सावन का पवित्र महीना शिवभक्तों के लिए उत्सव से कम नहीं होता. हर साल लाखों की संख्या में कांवड़िए गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचते हैं और पैदल यात्रा कर अपने क्षेत्र के शिवालयों में जल चढ़ाते हैं. बागपत में ऐसी कांवड़ यात्रा नजर आई, जिसने हर किसी को भावुक कर दिया.
हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले दो सगे भाई विशाल और जतिन अपनी बुज़ुर्ग दादी राजबाला को कांवड़ में बैठाकर निकले हैं. ये दोनों हरिद्वार से बहादुरगढ़ तक की 230 किलोमीटर लंबी यात्रा कर रहे हैं. दोनों भाइयों ने एक तरफ दादी को और दूसरी तरफ उनके वजन के बराबर गंगाजल रखकर पूरी संतुलित कांवड़ बनाई है और उसे अपने कंधों पर उठाया है.
विशाल और जतिन ने कहा कि उनकी इच्छा थी कि दादी को तीर्थ कराएं. इसलिए वे हरिद्वार से कांवड़ लेकर बहादुरगढ़ तक की यह यात्रा कर रहे हैं. साल 2024 में भी दोनों भाई अपनी दादी को इसी तरह कांवड़ में बैठाकर यात्रा कर चुके हैं.
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दादी राजबाला इस यात्रा से बेहद खुश हैं. उनका कहना है कि बहुत अच्छा लग रहा है कि मेरे पोते मुझे तीर्थ करा रहे हैं. मैंने भोले बाबा से उनके लिए लंबी उम्र, अच्छी नौकरी और जल्द शादी की कामना की है.
इस दृश्य को जिसने भी देखा, वो भावुक हो गया. रास्ते भर 'बम-बम भोले' के जयकारों के बीच ये दो पोते श्रद्धा, सेवा और निष्ठा की ऐसी तस्वीर बन गए हैं, जो आज के समाज में कम ही देखने को मिलती है.
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विशाल ने बताया कि यह मन्नत नहीं, बल्कि सेवा और प्रेम का भाव है. दादी की इच्छा थी कि उन्हें गंगाजल लाकर भोलेनाथ को जल अर्पित करते हुए यात्रा कराई जाए. पिछले साल भी उन्होंने यही सेवा की थी और परंपरा के अनुसार अब दूसरी बार इस यात्रा को पूर्ण करने निकले हैं.
दादी राजबाला खुद भी भावुक हैं. उनका कहना है कि जो काम उनके बेटे नहीं कर सके, वो उनके पोतों ने कर दिखाया. उन्होंने भोलेनाथ से अपने पोतों के लिए लंबी उम्र, नौकरी और अच्छे जीवन की प्रार्थना की है. इस यात्रा के दौरान दादी श्रद्धा भाव में डूबी दिखीं, पोते भी पूरी आस्था और समर्पण के साथ इस सेवा को निभा रहे हैं.
बागपत से गुजरती इस विशेष कांवड़ को देखकर लोग न सिर्फ आशीर्वाद दे रहे हैं. लोगों का कहना है कि विशाल और जतिन की यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश भी है कि बुज़ुर्गों का सम्मान और सेवा ही सच्चा धर्म है.
मनुदेव उपाध्याय