SpaceX ने अंतरिक्ष में की इंडियन सैटेलाइट GSAT-20 की लॉन्चिंग, जानिए ISRO को क्यों लेनी पड़ी एलन मस्क की मदद

GSAT-N2 कम्युनिकेशन सैटेलाइट 32 यूजर बीम से लैस है, जिसमें आठ नैरो स्पॉट बीम और 24 चौड़े स्पॉट बीम शामिल हैं, जिन्हें पूरे भारत में स्थित हब स्टेशनों द्वारा सपोर्ट किया जाएगा.

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इंडियन सैटेलाइट GSAT-20 (तस्वीर: X/@SpaceX) इंडियन सैटेलाइट GSAT-20 (तस्वीर: X/@SpaceX)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:16 AM IST

SpaceX के Falcon9 ने मंगलवार को फ्लोरिडा के केप कैनावेरल (Cape Canaveral) से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के GSAT-20 कम्युनिकेशन सैटेलाइट को लेकर उड़ान भरी. 4,700 किलोग्राम वाले भारतीय उपग्रह को भारत के कम्युनिकेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें 14 साल की मिशन अवधि के साथ का-बैंड हाई-थ्रूपुट कम्युनिकेशन पेलोड है.

एक बार चालू हो जाने पर यह सैटेलाइट देश भर में अहम सेवाएं देगी, जिसमें दूरदराज के इलाकों के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी और उड़ान के दौरान इंटरनेट सर्विसेज शामिल हैं. बता दें कि हाल ही में रेगुलेटरी बदलाव हुए हैं, जिससे भारतीय हवाई क्षेत्र में ऐसी कनेक्टिविटी की अनुमति मिल गई है.

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GSAT-N2 कम्युनिकेशन सैटेलाइट 32 यूजर बीम से लैस है, जिसमें आठ नैरो स्पॉट बीम और 24 चौड़े स्पॉट बीम शामिल हैं, जिन्हें पूरे भारत में स्थित हब स्टेशनों द्वारा सपोर्ट किया जाएगा.

जनवरी में हुआ था साझेदारी का ऐलान

सरकार द्वारा संचालित इसरो के कमर्शियल सेग्मेंट न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने इस साल की शुरुआत में 3 जनवरी को एलन मस्क के स्पेसएक्स के साथ अपने पहले सहयोग का ऐलान किया था. भारत ने कथित तौर पर 430 से ज्यादा विदेशी उपग्रहों को लॉन्च किया था, लेकिन यह उपग्रह इतना भारी था कि इंडियन लॉन्च वेहिकल इसे स्पेस में ले जाने में असमर्थ था. इस वजह से इसरो को स्पेसएक्स के साथ साझेदारी करनी पड़ी.

यह लॉन्च भारी उपग्रहों के लिए यूरोपीय लॉन्च सर्विसेज पर निर्भरता के इतिहास के बाद इसरो और SpaceX के बीच पहले कमर्शियल सहयोग को दर्शाता है. Arianespace के पास मौजूदा वक्त में ऑपरेशनल रॉकेट की कमी और भू-राजनीतिक तनाव, रूस और चीन के विकल्प सीमित होने के कारण, SpaceX भारत के लिए सबसे अच्छे विकल्प के रूप में उभरा है.

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यह भी पढ़ें: SpaceX ने रचा इतिहास... जहां से लॉन्च हुआ रॉकेट वहीं आकर लैंडिंग, वो भी लॉन्च पैड की 'बांहों में'

ISRO का सबसे भारी लॉन्च वेहिकल, LVM-3, जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में 4000 किलोग्राम स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिंग करने के काबिल है. हालांकि, मौजूदा मांग इससे कहीं ज्यादा है, जिससे भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को अपने दायरे से बाहर देखने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
 

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