बृजभूषण-CM योगी की सियासी केमिस्ट्री से 'ठाकुर पॉलिटिक्स' को मिलेगी धार, यूपी में कितना बदलेगा समीकरण?

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई है. बृजभूषण शरण सिंह और सीएम योगी आदित्यनाथ की मुलाकात को 2027 के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. दोनों ही नेताओं के रिश्ते सियासी पटरी पर आते हैं तो ठाकुर राजनीति को नई धार मिलेगी?

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(बृजभूषण शरण सिंह और सीएम योगी आदित्यनाथ की केमिस्ट्री (Photo-ITG) (बृजभूषण शरण सिंह और सीएम योगी आदित्यनाथ की केमिस्ट्री (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST

उत्तर प्रदेश में होने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी एक्सरसाइज शुरू हो गई है. सीएम योगी आदित्यनाथ के दिल्ली से लौटने के बाद सोमवार को बीजेपी के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने मुख्यमंत्री आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की. 31 महीने के बाद बृजभूषण और सीएम योगी के बीच सियासी केमिस्ट्री एक बार फिर से बनती नजर आ रही है, जिसके राजनीतिक मायने भी तलाशे जाने लगे हैं.

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बृजभूषण शरण सिंह और सीएम योगी आदित्यनाथ दोनों ही पूर्वांचल से आते हैं और ठाकुर समुदाय से हैं. इतना ही नहीं सीएम योगी जिस गोरख पीठ के महंत है, बृजभूषण सिंह कभी उसी मठ के महंत रहे अवैद्यनाथ के करीबी रहे हैं. इस तरह महंत अवैद्यनाथ को योगी और बृजभूषण दोनों के सियासी गुरु माने जाते हैं.

पूर्वांचल की सियासत में सीएम योगी और बृजभूषण सिंह दोनों नेताओं की अपनी-अपनी सियासी हनक हैं, लेकिन पिछले तीन साल से उनके रिश्ते में सियासी दूरियां आ गई थी. लोकसभा चुनाव में बृजभूषण सिंह सिर्फ अपने बेटे की कैसरगंज सीट तक ही सीमित रहे. 2024 में राजपूत वोटों की नारजगी का बीजेपी को यूपी में खामियाजा उठाना पड़ा था. बृजभूषण सिंह अब सीएम योगी के साथ अपने रिश्ते सुधारने में जुट गए हैं, जिसके लिए ही 31 महीने बाद दोनों नेताओं की मुलाकात हुई है. बृजभूषण और सीएम योगी की सियासी तालमेल बनता है 'ठाकुर पॉलिटिक्स' को मिलेगी नई धार?

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सीएम योगी से बृजभूषण सिंह के रिश्ते

बीजेपी के सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह और योगी आदित्यनाथ के बीच करीब तीन वर्षों से सियासी रिश्ते सही नहीं चल रहे थे. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से दोनों नेताओं को एक साथ किसी सार्वजनिक मंच पर नहीं देखा गया था. 2022 में सीएम योगी के एक कार्यक्रम में न बुलाए जाने से बृजभूषण खासे नाराज नजर आए थे और उनके बीच बातचीत बंद हो गया था. बृजभूषण खुलकर सीएम योगी की बुलडोजर नीति की अलोचना और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तारीफ करते नजर आते थे.

2027 के विधानसभा चुनाव की सियासी बढ़ती सियासी तपिश के बीच बृजभूषण और योगी की तनातनी को बीजेपी बेहतर नहीं मान रही थी. ऐसे में दिल्ली से बीजेपी हाईकमान और बृजभूषण का परिवार दोनों दिग्गज नेताओं के आपसी रिश्ते सुधारने का प्रयास किया. यही वजह है कि दिल्ली में सीएम योगी की बीजेपी नेतृत्व से मीटिंग के बाद बृजभूषण शरण सिंह उनसे मिलने पहुंचे थे. 31 महीने बाद दो ठाकुर नेताओं की मुलाकात ने सूबे के ठाकुर समुदाय को हौसले को बुलंद कर दिया है.

योगी-बृजभूषण की केमिस्ट्री में मिलेगी धार

बृजभूषण शरण सिंह भी गोरक्षनाथ पीठ से जुड़े हुए हैं, जिसके योगी आदित्यनाथ महंत है. राम मंदिर आंदोलन के दौरान बृजभूषण सिंह ने सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ के साथ मिलकर आवाज बुलंद की थी. योगी का सियासी दबदबा गोरखपुर बेल्ट में है तो बृजभूषण की सियासी तूती देवीपाटन मंडल में बोलती है. माना जा रहा है कि दिल्ली में सीएम योगी आदित्यनाथ की बीजेपी हाईकमान से हुई मुलाकातों ने इन दोनों को साथ आने पर मजबूर कर दिया है.

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आजतक को मिली जानकारी के मुताबिक बृजभूषण शरण सिंह के बेटे करन भूषण सिंह ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी. इस दौरान दौरान बृजभूषण और सीएम योगी की फोन पर बात कराई थी. इसके बाद सोमवार को बृजभूषण ने सीएम योगी से मिलाकर अपने गिले-शिकवे दूर किए. बृजभूषण सिंह ने अपनी तरफ से पहल कर दी है और अब सीएम योगी भी आगे बढ़ते हैं तो पूर्वांचल की सियासत में दोनों ठाकुर नेताओं की सियासी केमिस्ट्री फिर से देखने को मिलेगी.

पूर्वांचल की राजनीति में बृजभूषण शरण सिंह का अब भी एक बड़ा नाम हैं. गोंडा ही नहीं देवीपाटन मंडल में उनका प्रभाव है. वे छह बार सांसद रह चुके हैं और ठाकुर बाहुबली नेता के तौर पर जमीनी पकड़ रखते हैं. यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का सियासी कद काफी बढ़ा है, जिसके चलते गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल के बेल्ट में उनकी पकड़ मजबूत हुई है. योगी ठाकुर ही नहीं हिंदुत्व का चेहरा बनकर उभरे हैं जबकि बृजभूषण सिंह को ठाकुर नेता माना जाता है.

वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम का कहना है कि बृजभूषण सिंह और योगी आदित्यनाथ के बीच रिश्ते बेहतर नहीं होते हैं तो बीजेपी को देवीपाटन मंडल में कमल खिलाना मुश्किल हो जाएगा. बृजभूषण को विश्वास में लिए बगैर बीजेपी जीत नहीं दर्ज कर पाएगी. इसीलिए 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें एकजुट करने में लग गई है. बृजभूषण पूर्वांचल की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं. गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती जैसे क्षेत्रों में उनका असर अब भी गहरा है.

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यूपी में 'ठाकुर पॉलिटिक्स' का बढ़ेगा असर

यूपी की सियासत में ठाकुर समुदाय भले ही 6 फीसदी के करीब हो, लेकिन सियासी ताकत उससे कहीं ज्यादा है. सूबे के राजनीतिक खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत ठाकुर वोटर रखते हैं. बीजेपी के 2017 में सत्ता में आने और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ठाकुरों का तमाम पार्टियों से मोहभंग हुआ है और यूपी में बीजेपी के कोर वोट बैंक बन चुका है, लेकिन 2024 के चुनाव में ठाकुर पंचायतों ने बीजेपी का बड़ा झटका दिया था.

बीजेपी के दिग्गज नेता पुरुषोत्तम रुपाला के क्षत्रिय समुदाय पर दिए गए विवादित बयान को लेकर करणी सेना ने उत्तर प्रदेश में मोर्चा खोल दिया था, जिसका नुकसान बीजेपी को कई सीटों पर उठाना पड़ा. वैसा ही माहौल पिछले दिनों राणा सांगा पर रामजीलाल सुमन के द्वारा दिए गए बयान के बाद भी देखा गया था. रामजीलाल सुमन के खिलाफ आगरा ठाकुर समाज की रैली में बृजभूषण शरण सिंह अपने लाव लश्कर के साथ शामिल हुए थे. बृजभूषण ने अपनी छवि को पूरी तरह से ठाकुर नेता के तौर पर बना रही है.

बृजभूषण सिंह और योगी आदित्यनाथ के मुलाकात से ठाकुर समुदाय के हौसला बुलंद है. अखिल भारतीय छत्रिय महासभा के महासचिव राघवेंद्र सिंह राजू भी मानते हैं कि बृजभूषण और योगी के साथ आने से समाज में खुशी है, क्योंकि समाज काफी समय से चाहता था कि दोनों नेता आपसी मनमुटाव भुलाकर साथ आए. दोनों नेताओं की एकता बीजेपी के लिए भी सियासी मुफीद होगी और ठाकुर समुदाय बीजेपी के साथ एकजुट नजर आएगा.

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UP की राजनीति में ठाकुरों का वर्चस्व

बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजादी के बाद से ही जमींदारों और रजवाड़ों का वर्चस्व रहा है. यूपी के पहले ठाकुर मुख्यमंत्री वीपी सिंह इलाहाबाद के मांडा के राज परिवार से थे और बाद में पीएम भी बने. कुंडा से विधायक राजा भैया भदरी के राजपरिवार से आते हैं और देश के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी बलिया के एक शक्तिशाली जमींदार परिवार से थे. कालाकंकर के राजा दिनेश विदेश कांग्रेस के दिग्गज नेता मंत्री थे. ठाकुर समुदाय से आने वाले राजनाथ सिंह देश के रक्षामंत्री है और सीएम योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

आजादी के बाद ठाकुर समुदाय के लोग कांग्रेस का परंपरागत वोटर माने जाते थे. इसके पीछे वजह यह थी कि राजा-रजवाड़े ज्यादातर ठाकुर थे और कांग्रेस उनकी सियासी ठिकाना बनी, लेकिन ब्राह्मण समुदाय का दबदबा होने से ठाकुर सत्ता की लालसा में छिटकने लगे. वीपी सिंह से लेकर वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम बने, लेकिन नब्बे के दशक में मंडल पॉलिटिक्स आने के बाद देश के साथ-साथ यूपी की सियासत भी बदली. नब्बे के दशक में ठाकुर वोटर सपा से साथ गए, लेकिन योगी के सीएम बनने के बाद से बीजेपी के साथ खड़े हैं.

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यूपी में कितनी बदल जाएगी सियासत?

उत्तर प्रदेश में करीब 6 फीसदी राजपूत समाज है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 63 राजपूत विधायक जीतने में सफल रहे थे जबकि 2022 में 49 ठाकुर विधायक बने. बृजभूषण शरण सिंह और योगी आदित्यनाथ की यह मुलाकात सिर्फ दो नेताओं की भेंट नहीं, बल्कि ठाकुर सियासत भी एक नई शुरुआत मानी जा रही है. योगी और बृजभूषण सिंह के बीच रिश्ते बेहतर होते हैं तो ठाकुर वोट बीजेपी के पक्ष में एकजुट रह सकता है.

योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह के रूप में बीजेपी के पास ठाकुर नेता है, जिनके सामने सपा के पास कोई दमदार ठाकुर चेहरा नहीं रह गया है. ऐसे में बृजभूषण सिंह के साथ आने से ठाकुर राजनीति बीजेपी की और भी मजबूत होगी. यूपी में पहले से ही करणी सेना अलग-अलग जिलों में सक्रिय है.

इतिहास गवाह है आजादी के बाद से यूपी में सत्ता में कोई भी हो ठाकुर हमेशा से प्रभावी रहे हैं. यूपी की सियासत में भले ही ठाकुर छह फीसदी हो, लेकिन राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर हैं. यही वजह है कि हमेशा से ठाकुर अपनी आबादी की तुलना में दो गुना विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं. इसीलिए बीजेपी पूर्वांचल के दो ठाकुर नेताओं की सियासी केमिस्ट्री को बनाने में जुट गई है ताकि 2027 में सत्ता की हैट्रिक लगाई जा सके.

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