निर्वासन की स्थिति ने विरोधी गुटों को एकजुट होने नहीं दिया है. ईरान में विरोध के स्वर जरूर सुनाई देते हैं, लेकिन ये स्वर बिखरे हुए हैं. कुछ आंदोलन विदेशों से चलाए जा रहे हैं, कुछ क्षेत्रीय असंतोष के रूप में सीमित हैं, और कुछ केवल सोशल मीडिया या जन आंदोलनों के रूप में उभरकर समय के साथ दबा दिए जाते हैं.

हाल ही में ईरान पर इजरायली हमलों और सुरक्षा ढांचे पर दबाव ने एक बार फिर इस सवाल को सामने लाकर खड़ा कर दिया है. अगर मौजूदा सत्ता कमजोर होती है तो क्या कोई संगठित विपक्ष है जो उसकी जगह ले सकता है? क्या ईरान की जनता के पास कोई ऐसा विकल्प मौजूद है जिस पर वे भरोसा कर सकें? ऐसे में जानें कौन-कौन से गुट सत्ता के खिलाफ खड़े हैं-

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1. राजशाही समर्थक (Monarchists)

ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी 1979 की इस्लामी क्रांति के दौरान देश छोड़कर चले गए थे. उनका निधन 1980 में मिस्र में हुआ. उनके बेटे रेज़ा पहलवी, जो वर्तमान में अमेरिका में रहते हैं, ईरान में शासन परिवर्तन की वकालत करते हैं और गैर-हिंसक नागरिक अवज्ञा और जनमत संग्रह के ज़रिए नई सरकार के गठन की मांग करते हैं.

रेज़ा पहलवी के समर्थक मुख्यतः ईरानी प्रवासी समुदाय में हैं, जो राजशाही की वापसी का समर्थन करते हैं. हालांकि, यह कहना कठिन है कि देश के भीतर राजशाही का विचार कितना लोकप्रिय है क्योंकि अधिकांश ईरानी क्रांति के पहले के शासनकाल को नहीं जानते और बहुत कुछ बदल चुका है. एक तरफ कुछ लोग उस दौर को याद करते हैं तो वहीं कई लोग उस समय की विषमता और दमन को भी नहीं भूले हैं. खुद राजशाही समर्थक समूहों में भी मतभेद हैं.

2. मुजाहिदीन-ए-खल्क (People's Mujahideen Organisation)

यह एक ताकतवर वामपंथी संगठन है, जिसने 1970 के दशक में शाह सरकार और अमेरिकी ठिकानों के खिलाफ बम धमाके किए थे. इन्हें फारसी में मोजाहिदीन-ए-खल्क ऑर्गनाइजेशन (MEK या MKO) कहा जाता है.

इस संगठन ने 2002 में सबसे पहले ईरान के गुप्त यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया था, लेकिन अब इसकी देश के भीतर सक्रियता नगण्य है. MEK पर आरोप है कि इसने ईरान-इराक युद्ध (1980-88) के दौरान इराक का साथ दिया था, जिसके चलते आज भी ईरान में इसे विश्वासघाती माना जाता है.

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इसका नेतृत्व पहले मसूद रजवी करते थे, जिनका पिछले 20 वर्षों से कोई अता-पता नहीं है. अब इसकी कमान उनकी पत्नी मरियम रजवी के हाथ में है, जो नेशनल काउंसिल ऑफ रेजिस्टेंस ऑफ ईरान का नेतृत्व कर रही हैं. यह संगठन पश्चिमी देशों में खासा सक्रिय है, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इसे एक ‘पंथ’ कहकर आलोचना की है, जिसके अनुयायियों पर आंतरिक शोषण के आरोप भी लगे हैं (हालांकि संगठन इन आरोपों को नकारता है).

3. जातीय अल्पसंख्यक समूह (Ethnic Minority Groups)

ईरान की कुर्द और बलूच अल्पसंख्यक आबादी, जो अधिकांशतः सुन्नी मुसलमान हैं, लंबे समय से तेहरान स्थित शिया सरकार से असंतुष्ट रही है.

पश्चिमी ईरान में कुर्दिश समूहों ने इस्लामी गणराज्य के खिलाफ विरोध और सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया है, जबकि बलूचिस्तान (पाकिस्तान सीमा से सटा इलाका) में ईरान विरोध कई स्तरों पर है, कुछ गुट केवल धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार मांगते हैं, जबकि कुछ जिहादी गुट अल कायदा से जुड़े हुए बताए जाते हैं.

जब भी ईरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होते हैं, कुर्द और बलूच क्षेत्रों में ये सबसे उग्र रूप में सामने आते हैं. हालांकि, इन दोनों क्षेत्रों में भी कोई एकीकृत और संगठित नेतृत्व नहीं है, जो सत्ता के खिलाफ एकजुट चुनौती पेश कर सके.

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4. जन आंदोलन और विरोध प्रदर्शन (Protest Movements)

ईरान में समय-समय पर लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरकर विरोध जताते रहे हैं.

2009 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद मीर हुसैन मुसावी और मेहदी कर्रूबी के समर्थकों ने व्यापक प्रदर्शन किए, जिसमें चुनाव में धांधली के आरोप लगाए गए. यह आंदोलन 'ग्रीन मूवमेंट' के नाम से जाना गया. हालांकि सरकार ने इसे कुचल दिया और दोनों नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया. यह आंदोलन अब विलुप्त माना जाता है.

2022 में महिलाओं के अधिकारों को लेकर शुरू हुआ 'महिला, जीवन, स्वतंत्रता' आंदोलन महीनों तक चला, लेकिन इसका कोई संगठनात्मक ढांचा या नेतृत्व विकसित नहीं हो सका. अंततः कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार और जेल भेज दिया गया.

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