भारत के पास होगी अपनी रोबोटिक सेना... DRDO बना रहा ह्यूमेनॉयड लड़ाके रोबोट

डीआरडीओ के वैज्ञानिक सैन्य मिशनों के लिए ह्यूमनॉइड रोबोट विकसित कर रहे हैं, जो जोखिम वाले क्षेत्रों में सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा. यह रोबोट जटिल कार्य, स्वायत्त नेविगेशन और खतरनाक सामग्रियों को संभालने में सक्षम होगा. उन्नत सेंसर, एक्ट्यूएटर्स और नियंत्रण प्रणाली से लैस, यह 2027 तक तैयार होगा जो रक्षा और अन्य क्षेत्रों में क्रांति लाएगा.

Advertisement
DRDO ऐसे रोबोट्स बना रहा है जो सैनिकों की मदद करेंगे. (सभी प्रतीकात्मक फोटोः गेटी) DRDO ऐसे रोबोट्स बना रहा है जो सैनिकों की मदद करेंगे. (सभी प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2025,
  • अपडेटेड 4:22 PM IST

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक एक ऐसे मानवरोबोट (ह्यूमनॉइड रोबोट) के विकास पर काम कर रहे हैं, जो अग्रिम पंक्ति के सैन्य मिशनों में हिस्सा ले सके. एक अधिकारी ने शनिवार को बताया कि इस रोबोट का उद्देश्य उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सैनिकों की जान को खतरे में डाले बिना जटिल कार्यों को अंजाम देना है. 

डीआरडीओ के तहत एक प्रमुख प्रयोगशाला, रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (इंजीनियर्स), इस मशीन को विकसित कर रही है. प्रत्यक्ष मानव निर्देशों के तहत जटिल कार्यों को करने में सक्षम होगी. इस रोबोट को विशेष रूप से ऐसे वातावरण में सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है, जहां जोखिम अधिक है. 

Advertisement

यह भी पढ़ें: हमारे एयर डिफेंस को भेदना नामुमकिन... एयरफोर्स ने समझाया कैसे काम करता है इंडियन मल्टीलेयर रक्षाकवच

चार साल से चल रहा है प्रोजेक्ट

पुणे में सेंटर फॉर सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज फॉर एडवांस्ड रोबोटिक्स के समूह निदेशक एस.ई. तलोले ने बताया कि उनकी टीम पिछले चार साल से इस परियोजना पर काम कर रही है. उन्होंने कहा कि हमने ऊपरी और निचले शरीर के लिए अलग-अलग प्रोटोटाइप विकसित किए हैं. 

आंतरिक परीक्षणों के दौरान कुछ कार्यों को सफलतापूर्वक हासिल किया है. यह ह्यूमनॉइड रोबोट जंगल जैसे कठिन इलाकों में भी काम कर सकेगा. हाल ही में पुणे में आयोजित नेशनल वर्कशॉप ऑन एडवांस्ड लेग्ड रोबोटिक्स में इस रोबोट को प्रदर्शित किया गया था. 

उन्नत विकास चरण में प्रोजेक्ट

वर्तमान में यह प्रोजेक्ट अपने उन्नत विकास चरण में है. टीम का ध्यान रोबोट की ऑपरेटर के निर्देशों को समझने और उन्हें लागू करने की क्षमता को और बेहतर बनाने पर है. इस प्रणाली में तीन मुख्य घटक शामिल हैं:  

Advertisement
  • एक्ट्यूएटर्स: ये मानव मांसपेशियों की तरह गति उत्पन्न करते हैं.  
  • सेंसर: ये आसपास के वातावरण से वास्तविक समय में डेटा एकत्र करते हैं.  
  • नियंत्रण प्रणाली: ये एकत्रित जानकारी का विश्लेषण करके रोबोट के कार्यों को निर्देशित करती हैं.

यह भी पढ़ें: हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल, ब्रह्मोस-2... भारत के फ्यूचर वेपन जो PAK-चीन के होश उड़ा देंगे

तलोले ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि रोबोट वांछित कार्यों को सुचारू रूप से कर सके. इसके लिए संतुलन, तीव्र डेटा प्रोसेसिंग और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में महारत हासिल करना आवश्यक है. डिज़ाइन टीम का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक किरण अकेला ने बताया कि शोधकर्ता इन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. 2027 तक इस परियोजना को पूरा करने की दिशा में काम कर रहे हैं. 

रोबोट की विशेषताएं और क्षमताएं

डीआरडीओ के अधिकारियों ने बताया कि दो पैरों (बाइपेडल) और चार पैरों (क्वाड्रुपेडल) वाले रोबोट रक्षा और सुरक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा, घरेलू सहायता, अंतरिक्ष अन्वेषण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएं प्रदान करते हैं. हालांकि, स्वायत्त और कुशल लेग्ड रोबोट बनाना एक बड़ी तकनीकी चुनौती है. 

वैज्ञानिकों ने बताया कि इस ह्यूमनॉइड रोबोट का ऊपरी हिस्सा हल्के वजन वाले हाथों से सुसज्जित होगा, जिसमें गोलाकार रिवॉल्यूट जोड़ कॉन्फ़िगरेशन होगा. इसमें कुल 24 डिग्री ऑफ फ्रीडम होंगे - प्रत्येक हाथ में 7, ग्रिपर में 4, और सिर में 2. यह रोबोट जटिल स्वायत्त कार्य करने में सक्षम होगा, जैसे:  बंद-लूप ग्रिपिंग के साथ वस्तुओं को पकड़ना.  

Advertisement

यह भी पढ़ें: जिस सैटेलाइट से भारत ने सर्जिकल और एयर स्ट्राइक पर रखी थी नजर, उसी का लेटेस्ट वर्जन लॉन्च करेगा ISRO

वस्तुओं को मोड़ना, धक्का देना, खींचना, स्लाइडिंग दरवाजे खोलना, वाल्व खोलना और बाधाओं को पार करना. खतरनाक सामग्रियों जैसे खदानों, विस्फोटकों और तरल पदार्थों को सुरक्षित रूप से संभालना. दोनों हाथ मिलकर सहयोगात्मक रूप से कार्य करेंगे, जिससे खतरनाक सामग्रियों को सुरक्षित रूप से संभाला जा सके. 

उन्नत तकनीकी विशेषताएं

यह रोबोट दिन हो या रात, घर के अंदर हो या बाहर, निर्बाध रूप से काम करेगा. इसमें निम्नलिखित तकनीकी विशेषताएं शामिल होंगी... 

प्रोप्रियोसेप्टिव और एक्सटेरोसेप्टिव सेंसर: ये रोबोट को अपने शरीर और आसपास के वातावरण के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे.  

  • डेटा फ्यूजन क्षमता: विभिन्न स्रोतों से डेटा को एकीकृत करने की क्षमता.  
  • सामरिक संवेदन: यह रोबोट को जटिल परिस्थितियों में निर्णय लेने में मदद करेगा.  
  • ऑडियो-विजुअल धारणा: यह रोबोट को देखने और सुनने की क्षमता प्रदान करेगा.

इसके अलावा, यह ह्यूमनॉइड बाइपेड रोबोट निम्नलिखित विशेषताओं से लैस होगा...

  • फॉल और पुश रिकवरी: गिरने या धक्का दिए जाने पर स्वयं को संभालने की क्षमता.  
  • वास्तविक समय में मैप जनरेशन: आसपास के क्षेत्र का नक्शा बनाने की क्षमता.  
  • स्वायत्त नेविगेशन और पथ नियोजन: सिमुल्टेनियस लोकलाइजेशन एंड मैपिंग (एसएलएएम) के माध्यम से यह रोबोट जटिल और उच्च जोखिम वाले वातावरण में स्वायत्त रूप से संचालित हो सकेगा.

भविष्य की संभावनाएं

Advertisement

डीआरडीओ के इस ह्यूमनॉइड रोबोट प्रोजेक्ट से न केवल रक्षा क्षेत्र में क्रांति आएगी, बल्कि यह अन्य क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य सेवा, अंतरिक्ष अन्वेषण और औद्योगिक अनुप्रयोगों में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की उन्नत तकनीक सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ाने के साथ-साथ मानव जीवन को और सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने में मदद करेगी. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement