बिहार में करारी हार के बाद BMC चुनाव अकेले लड़ने की हिम्मत कहां से मिल रही है कांग्रेस को?

मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनावों में कांग्रेस नया प्रयोग करने जा रही है. एमवीए में रहते हुए कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी. जाहिर है कि कांग्रेस को अगर अपेक्षित सफलता मिलती है तो देश में विपक्ष की राजनीति को झटका लग सकता है.

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मुंबई नगर निगम का मुख्यालय, बीएमसी चुनावों में कांग्रेस की रणनीति पर रहेगी देश की नजर मुंबई नगर निगम का मुख्यालय, बीएमसी चुनावों में कांग्रेस की रणनीति पर रहेगी देश की नजर

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:59 PM IST

मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव, जो भारत के सबसे धनी और प्रभावशाली स्थानीय निकायों में से एक है, हमेशा से महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करती रही है. पांच साल से अधिक के अंतराल के बाद महाराष्ट्र में शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों के चुनाव दिसंबर-जनवरी के दौरान तीन चरणों में होने जा रहे हैं. राज्य की नगर निगमों, जिनमें बीएमसी भी शामिल है के चुनाव मध्य जनवरी में होने हैं.

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इस बीच कांग्रेस पार्टी ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में रहते हुए भी अकेले लड़ने का फैसला किया है. जाहिर है कि राजनीतिक हलकों में यह बहस का विषय बन गया है.क्योंकि अगर ऐसा होता है तो सबसे अधिक फायदा बीजेपी को ही होने वाला है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर में महाराष्ट्र के प्रभारी एआईसीसी नेता रमेश चेन्निथला ने कहा है कि मुंबई कांग्रेस बीएमसी चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ना चाहती है. हमने उन्हें इसकी अनुमति दे दी है.

चेन्निथला कहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान (एमवीए के सहयोगियों के साथ मुंबई की सीटें साझा करके) हमने समझौता किया था. अब स्थानीय इकाई के पदाधिकारी महसूस करते हैं कि नगर निकाय चुनाव अपनी ताकत पर लड़ना चाहिए. इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

मुंबई कांग्रेस की प्रमुख और सांसद वर्षा गायकवाड़ बीएमसी चुनाव में पार्टी को अकेले लड़ाने की मांग करने वाले नेताओं की अगुवाई कर रही हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस राज ठाकरे की अगुवाई वाली एमएनएस के साथ हाथ कैसे मिला सकती है? यह टिप्पणी तब आई जब एमवीए नेताओं ने मुंबई में मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों के विरोध में एमएनएस के साथ संयुक्त रैली की थी. 

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पर अहम सवाल यह है कि क्या कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ना आत्मघाती कदम नहीं है? क्योंकि वर्तमान में महाराष्ट्र की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी जैसी मजबूत पार्टी भी अकेले चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकती. आखिर कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की गणित क्या है? आइये देखते हैं.

बिहार चुनाव परिणाम से सबक, इतनी सीटें तो कांग्रेस को अकेले लड़कर भी मिल जातीं 

बीएमसी चुनावों में कांग्रेस के अकेले लड़ने का फैसला बिहार विधानसभा चुनावों की हार के ठीक एक दिन बाद आया. बीएमसी, जो 1.3 करोड़ आबादी वाले मुंबई को संभालती है और 40,000 करोड़ का बजट रखती है, शिवसेना-बीजेपी का पारंपरिक गढ़ रही है. 2017 में बीजेपी ने 82 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस मात्र 31 पर सिमट गई. लेकिन 2025 में कांग्रेस का 'सोलो रन' करने का फैसला दुस्साहसिक लगता है. 

लेकिन कांग्रेस को बिहार में जो करारी हार मिली है उसके बाद साफ हो गया है कि गठबंधन में लड़ने का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिल रहा है. क्योंकि बिहार में कांग्रेस अगर अकेले भी लड़ती तो शायद 6 सीटें जीत सकती थी. यही नहीं अगर सभी सीटों पर लड़ती तो हो सकता है कि उसका वोट प्रतिशत भी 8 प्रतिशत की बजाए 12 या 14 प्रतिशत रहता.

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पर गठबंधन में चुनाव लड़ने का नतीजा रहा है कि कई जीतने वाली सीटें उसे नहीं मिलीं. इतना ही नहीं बार-बार कम सीटें मिलने से लगातार संगठन भी कमजोर हो रहा है. कार्यकर्ता का उत्साह भी खत्म हो रहा है. महाराष्ट्र में तो कांग्रेस कम से कम बिहार जैसी स्थिति में है भी नहीं. अभी भी कांग्रेस महाराष्ट्र में स्टेट लेवल पर बीजेपी के बाद दूसरे नंबर की पार्टी है.पार्टी को रिवाइव करने के लिए यह एक बेहतर फैसला हो सकता है. संभव है कि इससे बीजेपी को फायदा पहुंचे .पर कांग्रेस कब तक अपनी कीमत पर दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों का फायदा कराती रहेगी?

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने से वैसे भी कांग्रेस को महत्व मिलने की संभावना कम हो गई है

कांग्रेस को डर है कि एमवीए में रहकर भी वह सिर्फ 50-60 सीटें ही लड़ पाएगी और क्रेडिट भी शिवसेना को जाएगा. इसलिए अपना खेल खुद खेलने का फैसला किया है. उद्धव को BMC (1997-2022 तक शिवसेना का किला) वापस चाहिए, जबकि राज का MNS (2012 में 28 सीटें, 2017 में 7) पुनरुत्थान चाहता है.

ठाकरे गठबंधन से मुस्लिम (20%) और दक्षिण भारतीय (8-10%) वोटर नाराज होंगे. राज का 'मराठी मानूस' एजेंडा अक्सर 'माइग्रेंट विरोधी' रहा, जो कांग्रेस के सेक्युलर बेस को चोट पहुंचाता. कांग्रेस ने राज को 'एंटी-मुस्लिम' मानकर गठबंधन से दूरी बनाई है. 
इसके साथ ही ठाकरे गठबंधन से कांग्रेस को महत्व मिलने की संभावना कम हो गई है.

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एमवीए में उद्धव-राज का 'माराठी फ्रंट' कांग्रेस को 'आउटसाइडर' बना देगा. 2017 में कांग्रेस ने 31 सीटें जीतीं, लेकिन गठबंधन में हिस्सेदारी 20-25 सीटें तक सीमित रह सकती है. गठबंधन में रहकर 'मराठी' नैरेटिव से अलगाव, अकेले लड़कर वोट स्प्लिट. इन दोनों में परिणामों में जाहिर है कि कांग्रेस के लिए मराठी नरेटिव से अलगाव भविष्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.

मुंबई में कांग्रेस का संगठन मजबूत

मुंबई में कांग्रेस का संगठन मजबूत होने से अकेले लड़ने का फायदा मिल सकता है. 2017 में 31 सीटें जीतने वाली कांग्रेस का वोट बेस (मुस्लिम 20%, दलित 10%, दक्षिण भारतीय 8-10%) अभी भी बरकरार है. गायकवाड़ ने कहा कि कार्यकर्ता अपनी ताकत पर लड़ना चाहते हैं.
मुंबई कांग्रेस का संगठन 2 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं पर टिका है, जो बीजेपी-शिवसेना के मुकाबले बेहतर संगठित है. दक्षिण मुंबई (मलबार हिल, कोलाबा), वर्ली, दादर, बांद्रा और अंधेरी जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस का पारंपरिक बेस मजबूत है, जहां 40% वोटर हैं. 2017 बीएमसी में 31 सीटें जीतने वाले 31 पार्षद आज भी सक्रिय हैं. जैसे रवि राजा, असलम शेख, अमीन पटेल आदि विपक्ष के नेता रहे. मिड-डे के अनुसार, कांग्रेस ने हाल में 50,000 नए सदस्य जोड़े, और 1,150 से अधिक उम्मीदवारों ने टिकट के लिए आवेदन किया.

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 2024 लोकसभा में मुंबई की 6 में 2 सीटें जीतने से  कांग्रेस का जोश बढ़ा. द हिंदू के अनुसार, कांग्रेस का संगठन 'शहरी वोटरों से रिकनेक्ट' करने पर काम कर रहा. अकेले लड़ने से कांग्रेस को स्वतंत्र पहचान मिलेगी. गठबंधन में 'जूनियर' बनकर हिस्सेदारी कम मिलती, लेकिन अकेले 100 से अधिक सीटें लड़कर क्रेडिट खुद ले सकती है. 

मुस्लिम , दलित और दक्षिण भारतीय वोटर्स पर भरोसा

मुंबई में कांग्रेस का भरोसा मुस्लिम (20-22%), दलित (10-12%) और दक्षिण भारतीय (तमिल, कन्नड़, मलयाली; 8-10%) वोटर्स पर है. ये तीनों समुदाय परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ हैं, जो गठबंधन में बंट जाते थे. कांग्रेस का फैसला 'प्राइड' से प्रेरित है. अल्पसंख्यक वोट बैंक को एकजुट कर 'सेकुलर वैकल्पिक' बनना. 
 यह भरोसा अकेले लड़ने का मजबूत आधार बनेगा, लेकिन चुनौतियां भी हैं. मुंबई में मुसलमान 20-22% हैं, मुख्य रूप से दक्षिण मुंबई, दक्षिण-मध्य, उत्तर-मध्य, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व मुंबई में. ये वोटर कांग्रेस का पारंपरिक बेस हैं, जो सेक्युलर एजेंडे पर भरोसा करते हैं. 2017 बीएमसी में कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल वार्डों (जैसे भायखळा, मलबार हिल) में मजबूत प्रदर्शन किया.

राज ठाकरे की एमएनएस के 'मराठी मानूस' एजेंडे से मुसलमान नाराज हैं, जो शिवसेना यूबीटी के साथ गठबंधन की अटकलों से बढ़ा. कांग्रेस को भरोसा है कि अकेले लड़ने से मुस्लिम वोट (80-85%) एकजुट होगा. वर्षा गायकवाड़ ने कहा क एमएनएस गठबंधन से मुस्लिम वोट खिसकेगा, हम उनकी आवाज बनेंगे. उद्धव ठाकरे तो मुस्लिम वोटरों से बात कर रहे हैं पर राज ठाकरे का 'मुस्लिम विरोधी' इमेज नुकसान पहुंचा सकता है.

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