नीतीश कुमार ने 2005 के बाद जिस तरह से अपराध पर नकेल कसी, फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाए, पुलिस को खुली छूट दी, और गृह मंत्रालय को खुद संभालकर हर बड़े केस में सीधे दखल दिया, उसने लोगों के मन में यह भरोसा बैठा दिया कि 'अगर कोई नेता कानून-व्यवस्था संभाल सकता है, तो वह नीतीश है.' उनका सबसे बड़ा हथियार था भयमुक्त प्रशासन. चाहे कोई अपराधी कितना भी बड़ा हो, राजनीतिक रूप से जुड़ा हो, या दबदबा रखता हो, नीतीश के दौर में पुलिस कार्रवाई पर किसी तरह का पर्दा नहीं डाला जाता था.
अब सम्राट चौधरी उसी महकमे के मुखिया हैं. उनके सामने सीधी चुनौती है कि वे इस मानक को कैसे बनाए रखते हैं.
पहली चुनौती, नीतीश की तुलना से बच पाना लगभग असंभव
सम्राट चौधरी का राजनीतिक व्यक्तित्व आक्रामक है. उनका स्टाइल सीधा-सपाट और दो टूक माना जाता है. गृह मंत्रालय संभालते हुए उन्हें एक संतुलन कायम करना होगा. जिसमें लॉ एंड ऑर्डर को कायम रखते हुए लोगों का भरोसा अर्जित करना शामिल है. क्योंकि, जब भी बिहार में कोई बड़ा अपराध होगा, जनता का पहला सवाल होगा कि 'अगर नीतीश होते तो…?'यह तुलना सम्राट चौधरी के लिए सबसे बड़ी परीक्षा होगी. क्योंकि बिहार में कानून-व्यवस्था का मुद्दा सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है.
दूसरी चुनौती, पुलिस सिस्टम के साथ तालमेल
नीतीश कुमार ने अफसरशाही को हमेशा यह संदेश दिया कि टॉप बॉस खुद कानून-व्यवस्था के काम पर नजर रख रहा है. पुलिस महकमे में भी उनका एक अलग दबदबा था. अब वही अफसरशाही अचानक नए बॉस के अधीन है. सम्राट के लिए चुनौती यह होगी कि वे पुलिस को राजनीतिक दबाव से बचा पाएं. बड़े मामलों में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई तय कर सकें. थानों तक संदेश पहुंचा पाएं कि 'अपराध पर जीरो टॉलरेंस पहले की तरह जारी रहेगा'.
तीसरी चुनौती, भाजपा नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरना
सम्राट चौधरी न सिर्फ गृह मंत्री हैं, बल्कि बीजेपी के बड़े चेहरे भी हैं. भाजपा नेतृत्व ने उन्हें बिहार चुनाव में बंपर जीत के जिस तरह प्रमोट किया है, वह पार्टी के कई रणनीतिक फैसलों का परिणाम है. सम्राट चौधरी जिस कुशवाह (कोइरी) जाति से आते हैं, उसकी एक बड़ी आबादी यूपी में भी रहती है. ऐसे में सम्राट चौधरी यदि गृह मंत्री के रूप में प्रभाव छोड़ते हैं तो यह दीगर राज्यों में पार्टी के प्रचार में काम आएगा. ऐसे में सम्राट चौधरी को 'सुशासन बाबू' वाले ब्रांड का सच्चा हकदार बनना होगा.
चौथी चुनौती, बाकी दलों से सत्ता संतुलन कायम करना
नीतीश कुमार के समय में यह फायदा था कि वे खुद सत्ता के केंद्र थे. पर सम्राट को गृह मंत्री की भूमिका के साथ-साथ एनडीए के भीतर रिश्तों का संतुलन भी साधना होगा. खासकर बीजेपी, जेडीयू, और अन्य छोटे दलों के बीच कानून-व्यवस्था के मामले कभी भी राजनीतिक घमासान का कारण बन सकते हैं. सम्राट का हर कदम राजनीतिक नजरिए से भी तौला जाएगा.
पांचवी चुनौती, सोशल मीडिया का दबाव
जब नीतीश कुमार ने 'जंगलराज' के खिलाफ लड़ाई शुरू की, तब सोशल मीडिया का दबाव नहीं था. 2005 के दौर का मीडिया भी अलग था. उन्हें अपनी पकड़ कायम करने के लिए पूरी मोहलत मिली. आज हर घटना, हर लाठीचार्ज, हर अपराध, हर गिरफ्तारी तुरंत वायरल हो जाती है.
सम्राट चौधरी की छवि आक्रामक नेता की रही है, ऐसे में उनके किसी भी बयान या कार्रवाई को तुरंत राजनीतिक हथियार बनाया जा सकता है. कई बार झूठा नैरेटिव भी चलाया जाएगा. क्योंकि, निशाना सम्राट चौधरी से जयादा बीजेपी पर होगा. नीतीश ने यह दौर कम झेला, सम्राट को हर दिन इससे लड़ना होगा.
छठी चुनौती, नीतीश के मॉडल को बनाए रखते हुए अपनी पहचान बनाना
सबसे कठिन काम यही होगा. अगर सम्राट नीतीश के मॉडल पर चलते हैं, तो लोग कहेंगे 'सुशासन तो नीतीश का ही है, सम्राट बस चला रहे हैं.' और अगर वे कोई नया मॉडल लाने की कोशिश करते हैं और उसमें कमी दिखाई देती है, तो कहा जाएगा कि 'नीतीश के समय ऐसा नहीं होता था.' यानी सम्राट के लिए यह दोधारी तलवार है. उन्हें यह साबित करना होगा कि वे सिर्फ नीतीश की जगह भरने नहीं आए हैं, बल्कि अपने दम पर कानून-व्यवस्था का नया मानक स्थापित कर सकते हैं.
सातवीं चुनौती, जातीय और सामाजिक तनाव पर नियंत्रण
बिहार कई बार छोटे-छोटे मसलों पर भी सांप्रदायिक या जातिगत तनाव झेलता है. नीतीश ने इसे काफी हद तक नियंत्रित रखा. अब सम्राट के लिए चुनौती यह होगी कि उनके कार्यकाल में दंगे न हों. जातीय हिंसा नियंत्रण में रहे. छोटे-छोटे तनाव राजनीतिक मुद्दा न बनें. पुलिस निष्पक्ष दिखे. क्योंकि एक भी बड़ा फ्लैशपॉइंट उनकी छवि पर सवाल खड़ा कर सकता है.
आठवीं चुनौती, सम्राट चौधरी और इमेज मेकिंग
नीतीश कुमार, ममता बनर्जी जैसे कुछ ही नेता हैं जिनके राज में कितनी भी बड़ा अपराध हो, उसे उनकी निजी छवि के साथ नहीं जोड़ा जाता. ये माना जाता है कि अपराध हुआ है, लेकिन नेतृत्व निर्दोष है. ऐसी छवि कायम करने के लिए नीतीश कुमार ने लंबे समय तक निर्लिप्त शासन चलाया है. रेल मंत्री रहते दुर्घटना होने पर उन्होंने इस्तीफा दिया. ऐसी जवाबदेही वाली राजनीति करते हुए नीतीश कुमार ने आम जनमानस में अपनी गहरी छाप छोड़ी. अब सम्राट चौधरी को भी लोगों के दिलों में उतना ही गहरा उतरना होगा.
सम्राट चौधरी अगर इन चुनौतियों को पार करने में सफल होते हैं, तो ही वे सच्चे मायने में नीतीश की छाया से निकलकर बिहार की राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान बना पाएंगे. वरना 'सुशासन बाबू' की तुलना उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी परीक्षा बनी रहेगी.
धीरेंद्र राय