पाकिस्तान की सरकार को इस वक्त भारी फजीहत का सामना करना पड़ रहा है. शुक्रवार को पाकिस्तान ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान शांति स्थापना के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कोशिशों के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करेगा. लेकिन इसके अगले ही दिन अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया. इस हमले के बाद पाकिस्तान के ही कई नेताओं और नामी-गिरामी लोगों ने पाकिस्तान की सरकार से नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रंप के नाम की सिफारिश करने के फैसले पर नाराजगी जताई.
इस बीच, आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में डीलक्स थाली परोसे जाने पर सियासी माहौल गरमा गया है. मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डिनर पर न्योता दिया था. पाकिस्तान में विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और यहां तक कह डाला कि मुनीर का नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन तुरंत वापस लिया जाए.
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री इशाक डार की तरफ से हस्ताक्षर किया हुआ अनुशंसा पत्र पहले ही नॉर्वे में नोबेल शांति पुरस्कार समिति को भेजा जा चुका है.
लेकिन पाकिस्तान के इस फैसले पर तब सवाल उठे जब अमेरिका ने ईरान के फोर्डो, इस्फहान और नतांज परमाणु संयंत्रों पर बमबारी कर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बर्बाद करने के इजरायल की कोशिश में शामिल हो गया.
'युद्ध खत्म करने का ट्रंप का दावा झूठा साबित हुआ'
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने बताया है कि देश के कई बड़े नेताओं ने हालिया हमलों को देखते हुए सरकार से अपने फैसले की समीक्षा की मांग की है. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मौलाना फजलुर रहमान ने मांग की है कि सरकार अपना फैसला वापस ले.
फजल ने रविवार को मुर्री में पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है. नोबेल पुरस्कार का प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए.'
उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल असीम मुनीर पर निशाना साधते हुए कहा कि 'पाकिस्तानी शासक ट्रंप के साथ मुलाकात और लंच से इतने खुश हुए' कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश की.
फजल ने सवाल किया, 'ट्रंप ने फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजरायली हमलों का समर्थन किया है. यह शांति का संकेत कैसे हो सकता है? जब अमेरिका के हाथों पर अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा हो, तो वह शांति का समर्थक होने का दावा कैसे कर सकता है?'
ट्रंप ने खुद को एक ऐसे 'शांति कायम करने वाले' के रूप में प्रचारित किया था, जो यूक्रेन और गाजा में युद्धों को जल्द समाप्त करने के लिए अपने वार्ता कौशल का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन उनके राष्ट्रपति पद के पांच महीने बाद भी दोनों संघर्ष अभी भी जारी हैं.
'ट्रंप ने जानबूझकर एक अवैध युद्ध छेड़ा'
पाकिस्तान के पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने एक्स पर लिखा, 'चूंकि ट्रंप अब संभावित शांति कायम करने वाले नहीं कर रह गए हैं बल्कि एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने जानबूझकर एक अवैध युद्ध छेड़ दिया है, इसलिए पाकिस्तान सरकार को अब उनके नोबेल नॉमिनेशन की समीक्षा करनी चाहिए, उसे रद्द करना चाहिए!'
उन्होंने कहा कि ट्रंप इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और इजरायली युद्ध लॉबी के जाल में फंस गए हैं, और अपने राष्ट्रपति काल की सबसे बड़ी भूल कर बैठे हैं. उन्होंने कहा, 'ट्रंप अब अमेरिका के पतन की अध्यक्षता करेंगे!'
मुशाहिद ने एक अन्य पोस्ट में ईरान पर अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि ट्रंप ने 'धोखेबाजी की और नए युद्ध शुरू न करने के अपने वादे को तोड़ दिया.'
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सांसद अली मुहम्मद खान ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा पाकिस्तान सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
पीटीआई के राजनीतिक थिंक टैंक के प्रमुख रऊफ हसन ने कहा कि सरकार का यह निर्णय अब 'उन लोगों के लिए शर्मिंदगी का कारण है, जिन्होंने यह फैसला लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.'
हसन ने सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा, 'इसलिए कहा जाता है कि वैधता न तो खरीदी जा सकती है और न ही उपहार में दी जा सकती है.'
पूर्व सीनेटर अफरासियाब खट्टक ने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने में पाकिस्तानी सत्तारूढ़ एलिट क्लास की अपनाई गई चाटुकारिता अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आदर्श आचरण नहीं है. ट्रंप के ईरानी परमाणु संयंत्रों पर बमबारी करने के आदेश से कुछ घंटे पहले नामांकन की घोषणा करना सबसे शर्मनाक था.'
जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख नईमुर रहमान ने कहा है कि यह फैसला 'हमारी राष्ट्रीय गरिमा और सम्मान को कम करता है.'
अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने इस कदम को "दुर्भाग्यपूर्ण" करार दिया और कहा कि यह फैसला जनता का फैसला नहीं है.
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