चंद्रयान-3: लैंडिंग के 2 घंटे 26 मिनट बाद लैंडर से बाहर आया रोवर, चांद पर छोड़ेगा भारत की छाप

चंद्रयान-3 का लैंडर बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद की सतह पर उतरा था. इसके दो घंटे और 26 मिनट बाद रोवर भी इससे बाहर आ गया. रोवर छह पहियों वाला रोबोट है. ये चांद की सतह पर चलेगा. इसके पहियों में अशोक स्तंभ की छाप है. जैसे-जैसे रोवर चांद की सतह पर चलेगा, वैसे-वैसे अशोक स्तंभ की छाप छपती चली जाएगी.

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चंद्रयान-3 मून मिशन चंद्रयान-3 मून मिशन

नागार्जुन

  • बेंगलुरु,
  • 23 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 10:56 PM IST

भारत का तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया है. बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की. लैंडिंग के दो घंटे और 26 मिनट बाद लैंडर से रोवर भी बाहर आ गया है.

भारत के चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरकर इतिहास रच दिया. 40 दिन के लंबे सफर के बाद बुधवार को चंद्रयान-3 के लैंडर ने चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की. अब इस लैंडर से रोवर भी बाहर आ गया है.

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चंद्रयान-3 का लैंडर बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर उतरा था. इसके दो घंटे और 26 मिनट बाद रोवर भी इससे बाहर आ गया. रोवर छह पहियों वाला रोबोट है. ये चांद की सतह पर चलेगा. इसके पहियों में अशोक स्तंभ की छाप है. जैसे-जैसे रोवर चांद की सतह पर चलेगा, वैसे-वैसे अशोक स्तंभ की छाप छपती चली जाएगी. रोवर की मिशन लाइफ 1 लूनर डे है. चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है.

दक्षिणी ध्रुव के पास उतरा लैंडर

चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारने वाला भारत, दुनिया का पहला देश बन गया है. वहीं, चांद की सतह पर लैंडर उतारने वाला चौथा देश बन गया है. 

इससे पहले सितंबर 2019 में भी इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारने की कोशिश की थी. लेकिन तब हार्ड लैंडिंग हो गई थी.

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पहले ये जानते हैं प्रज्ञान रोवर क्या काम करेगा

प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड्स लगें हैं. पहला है लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (Laser Induced Breakdown Spectroscope - LIBS). यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा. साथ ही खनिजों की खोज करेगा. 

इसके अलावा प्रज्ञान पर दूसरा पेलोड है अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (Alpha Particle X-Ray Spectrometer - APXS). यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा. जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा. इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी.

पिछले मिशन से क्या मिला? 

इसरो ने साल 2008 में अपना पहला मून मिशन चंद्रयान-1 लॉन्च किया था. इसमें सिर्फ ऑर्बिटर था. जिसने 312 दिन तक चांद का चक्कर लगाया था. चंद्रयान-1 दुनिया का पहला मून मिशन था, जिसने चांद में पानी की मौजूदगी के सबूत दिए थे. 

इसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया. इसमें ऑर्बिटर के साथ लैंडर और रोवर भी भेजे गए. हालांकि, ये मिशन न तो पूरी तरह सफल हुआ था न और न ही फेल. 

चंद्रयान-3 मिशन की स्पेशल कवरेज देखने के लिए यहां क्लिक करें 

चांद की सतह पर लैंड करने से पहले ही विक्रम लैंडर टकरा गया था और इसकी क्रैश लैंडिंग हुई थी. हालांकि, ऑर्बिटर अपना काम कर रहा था. चंद्रयान-2 की गलतियों से सबक लेते हुए चंद्रयान-3 में कई अहम बदलाव किए गए हैं.

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