ADITYA-L1 MISSION ISRO: लॉन्च रिहर्सल और रॉकेट इंटरनल चेकिंग में परफेक्ट हमारा सूर्य मिशन, लॉन्चिंग की कैसी है तैयारी?

ISRO अपने पहले स्पेस ऑब्जरवेटरी यानी Aditya-L1 के लॉन्चिंग की तैयारी कर चुका है. इसे PSLV-XL रॉकेट से 2 सितंबर 2023 को लॉन्च किया जाएगा. लॉन्च रिहर्सल पूरा हो चुका है. अब Aditya-L1 मिशन अंतरिक्ष में जाने को तैयार है. इसे L1 प्वाइंट तक पहुंचने में करीब 127 दिन का समय लगेगा. फिर ये वहां से डेटा भेजेगा.

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Aditya-L1 रॉकेट में तैनात है. रॉकेट लॉन्च पैड पर पहुंच गया है. अब बस फ्यूल डालकर लॉन्चिंग का इंतजार करना है. (सभी फोटोः ISRO) Aditya-L1 रॉकेट में तैनात है. रॉकेट लॉन्च पैड पर पहुंच गया है. अब बस फ्यूल डालकर लॉन्चिंग का इंतजार करना है. (सभी फोटोः ISRO)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 12:15 PM IST

भारत के सूर्य मिशन यानी Aditya-L1 मिशन के लॉन्च की सारी तैयारियां हो चुकी हैं. PSLV-C57 रॉकेट भारत के पहले सोलर मिशन को लेकर लॉन्च पैड पर पहुंच चुका है. 30 अगस्त 2023 को लॉन्च रिहर्सल पूरा हो चुका है. रॉकेट के सभी अंदरूनी हिस्सों की जांच कर ली गई है. रॉकेट की सेहत पूरी तरह से ठीक है. 

लॉन्चिंग 2 सितंबर 2023 की सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगी. आदित्य-L1 को इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकट PSLV-C57 धरती की लोअर अर्थ ऑर्बिट में छोड़ेगा. इसके बाद तीन या चार ऑर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती के स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगा क्रूज फेज. यह थोड़ा लंबा चलेगा. 

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इसके बाद आदित्य-L1 को हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है. लेकिन सूरज से धरती की दूरी की तुलना में मात्र 1 फीसदी है. इस यात्रा में इसे 127 दिन लगने वाला है. इसे कठिन इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसे दो बड़े ऑर्बिट में जाना है. 

कठिन यात्रा की शुरुआत धरती की ग्रैविटी से बाहर जाना

पहली कठिन ऑर्बिट है धरती के SOI से बाहर जाना. क्योंकि पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति से उसके आसपास हर चीज को खींचती है. इसके बाद है क्रूज फेज और हैलो ऑर्बिट में L1 पोजिशन को कैप्चर करना. अगर यहां उसकी गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह सीधे सूरज की तरफ चलता चला जाएगा. और जलकर खत्म हो जाएगा. 

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सूरज की अपनी ग्रैविटी है. यानी गुरुत्वाकर्षण शक्ति. धरती की अपनी ग्रैविटी है. अंतरिक्ष में जहां पर इन दोनों की ग्रैविटी टकराती है. या यूं कहें जहां धरती की ग्रैविटी खत्म होती है. वहां से सूरज की ग्रैविटी का असर शुरू होता है. इसी प्वाइंट को लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). भारत का आदित्य लैरेंज प्वाइंट वन यानी L1 पर तैनात होगा.

L1 प्वाइंट पर टिकना बेहद जरूरी नहीं तो हादसा तय

दोनों की ग्रैविटी की जो सीमा है वहां कोई छोटी वस्तु लंबे समय तक रह सकती है. वह दोनों की ग्रैविटी के बीच फंसी रहेगी. इससे स्पेसक्राफ्ट का ईंधन कम इस्तेमाल होता है. वह ज्यादा दिन काम करता है. L1 सूरज और धरती की कुल दूरी का एक फीसदी हिस्सा है. यानी 15 लाख किलोमीटर. जबकि, सूरज से धरती की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है. 

सूरज से ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा मिलती है. इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है. सूरज की ग्रैविटी से ही सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं. नहीं तो वो कब का सुदूर गहरे अंतरिक्ष में तैर रहे होते. 

सूरज के केंद्र में हमेशा फटते हैं लाखों परमाणु बम

सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है. सतह से थोड़ा ऊपर यानी इसके फोटोस्फेयर का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके. 

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सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं. सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है. 

यहीं से कोरोनल मास इजेक्शन (CME) होता है. इसकी वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना  जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है.  
 

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