भारत, अमेरिका समेत 13 देशों की इस डील से क्यों डरा चीन?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्वाड समिट से पहले इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) को लॉन्च किया था. इसमें फिलहाल 13 देश शामिल हैं. चीन ने आईपीईएफ को लेकर चिंता जताई है कि इससे कई देश चीन से दूर हो सकते हैं.

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 मई 2022,
  • अपडेटेड 4:08 PM IST
  • भारत, प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ के जरिये दबदबा बढ़ाएगा अमेरिका
  • चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने का कदम

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टोक्यो में क्वाड सम्मेलन से पहले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) लॉन्च किया था. अब इसे लेकर चीन ने चिंता जाहिर की है. 

चीन का कहना है कि आईपीईएफ के गठन से इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के कई देश चिंतित हैं. उनका मानना है कि आईपीईएफ के आने से वे चीन से दूर हो सकते हैं.

बाइडेन ने क्वाड समिट से पहले 23 मई को आईपीईएफ को लॉन्च किया था. 

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बाइडेन ने बताया कि भारत सहित 13 देश इसमें शामिल हो गए हैं. आईपीईएफ को इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ रहे प्रभाव को कम करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. इसके जरिये अमेरिका क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है.

बाइडेन ने आईपीईएफ के 13 क्षेत्रीय साझेदार देशों के नाम का ऐलान किया था जो स्वच्छ ऊर्जा, 5जी नेटवर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग करेंगे. 

आईपीईएफ का जोर व्यापार, सप्लाई चेन, स्वच्छ ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और टैक्स पर रहेगा.

चीन की इस चिंता पर अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, आईपीईएफ महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक साझेदारी है. अब तक इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में ऐसी साझेदारी नहीं थी.

उन्होंने कहा कि आईपीईएफ इंडो पैसिफिक क्षेत्र के देशों के लिए चीन का विकल्प है. 

वहीं, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने बताया कि आईपीईएफ सहयोग के नाम पर कुछ देशों को अलग-थलग करने की कोशिश है.

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आईपीईएफ के शुरुआती सदस्यों में अमेरिका, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, न्यूजीलैंड और ब्रुनेई हैं. 

कई एशियाई सरकारों ने आईपीईएफ को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है और इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है. 

अमेरिका को आईपीईएफ की जरूरत क्यों पड़ी?

राष्ट्रपति बाइडेन ने पिछले साल अक्टूबर में वर्चुअल ईस्ट एशिया समिट के दौरान इस योजना को खाका सबके सामने रखा था.

उन्होंने उस समय कहा था कि आईपीईएफ का पूरा फोकस डिजिटल अर्थव्यवस्था, लचीली सप्लाई चेन, डीकार्बोनाइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और वर्कर स्टैंडर्ड्स पर होगा. 

एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूड की वाइस प्रेंजिडेंट और ओबामा प्रशासन में कार्यवाहक उप अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रहीं वेंडी कटलर ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि आईपीईएफ इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अमेरिका के लिए रास्ते खोलेगा.

उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि इससे उस खाली जगह को भरने में मदद मिलेगी, जो ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से अमेरिका के निकलने पर खाली हो गई थी.

दरअसल अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टीपीपी से बाहर हो गए थे.

अमेरिका की गैर मौजूदगी में चीन ने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में गहरी पैठ बना ली थी. चीन ने पिछले साल कॉम्प्रेहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) में शामिल होने के लिए आवेदन दिया था. 

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चीन दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड ब्लॉक रीजनल कॉम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) का भी सदस्य है. इसमें 15 सदस्य हैं. हालांकि, भारत और अमेरिका दोनों इसका हिस्सा नहीं हैं.

आईपीईएफ किस तरह सीपीटीपीपी और आरसीईपी से अलग है?

एशिया के दो सबसे बड़े ट्रेड ब्लॉक CPTPP और RCEP के विपरीत आईपीईएफ से टैरिफ कम नहीं होंगे. इसके बजाय अमेरिका लचीली सप्लाई चेन और डिजिटल इकोनॉमी जैसे स्ट्रैटेजिक पिलर्स के दम पर सहयोग कर रहा है. 

आईपीईएफ का गठन पारंपरिक मुक्त व्यापार समझौतों से अलग है क्योंकि मुक्त समझौतों में बातचीत में सालों लग जाते हैं और इसके लिए इससे जुड़े देशों की मंजूरी जरूरी होती है. 

कटलर ने बताया कि आईपीईएफ की प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ेगी. 

उन्होंने कहा, मुझे उम्मीद है कि टीपीपी से हमारे बाहर निकलने के बाद खाली हुई जगह को भरने के लिए यह लंबा रास्ता तय करेगा. शायद, समय के साथ अमेरिका को अहसास होगा कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है और हम टीपीपी जैसे मॉडल के करीब पहुंचेंगे. 

आईपीईएफ का एशियाई अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हो सकता है?

आईएसईएएस-यूसुफ इशाक इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो जंयत मेनन आईपीईएफ को लेकर चिंता में हैं.

उनका कहना है कि एक प्रमुख चिंता यह है कि क्या आईपीईएफ बाइडेन प्रशासन के बाद भी कायम रह सकेगा. इससे जुड़ी अनिश्चितताएं बताती हैं कि आईपीईएफ का इस क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है.

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चीन ने आईपीईएफ की आलोचना की है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र किसी भूराजनीतिक प्रतियोगिता का चेसबोर्ड नहीं है जिस पर हर कोई दांव लगा रहा है.

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