कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर Their Kids vs Your Kids को बताती हुई एक पोस्ट की है. पोस्ट के साथ वीडियो भी टैग किया गया है. वीडियो में यह बताने के कोशिश की गई है कि बीजेपी नेताओं के बच्चे किस तरह विशेष सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं जबकि देश के आम नागरिकों के बच्चे पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि पोस्ट करने वाली श्रीनेत खुद एक राजनीतिक परिवार से आती हैं. उनके पिता हर्षवर्धन पूर्वी यूपी से कांग्रेस के टिकट पर कई बार सांसद चुने जा चुके हैं. श्रीनेत कह सकती हैं कि वे पत्रकारिता से राजनीति में आईं हैं. पर बहुत से लोग पत्रकारिता करते हैं सबकी किस्मत में कांग्रेस के इतने बड़े पद पर पहुंचना संभव नहीं होता है. क्योंकि सभी सुप्रिया की तरह सांसद पुत्र या पुत्री नहीं होते हैं.
सुप्रिया श्रीनेत तो बस एक छोटा सा उदाहरण हैं. कांग्रेस पार्टी का इतिहास और वर्तमान भरा पड़ा है. भाई भतीजावाद और नेपोकिड्स वाली कहांनियों से. दरअसल भारतीय लोकतंत्र का इतिहास ही कांग्रेस के सबसे बड़े नेपो किड्स से शुरू होती है. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का इतिहास किस तरह नेपोटिज्म की कहांनियों से भरी पड़ी है.
बीजेपी और कांग्रेस, किसमें कितना वंशवाद
डेटा से पता चलता है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां नेपोटिज्म की समस्या से ग्रस्त हैं. फिर भी कांग्रेस में यह अधिक केंद्रीकृत (नेहरू-गांधी परिवार के इर्द-गिर्द) है, जबकि बीजेपी में यह फैला हुआ और रणनीतिक रूप से अपनाया गया है. नेहरू-गांधी परिवार ने कांग्रेस को लंबे समय तक नियंत्रित किया, जहां जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे सदस्यों ने शीर्ष पद संभाले. यह परिवार पांच पीढ़ियों से कांग्रेस का चेहरा है.
इसी तरह, बीजेपी ने शुरू में खुद को गैर-भाई-भतीजावादी पार्टी के रूप में पेश किया, लेकिन अपने विस्तार के दौरान कई राजनैतिक परिवारों को अपनाया. एक अध्ययन के अनुसार, 1999 से 2019 तक लोकसभा में कांग्रेस के 36 वंशवादी सांसद चुने गए, जबकि बीजेपी के 31. लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी की जीत के बाद भी, उसके 15% सांसद परिवारिक पृष्ठभूमि से थे. यह दिखाता है कि बीजेपी कांग्रेस से कम नहीं है. बीजेपी का भाई-भतीजावाद कम दिखाई देता है क्योंकि यह एक परिवार तक सीमित नहीं है. दरअसल कांग्रेस का वंशवाद कुछ खास घरानों तक ही सीमित है. जबकि बीजेपी में दूसरे और तीसरे नंबर के नेताओं में यह ज्यादा है.
कांग्रेस में भाई-भतीजावाद: नेहरू-गांधी परिवार का प्रभुत्व
कांग्रेस भाई-भतीजावाद का सबसे प्रमुख उदाहरण है. नेहरू-गांधी परिवार ने पार्टी को परिवार का किला बना दिया. जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री थे, उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने 1966-77 और 1980-84 तक शासन किया. इंदिरा के बेटे राजीव गांधी 1984-89 तक प्रधानमंत्री रहे. राजीव की पत्नी सोनिया गांधी ने 1998 से पार्टी की कमान संभाली, और उनके बेटे राहुल गांधी 2017-19 तक अध्यक्ष रहे. प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल की बहन कुछ दिनों तक पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी रहीं फिलहाल अब वायनाड़ (केरल) से सांसद हैं. यानि की आज की तारीख गांधी परिवार का हर सदस्य सांसद है. इसी तर्ज पर हर प्रदेश में कांग्रेस नेताओं ने अपने घर के किसी सदस्य को अपना उत्तराधिकारी बनाया. बहुत लंबी लिस्ट है. इसका असर दूसरी पार्टियों पर भी रहा . क्षेत्रीय दल तो पूरी तरह आनुवंशिक उत्तराधिकार के भरोसे चल रहे हैं.
नेहरू-गांधी परिवार, दूर-दूर के रिश्तेदारों तक को सरकारी पद
नेहरू-गांधी परिवार भारतीय राजनीति का सबसे शक्तिशाली परिवार है, जो 1947 से कांग्रेस को नियंत्रित कर रहा है. मोतीलाल नेहरू (1861-1931) इसके संस्थापक थे, जो कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने. उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) ने स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में परिवार को राजनीतिक ऊंचाइयों पर पहुंचाया. नेहरू के समय में दूर के रिश्तेदारों को भी सरकारी पदों पर नियुक्ति देकर परिवारिक नेटवर्क मजबूत किया गया, जो भाई-भतीजावाद का क्लासिक उदाहरण है.
जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री (1947-1964), विदेश मंत्री भी थे. नेहरू की बेटी, प्रधानमंत्री (1966-1977, 1980-1984) तक रहीं. इंदिरा के पति फिरोज गांधी सांसद रहे. इंदिरा के बेटे, राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने.राजीव की पत्नी सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहीं और यूपीए सरकार की चेयर परसन भी थीं. सोनिया के बेटे राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे. अभी वो सांसद हैं और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस महासचिव रहीं.
नेहरू ने परिवार को प्राथमिकता देकर कई रिश्तेदारों को उच्च पद दिए, जो राजनीतिक नियुक्तियों का आधार बने. विजय लक्ष्मी पंडित नेहरू की बड़ी बहन, मोतीलाल की बेटी थीं. वे भारत की पहली महिला राजदूत (सोवियत संघ, 1947-1949; अमेरिका, 1949-1951) बनीं. संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष (1953) रहीं. नेहरू ने उन्हें उच्चायोग और राजदूत पद दिए, जो पारिवारिक प्रभाव का ही प्रमाण था.नेहरू के चचेरे भाई (मोतीलाल के भाई नानक चंद के पोते) बीके नेहरू ने भी देश के कई प्रमुख पदों को सुशोभित किया. . वे अमेरिका के राजदूत ,यूके हाईकमीशनर और गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे. इंदिरा गांधी के सलाहकार भी रहे.
मोतीलाल के भाई नंदलाल नेहरू अवध के दीवान थे, जिनके वंशज राजनीति में सक्रिय रहे. अरुण नेहरू जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई आनंद कुमार नेहरू के बेटे थे. सांसद (1980-1989), ऊर्जा राज्य मंत्री (1984-1985), गृह राज्य मंत्री (1985-1986). इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव के सबसे करीबी सलाहकार बन कर उभरे थे. बाद में राजीव गांधी से अनबन हो गई. वीपी सिंह के साथ चले गए.
कई देशों में राजदूत रहे रतन कुमार नेहरू. विदेश सचिव तो रहे ही. चीन में राजदूत , मिस्र में राजदूत बनाए गए. विजय लक्ष्मी पंडित की बेटीचंद्रलेखा पंडित के पति को मेक्सिको राजदूत में राजदूत बनाए गए. ये सभी नियुक्तियां नेहरू के समय में जो परिवारिक वफादारी पर आधारित थे. इसलिए सही मायने में भाई भतीजावाद की नींव रखने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ही थे.
इन नियुक्तियों से नेहरू परिवार ने राजनीति को परिवार का व्यवसाय बना दिया. इंदिरा गांधी के समय संजय गांधी को अनौपचारिक शक्तियां मिलीं. जिसका इमरजेंसी के दौरान उन्होंने जमकर दुरुपयोग किया. बाद में राजीव गांधी और उनके बाद राहुल और प्रियंका पार्टी को नियंत्रित कर रहे हैं. उम्मीद है कि एक न एक दिन पीएम की गद्दी पर भी बैठ ही जाएंगे. प्रियंका गांधी के बेटे रेहना वाड्रा की लांचिंग भी होनी तय है.
कांग्रेस में नेहरू-गांधी कुनबे के रिश्तेदारों की नियुक्तियां भाई-भतीजावाद की नींव हैं, जो SP, RJD, DMK, शिवसेना जैसी कई क्षेत्रीय पार्टियों में दिखती हैं.
संयम श्रीवास्तव