भारत में आज एक बड़ी समस्या बन चुके हैं करीब 6 करोड़ स्वच्छंद (घूमने वाले) कुत्ते, जो हर साल लाखों लोगों पर हमला करते हैं. सार्वजनिक जगहों पर लोगों की जान ले रहे हैं. यह समस्या केवल कुत्तों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है. लेकिन इन्हें सड़कों से और शहरों से हटाने से वैक्यूम इफेक्ट (Vacuum Effect) पैदा होगा.
वैक्यूम इफेक्ट क्या है?
वैक्यूम इफेक्ट (Vacuum Effect) तब होता है जब किसी क्षेत्र से स्वच्छंद कुत्तों को हटाया जाता है, तो उनके स्थान पर नए कुत्ते आकर बस जाते हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि खाने का स्रोत (कचरा) और जगह खाली हो जाती है, जो नए कुत्तों को आकर्षित करता है. इस बात पर जोर है कि केवल कुत्तों को हटाना पर्याप्त नहीं है, अगर कचरा प्रबंधन और खाने को सोर्सेज को कंट्रोल न किया जाए.
अवारा कुत्तों का बढ़ता खतरा
पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) के अनुसार भारत में अनुमानित 6 करोड़ स्वच्छंद कुत्ते हैं, जो बिना मालिक के सड़कों पर घूमते हैं. ये कुत्ते हर साल लाखों लोगों को काटते हैं. कई बार ये हमले इतने गंभीर होते हैं कि लोग मर जाते हैं. रेबीज (कुत्ते के काटने से होने वाला रोग) से हर साल 20,000 से ज्यादा मौतें होती हैं, जो भारत को रेबीज की राजधानी बनाता है.
इसके अलावा, ये कुत्ते वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाते हैं. सड़क दुर्घटनाओं का दूसरा बड़ा कारण हैं. इन कुत्तों के कचरे में भटकने से सड़कों की साफ-सफाई भी बिगड़ती है. चूहों-छिपकलियों के लिए खाना मिल जाता है, जो बीमारियों को बढ़ाता है.
यह भी पढ़ें: SC के आदेश पर पेट लवर्स की नाराजगी... क्यों शेल्टर होम भेजने के फैसले को कुत्तों के लिए मान रहे खतरा
सरकार की नीतियां: क्या सही हैं?
पहले, राज्य नगर पालिका कानून और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत स्वच्छंद कुत्तों को सार्वजनिक जगहों से हटाने और मानवीय तरीके से उनकी नसबंदी या मारने की इजाजत थी. लेकिन 2001 में संस्कृति मंत्रालय ने पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 लागू किए. 2023 में पशुपालन विभाग ने इसे नया रूप दिया. इन नियमों का मकसद कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण करना है, लेकिन इन मंत्रालयों का जन स्वास्थ्य से कोई संबंध नहीं है, जिससे नीतियां प्रभावी नहीं हो पा रही हैं.
पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) ने ABC नियमों के दस्तावेज में कई गलत बातें लिखी हैं. यह मालिक वाले कुत्तों के फायदों को अवारा कुत्तों के साथ मिला देता है, उनके नुकसान को कम दिखाता है. लोगों को ही हमलों का दोषी ठहराता है.
एलन बेक की किताब "द इकोलॉजी ऑफ स्ट्रे डॉग्स" में लिखा है कि स्वच्छंद कुत्ते कचरे को फैलाकर इलाके की साफ-सफाई बिगाड़ते हैं. कचरा उठाने की प्रक्रिया धीमी करते हैं. चूहों-छिपकलियों के लिए आसान खाना मुहैया कराते हैं. फिर भी, पशु अधिकार समूह इन्हें कचरा और चूहे नियंत्रण के साधन कहते हैं, जबकि ये कुत्ते वही बीमारियां फैलाते हैं जो चूहे करते हैं. इंसानों की मौत का खतरा भी ज्यादा बढ़ाते हैं.
इंटरनेशनल नियम क्या कहते हैं?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अवारा जानवरों और कीटों को नियंत्रित करने का पहला कदम खाने का स्रोत खत्म करना है. लेकिन AWBI सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना देने की सलाह देता है, जिससे यह मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा का मुद्दा कुत्तों को बढ़ावा देने की नीति में बदल गया है.
अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने कुत्ते के मल को जहरीले प्रदूषकों (जैसे वाहनों के रसायन और कीटनाशकों) की श्रेणी में रखा है. सिर्फ 100 कुत्तों के 2-3 दिन के मल से इतने बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं कि 20 मील के दायरे में पानी के स्रोत बंद करने पड़ें. भारत में, 6 करोड़ स्वच्छंद कुत्ते हर दिन करीब 30,000 टन जहरीले मल सड़कों पर छोड़ते हैं, जो बीमारियों को फैलाने का बड़ा कारण है.
अवारा कुत्तों को हटाने के प्रभाव और फायदे
अवारा कुत्तों को सड़कों और शहरों से हटाने के कई फायदे हो सकते हैं, लेकिन इसके प्रभाव भी समझना जरूरी है...
प्रभाव
फायदे
आजतक साइंस डेस्क