अफ्रीका महाद्वीप में एक ऐसी भूवैज्ञानिक घटना हो रही है, जो इसे धीरे-धीरे दो हिस्सों में बांट रही है. इस प्रक्रिया को पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) कहा जाता है. ये 3500 किमी लंबा है. 3.5 करोड़ साल से चल रहा है. वैज्ञानिकों ने हाल ही में खोजा कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला गर्म चट्टानों का एक विशाल सुपरप्लम इसके टूटने और ज्वालामुखी गतिविधियों का कारण है. केन्या, मलावी और लाल सागर में मिले गैसों के रासायनिक निशान इस सुपरप्लम की मौजूदगी की पुष्टि करते हैं. यह अध्ययन 12 मई 2025 को Geophysical Research Letters में प्रकाशित हुआ.
पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) क्या है?
EARS पृथ्वी का सबसे बड़ा सक्रिय महाद्वीपीय रिफ्ट सिस्टम है, जो अफ्रीका को दो हिस्सों में बांट रहा है. यह प्रक्रिया 3.5 करोड़ साल पहले शुरू हुई और अब भी जारी है. यह लाल सागर (उत्तर-पूर्वी अफ्रीका) से मोजाम्बिक (दक्षिणी अफ्रीका) तक फैला है. करीब 3500 किमी लंबे रिफ्ट में घाटियां और दरारें बनी हैं.
इसने इथियोपिया में एर्टा एले ज्वालामुखी जैसी गतिविधियों को बढ़ाया, जिससे लावा झीलें बनीं. रिफ्ट की वजह से अफ्रीका की लिथोस्फेयर (पृथ्वी की बाहरी चट्टानी परत) टूट रही है, जिससे महाद्वीप की सतह पर गहरी घाटियां बन रही हैं. वैज्ञानिकों को पहले नहीं पता था कि इस विशाल प्रक्रिया का सही कारण क्या है.
सुपरप्लम: पृथ्वी की गहराई का रहस्य
नए अध्ययन में पता चला कि EARS के नीचे पृथ्वी की गहराई में एक सुपरप्लम है. यह गर्म, तरल चट्टानों का एक विशाल उभार है, जो पृथ्वी के मेंटल (पृथ्वी की मध्य परत) और कोर (केंद्र) के बीच से शुरू होता है, यानी कर 2900 किमी की गहराई से. यह सुपरप्लम ऊपर उठकर अफ्रीका की ठोस लिथोस्फेयर पर दबाव डाल रहा है.
लिथोस्फेयर को तोड़ रहा है, जिससे दरारें और ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं. हवाई द्वीप समूह की तरह नहीं, जो एक पतली धारा से बना, बल्कि यह एक विशाल गर्म द्रव्यमान है जो पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है.
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बियिंग चेन, अध्ययन की पहली लेखिका और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की शोधकर्ता ने बताया कि EARS के अलग-अलग हिस्सों में गैसों की रासायनिक निशानियां एक जैसी हैं, जो बताता है कि ये सभी एक ही गहरे स्रोत से आ रही हैं.
नई खोज कैसे हुई?
वैज्ञानिकों ने केन्या के मेंगाई भूतापीय क्षेत्र में गैसों का अध्ययन किया. नियॉन (Ne) आइसोटोप्स की जांच की. ये नोबल गैसें (जैसे हीलियम, नियॉन) रासायनिक रूप से स्थिर होती हैं. लंबे समय तक रहती हैं, इसलिए इनका उपयोग भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को ट्रेस करने में होता है.
मेंगाई की गैसों में गहरे मेंटल की रासायनिक निशानी मिली, जो पृथ्वी के कोर-मेंटल सीमा से आ रही थी. यह निशानी लाल सागर (उत्तर) और मलावी (दक्षिण) की ज्वालामुखीय चट्टानों से मिलती थी, जो EARS के साथ जुड़ी थी. यह निशानी हवाई के प्राचीन ज्वालामुखीय चट्टानों जैसी थी, जहां भी एक मेंटल प्लम मौजूद है.
चेन ने कहा कि जब हमें नियॉन आइसोटोप्स में गहरे मेंटल की निशानी मिली, तो हम उत्साहित थे. लेकिन यह निशानी बहुत छोटी थी, इसलिए हमें डेटा को बार-बार जांचना पड़ा. कई घंटों की मेहनत के बाद, वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि यह निशानी सही है. EARS के अन्य हिस्सों से मेल खाती है.
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सुपरप्लम ने अफ्रीका में कई बदलाव किए...
चेन ने बताया कि सुपरप्लम एक विशाल गर्म द्रव्यमान है, जो ऊपर उठकर लिथोस्फेयर को तोड़ रहा है. यह इतना बल पैदा करता है कि ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं.
हवाई से तुलना
हवाई द्वीप समूह भी एक मेंटल प्लम के ऊपर बने हैं, लेकिन वहां का प्लम एक पतली, लावा लैंप जैसी धारा है. EARS का सुपरप्लम इससे अलग है. यह एक बड़ा, फैला हुआ द्रव्यमान है जो पूरे रिफ्ट क्षेत्र को प्रभावित करता है. यह पृथ्वी की गहराई से अधिक गर्म सामग्री ला रहा है, जिससे रिफ्ट की प्रक्रिया तेज हो रही है. हवाई में प्लम ने द्वीप बनाए, लेकिन EARS में यह महाद्वीप को तोड़ रहा है.
चुनौतियां और भविष्य
चेन ने कहा कि हमें इस निशानी को अलग करना मुश्किल था. हमने हर डेटा को बार-बार जांचा, लेकिन अब हमें यकीन है कि यह सुपरप्लम की मौजूदगी की पुष्टि करता है.
आजतक साइंस डेस्क