डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क की बागडोर संभालने की तैयारी शुरू कर दी है. वह एक के बाद एक अपनी टीम को चुनने में जुटे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए), विदेश मंत्री और वित्त मंत्री इन तीन अहम पदों के लिए अपनी पसंद पर मुहर लगा दी है. लेकिन ट्रंप के ये फैसले दुनिया में जल्द बदलने जा रही जियोपॉलिटिक्स की ओर इशारा करते हैं क्योंकि एक ओर इससे चीन के लिए मुसीबत खड़ी होगी लेकिन भारत के लिए नई संभावनाओं के रास्ते खुल सकते हैं.
सबसे पहले बात वॉर वेटेरन माइक वॉल्ट्ज की. अफगानिस्तान, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका में युद्ध के मोर्चों में शामिल हो चुके वॉल्ट्ज अमेरिका के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) होंगे. वह लंबे समय से अमेरिका की मजबूत डिफेंस स्ट्रैटेजी की वकालत करते रहे हैं. देश की सुरक्षा को और मजबूत करने के हिमायती हैं.
वॉल्ट्ज का चुनना भारत के लिए खुशी तो चीन के लिए गम कैसे?
माइक वॉल्ट्ज अमेरिकी सीनेट में इंडिया कॉकस (India Caucus) के प्रमुख हैं. भारत को लेकर वह अपने नरम रुख के लिए जाने जाते हैं. पिछले साल जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के दौरे पर गए थे तो कैपिटल हिल में पीएम मोदी के भाषण की व्यवस्था कराने की जिम्मेदारी वॉल्ट्ज के पास ही थी.
वह कई मौकों पर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को बढ़ाने की बात कर चुके हैं. पीएम मोदी ने 2023 अमेरिकी दौरे के दौरान वॉल्ट्ज से गर्मजोशी के साथ मुलाकात की थी. ऐसे में माना जा रहा है कि उनके एनएसए पद संभालने के बाद भारत और अमेरिका के संबंधों को और मजबूती मिलेगी.
लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता. क्योंकि माइक वॉल्ट्ज जितनी आलोचना जो बाइडेन की करते हैं. वह उससे ज्यादा चीन के आलोचक हैं. 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने जब पहली बार सत्ता संभाली थी. उस समय सीनेटर के तौर पर वॉल्ट्ज ने चीन पर भारी टैरिफ लगाने के ट्रंप की बयानबाजियों का समर्थन किया था.
वह चीन के कट्टर आलोचक हैं. वह ताइवान को लेकर चीन के रुख पर भी विरोध जता चुके हैं. माना जा रहा है कि उनके एनएसए बनने से चीन की कारोबार से लेकर डिफेंस तक हर मोर्चे पर टेंशन बढ़ने वाली है.
मार्को रुबियो भी बन सकते हैं चीन के लिए सिरदर्द
ट्रंप ने लैटिन अमेरिकन मार्को रुबियो को देश के अगले विदेश मंत्री के तौर पर चुना है. वह पहले रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में भी थे लेकिन बाद में ट्रंप ने इस पद के लिए जेडी वेंस का चुनाव किया. लेकिन विदेश मंत्रालय जैसा पद देकर ट्रंप ने रुबियो पर भरोसा जताया है.
रुबियो को भी अपने Anti-China रुख के लिए जाना जाता है. एक समय पर रुबियो ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि इंडिया पैसिफिक में अशांति फैलाने में चीन की बड़ी भूमिका है. इससे चीन को लेकर उनके कड़ा रुख समझा जा सकता है.
वह सीनेट में कई बार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर मानवाधिकारों के हनन और दक्षिण चीन सागर में उनके आक्रामक रुख की आलोचना कर चुके हैं. साथ ही उन्होंने उन नीतियों का समर्थन किया है, जो चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ाती हैं. वह चाहते हैं कि चीन को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी गतिविधियों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके.
भारत के साथ रिश्तों को और गहरा करेंगे रुबियो!
अमेरिका के नए विदेश मंत्री के तौर पर मार्को रुबियो भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के मुखर समर्थक रहे हैं. उन्होंने भारत को हिंद-प्रशांत इलाके में एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में माना है. पिछले कुछ सालों में उन्होंने अमेरिका-भारत सहयोग को और गहरा करने की कोशिशों की वकालत की है, विशेष रूप से रक्षा और व्यापार के क्षेत्रों में.
उनका मानना है कि एशिया में चीन के प्रभाव को संतुलित करने में भारत बड़ी भूमिका निभा सकता है. उन्होंने अक्सर मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों की रणनीतिक अहमियत पर बात की है और ऐसी नीतियों की वकालत की है, जो न केवल साझा आर्थिक हितों को बढ़ावा देती हैं बल्कि दोनों देशों के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को भी मजबूत करती हैं.
क्या वित्त मंत्री बनकर चीन पर चलाएंगे चाबुक ट्रंप के करीबी?
बिजनेसमैन और निवेशक स्कॉट बेसेंट को ट्रंप अमेरिका के वित्त मंत्री के तौर पर चुनने जा रहे हैं. उन्हें ट्रंप का बेहद करीबी माना जाता है. ट्रंप के इन फैसलों से पहले उन्होंने बेसेंट ने फ्लोरिडा में मार-ए-लागो में उनसे मुलाकात की थी.
निवेशक और ट्रंप का करीबी होने के नाते यह माना जा रहा है कि वह भी चीन की नीतियों से विशेष खुश नहीं हैं और वह चीन के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं.
ट्रंप प्रचार अभियान के दौरान कह चुके हैं कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के हितों को सबसे पहले रखेंगे और घरेलू प्रोडक्शन पर जोर देंगे. ऐसे में अमेरिका में चीन के व्यापार पर इसका सीधा असर पड़ सकता है और इसमें बेसेंट कि अहम भूमिका होगी.
वहीं, भारत को लेकर बेसेंट का रुख अभी तक तुलनात्मक रूप से सामान्य ही नजर आया है. वह भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर देखते हैं और भारत-अमेरिका के बीच व्यापार बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं.
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