उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में हों, लेकिन अभी से ही सपा और बीजेपी के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है. विधायक पूजा पाल को सपा से निष्कासित करने से प्रदेश की सियासत गर्मा गई है. बीजेपी ने पूजा पाल के सहारे समाजवादी पार्टी के विनिंग फॉर्मूले पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की सियासी हवा निकालने की रणनीति बनाई, तो जवाब में अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को फ्रंटफुट पर उतार दिया.
कौशांबी के चायल से विधायक पूजा पाल के साथ खड़े होकर बीजेपी ओबीसी के तहत पाल-गड़रिया और बघेल समुदाय को साधने के साथ-साथ अखिलेश के पीडीए फॉर्मूले को कठघरे में खड़े करने की कवायद शुरू कर दी है. पूजा पाल ने सपा के पीडीए को परिवारवाी, दागी और अपराधी बताते हुए अपनी जान का खतरा बताया.
वहीं, पूजा पाल का नाम लिए बगैर अखिलेश यादव ने कहा कि यह बेहद गंभीर सवाल है. कोई मुख्यमंत्री से मिले और उसे जान का खतरा दूसरे दल के नेता से हो, यह कैसे संभव है. अखिलेश ने कहा कि अब अगर बीजेपी वाले उन्हें मार देंगे तो जेल हम चले जाएंगे. इस तरह सपा और बीजेपी दोनों ही सियासी नैरेटिव सेट करने के साथ-साथ संदेश देने का दांव चल रहे हैं.
सपा के पीडीए पर पूजा पाल ने उठाए सवाल
पूजा पाल ने सपा के पीडीए पर सवाल उठाते हुए अखिलेश पर करारा हमला बोला. पूजा पाल ने शुक्रवार को अखिलेश यादव को एक पत्र लिखा है, जिसमें सपा के पीडीए को लेकर कहा कि 'पी' का मतलब परिवार, 'डी' का मतलब दागी और 'ए' का मतलब अपराधी है. पूजा पाल ने कहा कि उन्हें यह सूचना भी मिली है कि उन्हें (अतीक अहमद गैंग) बहुत बड़ी ताकत मिल गई है कि पूजा पाल को सपा से हटा दिया गया है, वे जिस तरह से चाहें उस तरह से रहेंगे. साथ ही कहा कि जब मेरे पति की हत्या हुई, उस समय राज्य में सपा की ही सरकार थी, ऐसे में मुझे भय है कि सपा के पोषित माफिया गुंडे मेरी हत्या करा सकते हैं.
सपा के इस फैसले ने बीजेपी को अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले के खिलाफ अपनी मुहिम को तेज करने का मौका दे दिया है. पाल और बघेल समाज के प्रभावशाली वोट बैंक को अपने पाले में करने की बीजेपी की रणनीति अब और मुखर हो गई है.
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने कहा कि विधायक पूजा पाल के साथ सपा ने जो किया है, उन्हें उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. समाजवादी पार्टी ने अपने इस आचरण से सिद्ध कर दिया है कि वे बदले नहीं हैं. उनकी नजर में बहू-बेटियों और अति पिछड़ों के लिए कोई सम्मान नहीं है. बीजेपी के दूसरे नेता भी सपा को निशाने पर लेकर सियासी संदेश देने में जुटे हैं.
सपा ने फ्रंटफुट पर श्यामलाल पाल को उतारा
पूजा पाल के आक्रामक रुख अपनाने के बाद अखिलेश यादव ने खुद मोर्चा संभालने के साथ-साथ फ्रंटफुट पर अपने प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को उतार दिया है. अखिलेश यादव ने कहा कि यह बेहद गंभीर सवाल है. कोई मुख्यमंत्री से मिले और उसे जान का खतरा दूसरे दल के नेता से हो, यह कैसे संभव है. अखिलेश ने कहा कि अब अगर बीजेपी वाले उनको मार देंगे तो जेल हम चले जाएंगे.
अखिलेश ने कहा कि बीजेपी पूजा पाल को मोहरा बनाकर सपा के खिलाफ दुष्प्रचार करवा रही है. वे जब तक सपा में रहीं तब तक उन्हें जान का खतरा नहीं था. सपा प्रमुख ने कहा कि अब इस मामले में केंद्रीय गृहमंत्री को जांच करानी चाहिए. सपा प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल ने इस संबंध में भारत सरकार को पत्र भी भेजा है. उसमें उन्होंने कहा कि पता चले कि कौन से संगठन किसी की जान लेना चाहते हैं. जान के खतरे की सरकार जांच कराए.
पूजा पाल की चिट्ठी पर अखिलेश ने कहा कि आखिर ये चिट्ठी कौन लिखवा रहा है कोई डिप्टी सीएम या कोई बंसल जी? अखिलेश ने पूजा पाल से कहा वो कौशाम्बी में जो पाल समाज की पीडित है कम से वहां जाकर न्याय दिलाएं. श्यामलाल पाल सियासी रण में उतरकर पूजा पाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिए हैं. हमें केंद्रीय गृह मंत्रालय से इंसाफ की उम्मीद है.
बीजेपी के लिए पूजा पाल बनी 'मास्टर स्ट्रोक'
पूजा पाल के पति राजू पाल की 2005 में हत्या हो गई थी, जिसका इल्जाम अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद पर लगा था. बसपा से पूजा पाल विधायक बनी थीं, उसके बाद उन्होंने सपा का दामन थाम लिया और 2022 में सपा विधायक बनीं. 2024 के राज्यसभा चुनाव में उन्होंने सपा से बगावत कर बीजेपी को वोट दे दिया. सपा ने पूजा पाल को 14 अगस्त 2025 को पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए निष्कासित कर दिया था.
अखिलेश ने यह कार्रवाई तब की, जब पूजा पाल ने विधानसभा के मानसून सत्र में सीएम योगी आदित्यनाथ की 'जीरो टॉलरेंस' नीति और अतीक अहमद के खिलाफ एक्शन की खुलकर तारीफ की. इसके बाद ही सपा ने उन्हें बाहर किया तो बीजेपी इस प्रकरण को महिला-सुरक्षा और 'न्याय हुआ' के रूप में पेश कर रही है. पूजा पाल के रूप में बीजेपी को ब्रांड एंबेसडर और सपा के पीडीए (PDA) का काउंटर प्लान मिल गया है. बीजेपी के मन मुताबिक ही पूजा पाल के सियासी तेवर नजर आ रहे हैं.
राजू पाल की हत्या के बाद सहानुभूति की जो लहर पूजा पाल के साथ बसपा से सपा की ओर शिफ्ट हुई थी, अब उसका सियासी लाभ बीजेपी भी उठाने की तैयारी में है. बीजेपी अब सपा को ओबीसी विरोधी बताने में जुटी है. बीजेपी की रणनीति पूजा पाल के बहाने अखिलेश के सबसे बड़े विनिंग फॉर्मूले पीडीए की हवा निकालने की है. यूपी में पाल-बघेल जाति की पिछड़ों में अच्छी-खासी संख्या है, जो सपा के पीडीए की सियासी रीढ़ मानी जाती है. इस तरह बीजेपी अखिलेश यादव को पाल समाज का विरोधी बताने की कवायद करने में जुटी है.
अखिलेश यादव ने खेला ओबीसी पर दांव
सपा से निष्कासन के बाद पूजा पाल की बीजेपी के प्रति बढ़ती नजदीकी के बाद अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को फ्रंटफुट पर उतारने के साथ-साथ ओबीसी नेताओं की पूरी फौज उतार दी है. अखिलेश यादव ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि कैसे बीजेपी सरकार में पाल समाज ही नहीं बल्कि ओबीसी समाज की दूसरी जातियों के साथ नाइंसाफी हो रही है. उन्होंने गायत्री प्रजापति का मुद्दा उठाकर बताया कि कैसे बीजेपी उनके खिलाफ साजिश कर रही है. सपा ने पूजा पाल को लेकर भी साफ कर दिया है कि वह बीजेपी की मोहरा है और उनके ही इशारे पर काम कर रही है.
यूपी की सियासत में ओबीसी वोट बैंक
उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो 54 फीसदी से ज्यादा है, जिसमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी-कुशवाहा, सैंथवार 12 फीसदी, जाट 3 फीसदी, लोध 3 फीसदी, मल्लाह 5 फीसदी, पाल-गड़रिया 3 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 4 फीसदी है. यूपी के पिछड़े वोट बैंक में सबसे बड़ा हिस्सा गैर-यादव ओबीसी जातियों का है, जो फिलहाल सबसे अहम माने जा रहे हैं. यह वोट बैंक कभी किसी पार्टी के साथ स्थायी रूप से खड़ा नजर नहीं आया.
बीजेपी इस वोट बैंक के सहारे सपा को सत्ता से बाहर कर अपना सियासी वनवास यूपी में खत्म कर चुकी है, लेकिन 2024 में सपा दोबारा ओबीसी जातियों को अपने साथ लाने में कामयाब रही है. इसीलिए सपा और बीजेपी के बीच शह-मात का खेल जारी है. पूजा पाल के बहाने सपा और बीजेपी दोनों आमने-सामने हैं, क्योंकि उनकी नजर पाल समाज के वोटों पर है.
पाल वोटों की फाइट में बदली जंग
ओबीसी समुदाय में पाल समाज अतिपिछड़ी जातियों में आता है, जिसे गड़रिया और बघेल जातियों के नाम से जाना जाता है. बृज और रुहेलखंड के जिलों में पाल समुदाय काफी अहम माने जाते हैं. यह वोट बैंक बदायूं से लेकर बरेली, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, हाथरस जैसे जिलों में काफी महत्व रखते हैं. इसके अलावा अवध के फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ और बुंदेलखंड के तमाम जिलों में 5 से 10 हजार की संख्या में रहते हैं.
ओबीसी वोट बैंक में करीब दर्जनों और जातियां हैं, जिन्हें अति पिछड़ों की श्रेणी में शामिल किया गया है. पाल समाज एक लंबे समय तक यूपी में बसपा के कोर वोट बैंक माने जाते थे, लेकिन वो बीजेपी से जुड़ गया, 2024 में सपा को भी पाल समाज ने वोट दिया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने पूजा पाल को अपने पाले में लाकर पाल और बघेल समाज को साधने की कवायद की है, तो सपा भी फ्रंटफुट पर उतरकर डैमेज कंट्रोल के साथ-साथ बीजेपी को ओबीसी विरोधी के कठघरे में खड़ी करने की कोशिश में जुट गई है.
कुबूल अहमद