प्रियंका गांधी को यूपी के प्रभारी पद से कांग्रेस ने छुट्टी कर दी है. इसे लेकर तरह-तरह की अफवाहों का बाजार गर्म है. कोई कह रहा है कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है. वहीं कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रियंका को कांग्रेस में महत्वहीन बनाए रखने की साजिश चल रही है. कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि उनको हटाया नहीं गया है, उन्होंने खुद ही पूरे देश के लिए काम करने की इच्छा जताई है.इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए केवल यूपी में काम करने के बजाय पूरे देश में काम करना ज्यादा सम्मान की बात है और वो उसके उपयुक्त भी हैं.
इसके साथ ही प्रियंका गांधी ने काफी समय से यूपी में आना जाना भी कम कर दिया था जिससे ये संकेत मिलने लगे थे कि वो यूपी के प्रभार से मुक्त होना चाहती हैं. पर कांग्रेस में आज भी यूपी को मजबूत करने के लिए उनके जितना बड़े कद का कोई और नहीं है. अविनाश पांडे पुराने कांग्रेसी हो सकते हैं पर यूपी में आज भी कांग्रेस से बाहर उन्हें कोई नहीं जानता है. पिछले महीने जब प्रदेश कार्यसमिति का गठन किया गया तो भी प्रियंका गांधी के करीबी लोगों की छुट्टी कर दी गई . तो क्या पार्टी के अंदर उनके लिए सब ठीक नहीं चल रहा है. क्या राहुल गांधी और उनके बीच कुछ तनाव है या पार्टी पर वर्चस्व की जंग चल रही है. आईए देखते हैं कि वास्तव में क्या हो रहा है कांग्रेस के अंदर?
1-क्या संदीप सिंह बन गए कारण
यूपी में प्रियंका के लाख प्रयासों के बावजूद कांग्रेस क्यों नहीं उठ पाई इसके बारे में किसी पुराने नेता से पूछने पर बात आकर उनके निजी सचिव संदीप सिंह पर रुक जाती है. संगठन का ढांचा तय करने से लेकर प्रियंका से मुलाकात तक में उनके हस्तक्षेप के इतने किस्से सुनने को मिल जाएंगे कि आपको पहले यकीन ही नहीं होगा.
प्रियंका के मुलाकातियों की लिस्ट संदीप से ही होकर गुजरती रही है और जिसे वह नहीं चाहते, उसका नाम तक आगे नहीं जाता था. एक बार कमलापति त्रिपाठी के पौत्र ललितेश ने मीडिया से कहा था, 'संदीप ने नेतृत्व से मशविरे की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी और उनके काम करने का तरीका निरंकुश था' कांग्रेस के प्रवक्ता और एआईसीसी मेंबर रह चुके जीशान हैदर ने एक बार बयान जारी कर कह चुके हैं, 'यूपी में कांग्रेस का जो हश्र हुआ, वह जेएनयू गैंग की वजह से हुआ है. इस गैंग का जो सरगना है वह प्रियंकाजी का नौकर है. इसके बाद जीशान को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
संदीप और विवादों का नाता चोली-दामन सरीखा है. वह कांग्रेस में अपनी पैठ बनाने के लिए राहुल गांधी की टीम में शामिल हो गए. जब प्रियंका यूपी आईं तो संदीप उनके निजी सचिव होकर आए. यूपी में तो विवाद उनका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे. सोनभद्र में पत्रकार को धमकाने और सरकारी ड्राइवर से मारपीट का आरोप लगा. लॉकडाउन में बस विवाद, चुनाव प्रबंधन, टिकट बंटवारे और इससे जुड़े तमाम आरोप उनके ऊपर लगते रहे. एक महिला कांग्रेसी और बिग बॉस पार्टिसिपेंट ने भी संदीप सिंह पर गंभीर आरोप लगाए थे.
संदीप की लगातार शिकायतें ऊपर तक पहुंच रही थीं. हो सकता है कि प्रियंका भी संदीप सिंह से परेशान रही हों. जो भी यूपी में कांग्रेसी कार्यकर्ता बहुत खुश हैं कि इसी बहाने संदीप सिंह से छुटकारा मिला.
2-क्या ब्राह्मण वोटों के लिए लाए गए अविनाश पांडेय
इस नियुक्ति से कांग्रेस काडर के लिए संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है. एक ऐसे राज्य में जहां, जाति की राजनीति अहम है, वहां ब्राह्मण समुदाय के पांडे की नियु्क्ति को पार्टी की राजनीतिक गणित के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल पार्टी यूपी में बीजेपी से ब्राह्रणों को खींचने की तैयारी में है. यूपी में ब्राह्रण कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं. अविनाश पांडे को प्रभारी बनाकर प्रभारी यह संदेश देना चाहती है कि ब्राह्मणों का भविष्य कांग्रेस राज में उज्ज्वल है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय पूर्वी यूपी से आते हैं और पार्टी का 'भूमिहार' चेहरा हैं. पांडे को यूथ कांग्रेस के दिनों से ही उनके संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है और पार्टी के अंदरखाने के लोगों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व को ऐसा लगता है कि पांडे राज्य में फिर से संगठन खड़ा करने में मदद कर सकते हैं.प्रियंका गांधी पर चूंकि पूरे देश की जिम्मेदारी थी इसलिए वे यूपी में ग्राउंड लेवल पर काम नहीं कर पा रही थी. कांग्रेस को उम्मीद है कि अविनाश पांडे अपने 65 साल के राजनीतिक अनुभव का इस्तेमाल यूपी में कांग्रेस को मजबूत करने में करेंगे.पांडे ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत 1970 के दशक में कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से किया था. इसके बाद वह धीरे-धीरे पार्टी में बड़े पदों तक पहुंचते रहे.
3-राहुल-प्रियंका में सब कुछ ठीक नहीं
बीच-बीच में इस तरह की खबरें आती रहती हैं कि राहुल गाधी और प्रियंका वाड्रा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. अविनाश पांडे राहुल गांधी की टीम के माने जाते रहे हैं. इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि राहुल अब पूरी पार्टी पर अपना नियंत्रण कायम करना चाहते हैं. खरगे ने जो टीम बनाई है उस पर राहुल गांधी की छाप नजर आ रही है.सचिन पायलट समेत कई ऐसे लोग हैं जो राहुल गांधी के नजदीकी हैं जिन्हें इस बार कार्यसमिति में महत्व मिला है. भारतीय जनता पार्टी ने कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर अपनी बहन प्रियंका गांधी के साथ 'अन्याय करने' का आरोप लगाया था.
बीजेपी ने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर लिखा था कि, एक आम भाई-बहन जैसा नहीं है राहुल गांधी और प्रियंका का रिश्ता. प्रियंका राहुल से तेज़ हैं पर राहुल के इशारे पर ही पार्टी नाच रही है, सोनिया गांधी भी पूरी तरह राहुल के साथ हैं. घमंडिया गठबंधन की मीटिंग से प्रियंका का ग़ायब होना यूं ही नहीं है. वीडियो में देखिये, कैसे बहन का इस्तेमाल सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है. बीजेपी ने इसके साथ ही 5 मिनट 36 सैकेंड का वीडियो भी साझा किया था जिसे टीवी पर आने वाली ख़बरों के अंदाज़ में बनाया गया था.
वीडियो में दावा किया गया था कि आखिर गांधी परिवार ने अब तक प्रियंका को चुनाव क्यों नहीं लड़ने दिया.बीजेपी ने प्रियंका गांधी के इंडिया गठबंधन के कार्यक्रमों से प्रियंका के न रहने पर भी सवाल उठाया था. वीडियो में सोनिया गांधी पर राहुल गांधी को तरजीह देने का आरोप लगाया गया था. हालांकि कांग्रेस ने बीजेपी के इन आरोपों का कड़ाई से खंडन किया था. पर यह सवाल आम भारतीयों के मन में बार-बार उठता है कि आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका को कम जिम्मेदारी मिलती है, जबकि प्रियंका किसी भी मामले में कहीं से भी राहुल गांधी से कमतर नहीं है.
और ये भी सब जानते हैं कि कांग्रेस में राहुल और प्रियंका दो अलग-अलग गुट हैं.इसलिए जब तक प्रियंका को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिलती है तब तक तो यह सवाल उछलता ही रहेगा कि क्या गांधी फैमिली में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है?
4-प्रियंका का यूपी में नहीं चला कोई जादू
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने शुरुआत की और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान तो पूरे तौर पर संभाल ली.इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि प्रियंका के आने से यूपी में कांग्रेस के पक्ष में बज क्रिएट हो गया था. “लड़की हूं- लड़ सकती हूं” के संकल्प के साथ उन्होंने इस तरह मेहनत की सभी दलों को डिफेंस में तैयारी करनी पड़ी. पर मजबूत संगठन और कई अन्य कारणों से उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. 2019 में राहुल गांधी ने अमेठी की लोकसभा सीट गंवा दी. प्रदेश में इकलौती लोकसभा सीट रायबरेली कांग्रेस के पास बची जिसका प्रतिनिधित्व सोनिया गांधी कर रही हैं. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 399 में 387 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गईं. 2017 की तुलना में वोट फीसद 6.25 से घटकर 2.33 रह गया और सीटें 7 से 2 पर पहुंच गईं.
संयम श्रीवास्तव