पार्टी और शोर-शराबे से तौबा... 'डिजिटल डिटॉक्स' से होगी 2026 की शुरुआत

नए साल का जश्न हमेशा शोर से जुड़ा रहा है, लेकिन 2026 में यह धारणा टूटती नजर आ रही है. इस बार लोग भीड़, पार्टी और स्क्रीन से दूरी बना रहे हैं. आखिर लोग अचानक यह रास्ता क्यों चुन रहे हैं और इस बदलाव के पीछे कौन-सी सोच छिपी है.

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नोटिफिकेशन की गुलामी से आजादी (Photo: Pexels) नोटिफिकेशन की गुलामी से आजादी (Photo: Pexels)

धीरज पांडेय

  • नई दिल्ली ,
  • 31 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

नया साल आने वाला है, 2026 बस दरवाजे पर खड़ा है. आमतौर पर इस वक्त तक क्या होता है? आप किसी लाउड म्यूजिक वाली पार्टी की टिकट बुक कर रहे होते हैं या दोस्तों के साथ किसी क्लब में सीन सेट कर रहे होते हैं. लेकिन रुकिए, इस बार हवा का रुख थोड़ा बदला-बदला सा है. लोग अब उस शोर-शराबे और बनावटी जश्न से थक चुके हैं जहां सुबह उठते ही शरीर में एनर्जी के बजाय थकान हो, सिर भारी हो और फोन अनगिनत फालतू  नोटिफिकेशन से भरा हो.

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अब लोग उस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते जो बस दिखाने के लिए जश्न मनाती है. इस साल का सबसे बड़ा ट्रेंड मचेगा शोर नहीं, बल्कि मिलेगा सुकून होने वाला है. लोग अब मौन की शरण में जा रहे हैं, अपनी मानसिक शांति को प्राथमिकता दे रहे हैं और अपने फोन को किसी डिब्बे में बंद कर खुद से संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं. वे खुद से पूछ रहे हैं कि 'आखिर, मैं असल में हूं कौन और मुझे क्या चाहिए?'

'डिजिटल डिटॉक्स' कर रहे हैं लोग

भागदौड़ भरी इस दुनिया में यह 'डिजिटल डिटॉक्स' सिर्फ एक फैशन नहीं, बल्कि एक जरूरत बनकर उभरा है. चलिए विस्तार से समझते हैं कि क्यों 2026 में लोग इस खामोशी के पीछे दीवाने हो रहे हैं और आपको भी इसकी सख्त जरूरत क्यों है.

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आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये 'डिजिटल डिटॉक्स' क्या बला है? इसे बहुत ही आसान शब्दों में समझते हैं. जैसे शरीर की गंदगी साफ करने के लिए हम खान-पान में परहेज करते हैं, वैसे ही दिमाग को फालतू सूचनाओं, सोशल मीडिया के दबाव और डिजिटल कचरे से मुक्त करने की प्रक्रिया को 'डिजिटल डिटॉक्स' कहा जाता है. इसका सीधा सा मतलब है कि एक निश्चित समय के लिए अपने स्मार्टफोन, लैपटॉप और इंटरनेट की दुनिया से पूरी तरह दूरी बना लेना.

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मोबाइल की नोटिफिकेशन वाली गुलामी से आजादी और खुद से मुलाकात

आजकल हमारा हाल क्या है? हमारी आंख बाद में खुलती है, हाथ तकिए के नीचे रखे फोन पर पहले जाता है. अभी पूरी तरह होश भी नहीं आता कि ईमेल, वॉट्सऐप ग्रुप्स की किच-किच और वो कभी न खत्म होने वाली रील्स का समंदर हमें अपनी चपेट में ले लेता है. जागते ही हमारा दिमाग दुनिया भर की सूचनाओं, विवादों और फालतू के अपडेट्स के बोझ तले दब जाता है. लेकिन 2026 की दहलीज पर खड़ी दुनिया अब इस 'डिजिटल जंजाल' से ऊब चुकी है. इस बार लोग नया आप (New You) बनने की बात तो कर रहे हैं, पर उसमें कोई स्नैपचैट फिल्टर या इंस्टाग्राम वाली चमक-धमक नहीं है. लोग अब अपने असली स्वरूप को तलाश रहे हैं.

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डिजिटल डिटॉक्स का मतलब सिर्फ फोन का स्विच ऑफ करना भर नहीं है. यह असल में अपनी प्राथमिकताओं को फिर से रीसेट करने का एक बड़ा कदम है. जरा सोचिए, जब आप उस 6 इंच की चमकदार स्क्रीन से अपनी नजरें हटाते हैं, तभी तो आपको अहसास होता है कि असल दुनिया कितनी रंगीन और खूबसूरत है. हमारे वॉट्सऐप ग्रुप्स, जो कभी हमें जोड़ने के लिए बने थे, आज मानसिक तनाव का जरिया बन गए हैं. किसी दूसरे की वैकेशन फोटो या 'परफेक्ट लाइफ' देखकर अनजाने में ही हमारे अंदर तुलना का भाव पैदा होने लगता है. इसे ही कहते हैं 'FOMO' यानी कुछ छूट जाने का डर. 2026 का सीधा संदेश यही है कि इस FOMO को टाटा-बाय बाय बोलिए और अपनी शांति को चुनिए.

जब आप कुछ दिनों के लिए फोन को डू नॉट डिस्टर्ब पर डालते हैं या उसे किसी अलमारी में बंद कर रख देते हैं, तो एक जादुई अहसास होता है. आप उस 'डोपामाइन हिट' के चक्र से बाहर निकल आते हैं, जो हर नोटिफिकेशन की घंटी पर आपके दिमाग को उत्तेजित करता था. फोन से दूर होकर आप यह तय कर पाते हैं कि आपको अपनी ऊर्जा कहां खर्च करनी है. अब आप तकनीक की कठपुतली नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी के खुद मालिक बन जाते हैं. यह शांति आपको उन लक्ष्यों को साफ-साफ देखने में मदद करती है, जो शोर-शराबे में कहीं खो गए थे.

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रिश्तों की गर्माहट और प्रकृति की गोद में असली सुकून 

ईमानदारी से एक बात सोचिए, आखिरी बार कब आपने अपने पार्टनर, माता-पिता या किसी पुराने दोस्त की आंखों में आंखें डालकर, बिना फोन को हाथ लगाए एक घंटे तसल्ली से बात की थी? शायद याद करना मुश्किल हो. यही आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना है. तकनीक ने हमें सात समंदर पार बैठे अजनबियों से तो जोड़ दिया, लेकिन बगल में बैठे इंसान से कोसों दूर कर दिया. इसी दूरी को कम के लिए 2026 में 'साइलेंट रिट्रीट' और प्रकृति के करीब जाने का चलन बढ़ रहा है.

आजकल 'न्यू फॉरेस्ट' जैसी शांत और हरियाली वाली जगहें नए साल के जश्न का नया ठिकाना बन रही हैं. यहां लोग नाचने-गाने या भीड़ बढ़ाने नहीं जा रहे, बल्कि अपनी मानसिक बैटरी को रिचार्ज करने जा रहे हैं. यहां का असली मंत्र है लंबी सैर, स्पा में बिताया गया सुकून भरा वक्त और बिना किसी डिजिटल दखल के अपनों के साथ बितया गया सार्थक समय. जब आप जंगल की पगडंडियों पर चलते हैं या सुबह की ठंडी हवा के बीच शांति से बैठकर अपनी कॉफी पीते हैं, तो दिमाग की वो नसें रिलैक्स होती हैं जो साल भर की भागदौड़ में तन गई थीं.

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हमारी जिंदगी की रफ्तार डिजिटल दुनिया की तरह बहुत तेज और तनावपूर्ण हो गई है, जबकि असली खूबसूरती तो प्रकृति की तरह सहज होने में है. इस सर्दी में, 2026 का आगाज किसी ऐसी जगह से कीजिए जहां मोबाइल का सिग्नल भले ही कमजोर हो, लेकिन दिल का कनेक्शन सबसे मजबूत हो. अपनों के साथ पुराने किस्सों को याद कीजिए और उस पल को जी लीजिए. यह शांति ही आपको मानसिक रूप से तरोताजा करेगी और आने वाले पूरे साल की चुनौतियों के लिए तैयार करेगी.

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