मनरेगा बन गया था भ्रष्टाचार का अड्डा, लेकिन बहस खामियों के बजाय सिर्फ नाम बदलने पर

मनरेगा योजना, जो अब जल्द 'वीबी जी राम जी' योजना होने जा रही है, तमाम तमाम खामियों से भरी रही. फिलहाल तो देश के हर कोने से इस योजना के नाम पर भ्रष्टाचार के किस्से सुनाई दे रहे हैं. कुछ महीने पहले गुजरात के एक मंत्री के दो बेटों कि गिरफ्तार किया गया. पर मंत्री महोदय बच गए. एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की भी गिरफ्तारी हो चुकी है.

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संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:36 PM IST

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में लागू हुई, जो भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के रूप में लोकप्रिय हुई. पर जल्द ही यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई. मोदी सरकार इस योजना मनरेगा की जगह नया कानून VB-G RAM G लाने जा रही है.

VB-G RAM G यानी विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण). बुधवार को इस योजना से संबंधित बिल लोकसभा में पेश किया गया, जो गुरुवार को पास भी हो गया. हैरानी की बात ये है कि इस योजना के नाम बदलने को लेकर तो जबरदस्त बहस हो रही है लेकिन इस योजना की खामियों, विशेषकर भ्रष्टाचार पर नहीं. वास्तव में अगर मनरेगा योजना की खामियों पर ध्यान दिया गया होता ये एक बहुत प्रभावशाली रोजगार योजना का रूप ले सकती थी. 

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दो दशकों में यह भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है. विभिन्न रिपोर्ट्स, जांचों और अध्ययनों से पता चलता है कि योजना में फर्जी जॉब कार्ड, घोस्ट वर्कर्स, फर्जी मस्टर रोल्स, सामग्री की अनियमित खरीद और फंड की हेराफेरी जैसे मुद्दे भरे पड़े हैं. हम विभिन्न राज्यों के उदाहरणों से देख सकते हैं कि कि कैसे डिजाइन, कार्यान्वयन, निगरानी और फंडिंग की कमियों ने इसे भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है.

मनरेगा की संरचनात्मक खामियां: डिजाइन से ही समस्या की जड़

मनरेगा की मूल डिजाइन डिमांड-ड्रिवन है, यानी मांग पर आधारित. ग्रामीण परिवार खुद काम की मांग करते हैं, और सरकार को 15 दिनों में काम देना होता है, अन्यथा बेरोजगारी भत्ता. यह अवधारणा आदर्श है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह भ्रष्टाचार को आमंत्रित करती है. पहली बड़ी खामी है फर्जी मांग का निर्माण. ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच, रोजगार सेवक और स्थानीय अधिकारी फर्जी जॉब कार्ड बनाकर या मौजूद मजदूरों के नाम पर काम दिखाकर फंड हड़प लेते हैं. CAG रिपोर्ट्स में पाया गया कि 2017-2021 के बीच देशभर में लाखों फर्जी जॉब कार्ड थे, जिससे करोड़ों रुपये की हेराफेरी हुई.

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योजना की खामी यह है कि मांग की सत्यापन प्रक्रिया कमजोर है. केवल आधार लिंकिंग पर निर्भर, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अधूरा है. 2025 में भी कई राज्यों में आधार कवरेज 80% से कम है, जिससे फर्जी एंट्री आसान हो जाती है. दूसरी खामी काम की गुणवत्ता और एसेट क्रिएशन की कमी है. योजना में काम मुख्य रूप से जल संरक्षण, सड़क निर्माण, तालाब खुदाई जैसे होते हैं. लेकिन मॉनिटरिंग की कमी से ये खोदना-भरना बन जाते हैं. पार्लियामेंट्री पैनल ने 2022 में रिपोर्ट किया कि योजना में भ्रष्टाचार, देरी वाले मस्टर रोल्स और वेज-मटेरियल पेमेंट में बड़ी लीकेज है. 

योजना की डिजाइन में मैनुअल लेबर पर जोर है, लेकिन मशीनरी का गलत इस्तेमाल (जिस पर प्रतिबंध है) भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है. अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से मशीन से काम कराकर मजदूरी का पैसा बचाया जाता है.तीसरी प्रमुख खामी पेमेंट सिस्टम की देरी है. मजदूरी 15 दिनों में मिलनी चाहिए, लेकिन आधार-आधारित पेमेंट सिस्टम (Aadhaar Payment Bridge System) में तकनीकी खराबी, बैंक अकाउंट मिसमैच और फंड की कमी से महीनों देर होती है. 2024-25 में देशभर में 10,000 करोड़ से अधिक पेंडिंग पेमेंट थे. 

चौथी खामी फंडिंग मॉडल की अनिश्चितता है. केंद्र सरकार 90% फंड देती रही है, लेकिन डिमांड-बेस्ड होने से बजट अनियंत्रित हो जाता है. राज्यों में फंड की कमी से देरी होती है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है.अधिकारी फंड रिलीज के लिए रिश्वत मांगते हैं. 

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पांचवीं खामी निगरानी और जवाबदेही की कमी है. सोशल ऑडिट का प्रावधान है, लेकिन ग्राम सभाओं में राजनीतिक दखल से यह प्रभावी नहीं होता. कई राज्यों में ऑडिट रिपोर्ट्स दबा दी जाती हैं. 2025 में गुजरात में AAP ने आरोप लगाया कि 22 लाख फर्जी मजदूरों के नाम पर पेमेंट हुए, लेकिन जांच धीमी है.

खामियों का व्यावहारिक असर

मनरेगा की खामियां विभिन्न राज्यों में भ्रष्टाचार के रूप में दिखाई देती हैं. गुजरात में 2025 में दाहोद जिले में 71 करोड़ का घोटाला सामने आया, जहां पंचायत मंत्री के बेटे बलवंत खाबड़ और किरण खाबड़ को गिरफ्तार किया गया. फर्जी प्रोजेक्ट्स दिखाकर फंड पर हाथ साफ किया गया. 

यहां मॉनिटरिंग की कमी से सामग्री स्पेसिफिकेशन नहीं मिली और फर्जी इनवॉयस से पेमेंट हुए. भरूच जिले में भी 7.3 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ. AAP ने 100 करोड़ की अनियमितताओं का आरोप लगाया, लेकिन सरकार ने केवल छोटे मामलों में कार्रवाई की. 

झारखंड में IAS अधिकारी पूजा सिंघल को 2022 में ED ने मनरेगा फंड गबन के लिए गिरफ्तार किया. खूंटी जिले में 18 करोड़ की हेराफेरी हुई. यहां फर्जी जॉब कार्ड और मशीनरी का गलत इस्तेमाल मुख्य समस्या है. 2011 में कार्यकर्ता नियामत अंसारी की हत्या हुई, क्योंकि उन्होंने घोटाले उजागर किए थे. यह निगरानी की कमी दर्शाता है.

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सोशल ऑडिट भी असरदार नहीं

मध्य प्रदेश में 2025 में सिंगरौली और सीधी जिलों में घोटाले सामने आए. बम्हनी गांव में गांव छोड़ चुके लोगों के नाम पर पेमेंट हुए. राज्य में 67.92 करोड़ की मिसअप्रोप्रिएशन रिपोर्ट हुई, केवल 12% रिकवरी हो सकी. यहां पेमेंट में देरी और फर्जी लाभार्थी मुख्य खामी है. दिग्विजय सिंह ने अनियमितताओं की शिकायत की, लेकिन जांच धीमी रही. उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले में मृत लोगों के नाम पर फर्जी जॉब कार्ड से पेमेंट हुए. बस्ती जिले में गणतंत्र दिवस पर भी फर्जी हाजिरी लगाकर घोटाला हुआ.

बदायूं में बीडीओ पर फर्जी अटेंडेंस का आरोप लगा. पुरानी CAG रिपोर्ट्स में 8,000 करोड़ की अनियमितताएं मिलीं. यहां आधार लिंकिंग की समस्या से फर्जी एंट्री आसान है. राजस्थान में 2024 में 10 जिलों (करौली, राजसमंद आदि) में फर्जी अटेंडेंस और NMMS ऐप में धांधली मिली. कई अधिकारियों पर केस चले.

फर्जी जॉब कार्ड डिलीट किए गए (2022-23 में 45,646).पश्चिम बंगाल में केंद्र ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर फंड रोके (2022 से). फर्जी मस्टर रोल और जॉब कार्ड मैनिपुलेशन मुख्य समस्या रहा. कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2025 में फंड बहाली का आदेश दिया, लेकिन जांच जारी है. 

बिहार में 2024 में भ्रष्टाचार और खराब कार्य स्थितियां मिलीं. MNREGA वर्कर्स ने फ्रॉड के खिलाफ प्रदर्शन किया. हरियाणा (नूंह) में निजी जोहड़ को सामुदायिक दिखाकर 9 लाख का गबन किया गया. देशव्यापी 2025 तक 169.75 करोड़ की मिसअप्रोप्रिएशन के मामले सामने आए पर केवल 12% रिकवरी ही संभव हो सकी.

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